अपने ही घर आते हुए जाने क्यों इतनी झिझक हो रही है, वही घर वाही लोग वहीदोस्त पता नहीं कहाँ , क्या नया है? लेकिन फिर भी आज दिल चाहा , अपने दोस्तों के नज़दीक जाने का, और देख लीजिये, हम आगये,
दूरी क्यों रही, ये वजह ना ही पूछें तो अच्छा है. कुछ अपना चेहरा नज़र आएगा ,कुछ अपने ही लोगों के बदसूरत चेहरे दिखाई देंगे, सो क्यों न इस बात को यहीं छोड़ दिया जाए......
कल नया साल का पहला दिन होगा, आज आखिरी रात है,,बाकी दुनिया की क्या बात करें, अपने देश ही की क्या, अपने शहर में ही हर तरफ चरागाँ हो रहा है, जिस से मिलिए, वो नए साल की मुबारकबाद दे रहा है,मोबाइल फोन पर messages की बहार है, ये है तो मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों का ख़ुलूस, लेकिन जाने क्यों...हंसी आजाती है, किस बात की ख़ुशी, किस बात का celebration, ,,,अब मैं क्या कहूँ,,,मेरे कुछ दोस्तों, ख़ास कर के एक ख़ास दोस्त को मेरी इस सोच से चिढ है.....पता है वो क्या कहते हैं? तुम तो ८५ साल की बुधिय जैसी बात करती हो...अब मैं उन्हें क्या कहूँ...कुछ कहूँगी तो नाराज़ हो जाना उनकी पुरानी आदत जो ठहरी ...
बहरहाल, आज नए साल के इस मौके पर मुझे फैज़ अहमद फैज़ की एक नज़्म याद आरही है...मेरे बहुत से काबिल दोस्तों की नज़रों से गुजरी भी होगी...लेकिन इसे यहाँ पर लिखे बिना मैं रह नहीं पाउंगी....
ऐ नए साल बता तुझ में नयापन क्या है?
हर तरफ खल्क ने क्यों शोर मचा रखा है
रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही
आज हमको नज़र आती है हर एक बात वही
आसमान बदला है,अफ़सोस न बदली है ज़मीं
एक हिन्दसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं
अगले बरसों की तरह होंगे करीने तेरे
जनवरी, फरवरी और मार्च में होगी सर्दी
तेरा सिनदहर में कुछ खोएगा, कुछ पायेगा
अपनी मियाद बसर कर के चला जायेगा
तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नयी
वर्ना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई
बेसबब लोग क्यों देते हैं मुबाराकबादें
गालेबन भूल गए वक़्त की कडवी यादें
फैज़ अहमद फैज़