Wednesday, March 26, 2008

वो चेहरे ......


सुर्ख ओ सफ़ेद चेहरा,बड़ी बड़ी रोशन और ज़हीन आँखें,लंबा कद लेकिन जो चीज़ उनकी शख्सियत कोसब से ज़्यादा असर अन्गेज़(प्रभावशाली) बनाती थी वो थी उनके चेहरे पर खूबसूरत दाढ़ी- आम तौर से दाढ़ी किसी भी चेहरे की खूबसूरती को कम कर देती है पर कुछ लोगों के व्यक्तित्व में ये चार चाँदलगा देती है.

उनके बोलने का अंदाज़ इतना सेहर अन्गेज़ (जादुई)था की सुनने वाला उनकी बातो के सेहर में खो जानेपर मजबूर हो जाता था. दिल में बसता हुआ धीमा धीमा लहजा और बात को तर्क के साथ पेश करने कावो अंदाज़ कि सामने वाला सहमत हुए बिना न रह सके. कुछ ऐसी ही शख्सियत के मालिक थे अतहरअली खान.

बाबा किसी से भी इतने जल्दी प्रभावित नही होते,लेकिन जब से वो उन से मिले थे,उनके होठों परउन्ही का नाम होता था…किसी की इतनी तारीफ सुनने के बाद अपने आप मन में उस व्यक्ति से मिलनेकी उत्सुकता जग जाती है,मुझे भी हुयी थी…

ये बात थोडी पुरानी है,लगभग पाँच साल पहले की,उन दिनों हम कोल्कता में रहा करते थे…यूँ तो मैंइतनी mature नही थी लेकिन जिंदगी के साथ साथ लोगो को देखने का नजरिया हमेशा से थोड़ा बूढारहा है मेरा…कभी कभी अपनी दोस्तों की बातें सच लगने लगती हैं कि तू तो पैदाईशी बूढ़ी है या तेरेअन्दर कोई बूढी रूह समां गई है..

एक बार जब बाबा के साथ वो हमारे घर आए थे तब पहली बार मैंने उन्हें देखा और सुना था और सच कहूँतो इतनी जादुई शख्सियत से पहली बार सामना हुआ था मेरा.

फिर एक बार नही कई बार उन्हें देखा और सुना…अक्सर बाबा उन्हीं के साथ पाये जाते थे..

हमारे बाबा का नजरिया जिन्दिगी के प्रति ऐसा है की कभी कभी हैरानी होती है की अगर उन्होंने उच्चशिक्षा पायी होती तो जाने कहाँ होते…उनके ख्यालों की बारीकियां,उनकी thinking,लोगो को परखनेका उनका मापदंड आम लोगों से काफी अलग कर देता है उन्हें…ख़ुद को इस मुआमले में खुश किस्मतमानती हूँ कि मुझे उनका साथ नसीब है.

दिल की खूबसूरती का अक्स हमारे चेहरे पर नज़र आने लगता है..ये बात मैंने बाबा से सीखी है.

ये ज़रूरी नही कि इंसान का चेहरा बहुत खूबसूरत हो,वैसे भी खूबसूरती की डेफिनिशन अलग अलगलोगो के लिए हमेशा से अलग रही है,गोरा रंग देखने वालों को आकर्षित करते नैन नक्श,सिडोल शरीरयोरोपिये दिरिष्टि से खूबसूरती की कसोटी पर खरे हो सकते हैं पर मेरी नज़र में खूबसूरती न तो गोरारंग है न तीखे नैन तक्ष न ही सिडोल शरीर और लंबा कद, असली सुन्दरता के मायने हैं इंसान काखूबसूरत दिल जो इतना हसीन हो की उसका हुस्न अपने आप चेहरे पर नज़र आने लगे.

अतहर अली खान का दिल कैसा है,ये उनके खूबसूरत व्यक्तित्व से ज़्यादा उनके खयालात और उनकेन्ज्रियात से पता चलता था. बात चाहे अपने मज़हब की हो रही हो या किसी और की, सियासत की होया जिंदगी के दूसरे पहलुओं की..उनके खयालात सच मच मुखतलिफ थे,एक बार बात ओर्तों केहुकूक(अधिकार ) और इस्लाम की हो रही थी, अब ओर्तों के अधिकार की जहाँ बात आए…हमारे बाबाकभी पीछे रहने वाले नही हैं..लेकिन ये सुनकर मुझे बड़ी खुश गवार हैरत हुई की अतहर अली खान ख़ुदबाबा की बातों के हिमायती थे…एक बार मैंने उन से पूछा था की इस्लाम ने ओर्तों को तो परदा करने कीहिदायत दी है लेकिन मर्दों के लिए क्या? उन्होंने मुस्कुराते हुए हैरत से मुझे देखा फिर अपने उसीसेहर अन्गेज़ लहजे में जवाब दिया की इस्लाम ने अगर ओर्तों को परदे में रहने की बात कही है तोमर्दों को ओर्तों के सामने नज़र झुका कर रहने का हुक्म दिया है लेकिन बड़े दुःख की बात है ओर्तों कोपरदा कराना तो हमें याद रहा लेकिन ख़ुद हमें क्या करना चाहिए, हम ने बड़े आराम से भुला दिया. पाबंदी दोनों पर एक जैसी होनी चाहिए,मैं प्रभावित हुए बिना न रह सकी.

सिर्फ़ हम ही नही , वहां लह्ने वाले सभी लोगों में वो काफी respected शख्सियत माने जाते थे.

उनकी बीवी भी बड़ी नरमदिल ओर प्यारी थीं. हमेशा दूसरों के काम आने वाली, वो परदा करती थींलेकिन करीबी collage में जॉब भी करती थीं, जहाँ तक परदे का सवाल है, हो सकता है बहुत से लोगोका नजरिया अलग हो लेकिन मेरे ख्याल में परदा कभी भी ओरत की तरक्की में रुकावट नही बनसकता, हम परदा कर के भी तरक्की की रफ़्तार में उसी स्पीड से दोड़ सकते हैं, जिस तरह बाकी के लोगदोड़ रहे हैं.

बात हो रही थी दूसरी और मैं कहाँ पहुँच गई, ये मेरी पुरानी और बड़ी बुरी आदत है, बहेर्हाल कहने कामतलब ये अतःर अली खान की शख्सियत से सिर्फ़ बाबा ही नही ख़ुद मैं बहुत प्रभावित थी.

वो दोपहर मुझे आज भी अच्छी तरह याद है जब हमेशा की तरह बाबा मुझे school से लेने आएथे,रास्ते में रुक कर उन्होंने फल खरीदते हुए बताया था की अतहर अली कई दिनों से बीमार हैं औररास्ते में वो थोडी देर को उनकी खरियत लेने उनके घर चलेंगे .उनका घरमेरे school के काफी करीब थातो हमारे घर से काफी दूर. हम उनके फ्लैट पर पहुंचे.गर्मी का मौसम था.बाबा ने बेल बजायी पर कोईआवाज़ नही उभरी,शायेद वो ख़राब थी.

दरवाजे पर हाथ रखा तो वो खुलता चला गया.गर्मी के मरे बुरा हाल था.इसलिए हम बिना कोईतकल्लुफ़ किए अन्दर दाखिल हो गए.सारे घर में सन्नाटा था.ड्राइंग रूम भी खाली था .मैं उनके ड्राइंगरूम की शानदार सेटिंग से इम्प्रेस हुए बिना न रह सकी थी.इस से पहले की बाबा अतहर साहिब कोआवाज़ देते,करीब ही रूम से बर्तन के ज़ोर से पटखने की आवाज़ के साथ साथ किसी की धीमी मगरगरज्दार आवाज़ उभरी…”ये खाना बनाया है? इसे खाना कहते हैं जाहिल ओरत? तुम लोग कितना भीपढ़ लिख लो रहो गी वही जाहिल की जाहिल” ये आवाज़ बिला शुबहा(निसंदेह) अतहर साहब की थीलेकिन ये पथरीला और सर्द लहजा तो जैसे किसी और का था…जिसमें सामने वाले के लिए बेतहाशाहिकारत थी..जवाब में आंटी की सहमी सहमी सी आवाज़ उभर रही थी पर मैं तो बाबा की ओर देख रहीथी जो अजीब सी बेयाकीनी की कैफियत में थे.फिर जाने क्या हुआ,बाबा खामोशी से उसी तरह बाहरआगये जैसे अन्दर गए थे….सारा रास्ता वो खामोश रहे.

मेरा दिल चाह, पूछूँ कि बाबा जिनकी शख्सियत खूबसूरत होती है,क्या वो वाकई में(सचमुच) उंदर सेभी उतने ही खूबसूरत होते हैं? पर जाने क्यों मैं नही पूछ सकी.

उस दिन के बाद न कभी बाबा ने अतहर साहब के बारे में कोई बात की न ही मैंने कुछ पूछा.

मैं आज भी मानती हूँ की लोगों को परखने के मामले में बाबा का कोई जवाब नही है.लेकिन ये भी तो सचहै न कि जीवन में अपवाद होते रहते हैं.अपवाद न हो तो जिंदगी का सारा हुस्न ही खत्म हो जाए.सोअतहर अली खान भी एक अपवाद ही थे.

Sunday, March 23, 2008

तुम lucky हो की होली तुम्हारा त्यौहार नही है.....




ये कमेंट किसी को भी सुनकर अजीब लग सकता है,,वैसे भी त्यौहार कोई भी हो,,हर धर्म के लोगो को बडे प्यारेलगते हैं,,इनके आने की आहट ही हमारे दिलो में नयी उमंग सी भर देती है.में सिर्फ अपने त्योहारों की बात नहीकर रही..दिवाली आने के पहले उस के आने का माहोल ही इतना प्यारा लगता है की दिल अपने आप लोगो के दिलोमें उसके प्रति होने वाली उत्सुकता को समझ सकता है.लेकिन उन्हीं त्योहारों में से एक त्यौहार के बारे में यदिकोई ऐसा कहता है तो उसके कहे इस जुमले में छुपे उस मर्म को समझा जासकता है,,हो सकता है,कुछ लोगो कोये जुमला पसंद न आया हो,पर कल दो घटनाएं ऐसी हुयीं,जिन्होंने मुझे ये लिखने पर मजबूर कर दिया,,ये घटनाएंकहने को इतनी बड़ी नही हैं की किसी अखबार की सुर्खियाँ बनें लेकिन अगर इसे समझने की कोशिश की जाये तोयकीन कीजिए,ये किसी भी भावुक मन को तड़पा देती हैं.

निशा दीदी,हमारे ऊपर वाले पोर्शन में किरायेदार हैं,ओर मेरी अच्छी दोस्त हैं,मैं घंटो उनके साथ समय बितातीहूँ.उनका बोल्ड नेचर मुझे बहुत पसंद है.परसों ही की बात है,,नाश्ते से फारिग हो कर में सीधी ऊपर चलीआई,सोचकर गई थी की निशा दीदी को तो होली की तय्यारिओं से ही फुरसत नही होगी,पर अपने कमरे में वोअपनी किसी दोस्त के साथ busy थीं,में ये देख कर हैरान रह गई की वो अपनी दोस्त के आंसू पोंछ रही थी,कारणपूछा तो जो कुछ उन्होंने बताया उसे सुनकर कितनी देर तो में कुछ बोलने लायेक ही न रही,,निशा दीदी की वोदोस्त सुमन(नाम असली नही है) होली के दिन निशा दीदी के घर रहने आरही थी,,जानते हैं क्यों? क्योंकि होली केदिन उसे अपने घर में रहते डर लगता था,अपने घर में डर…पर किस से? किसी और से नही…अपने सगे जीजाजीसे,,सुमन दीदी ने बताया की उसके जीजाजी का चरित्र अच्छा नही है,उनकी नज़रें ही उसे इतनी गन्दी प्रतीतहोती हैं की वो जहाँ तक हो सके उनका सामना कम से कम करती है,आम दिनों में तो इतनी हिम्मत नही होतीउनकी,पर पिछले साल होली पर उन्होंने रंग लगाने के बहाने उसके साथ बड़ी अश्लील हरकत की,,उसने गुस्से मेंउन्हें बुरा भला भी कहा लेकिन वो आदमी बड़ा ढीठ था,उसने ये बात अपनी माँ को भी बातायी पर नाज़ुक रिश्ताहोने के कारण वो दामाद को कुछ नही कह सकी,अब होली फिर आगई थी और सुमन दीदी की बहेन परिवार सहितमायके होली मनाने आरही थी,पर सुमन दीदी के लिए ये त्यौहार खुशी लेकर नही डर लेकर आरहा था,,उन्होंनेहोली के दिन अपने घर में रहने से बेहतर अपनी दोस्त के घर रहना मुनासिब समझा.मुझे हैरान देख कर सुमन दीने अपने आंसू पोंछते हुए कहा था,,तुम हैरान हो न पर ये कोई नयी बात नही है,,तुम lucky हो की होली तुम्हारात्यौहार नही है…जब वो ये बात कह रही थी,तो उनके लहजे की बेबसी,चाहते हुए भी कुछ न करने की उनकीकुंठा,,उनकी तड़प, मुझे अन्दर तक झकझोर गई.

बात सुमन दी की ही होती तो शायेद मैं ये उनकी बदकिस्मती समझकर कुछ दिन में भुला देती पर कल यानी होलीके दिन जो कुछ हुआ,उसने मुझे सारी रात सोने नही दिया.

अनीला,हमारे घर पे काम करती है,यही कोई १४/१५ साल की अल्हड़ सी बच्ची,,बहुत तेज़ हैं काम में,पर बहुतभोली भाली,,उसकी माँ पास ही चूने भट्टे में मजदूरी करती है.उसने मामा से बोला था की होली वाले दिन सुबहसुबह आजयेगी और जल्दी चली जायेगी,क्योंकि,दिन चढ़ते ही रंग लगाने वालों की मस्तियां शुरू हो जाती हैं.यहाँकुछ खुदगर्जी हमारी भी रही जिसे इंसानी फितरत का हिस्सा कहा जासकता है,मामा ने उसे मन नही किया,भलाइतने सारे काम कोन करना पसंद करता…बहेर्हाल,,सुबह लगभग ८ बजे होंगे,जब वो आई,ज़ोर ज़ोर से रोतीहुयी,उसका हाल देखकर हम सब भोंचाक्के रह गए,,रंगों से लत पत,बिखरे बाल,चेहरे पर काला पेंट पुता,अस्तव्यस्त कपड़े,,वो रोये जारही थी,मामा ने कितनी कोशिश की पर वो चुप होने का नाम नही ले रही थी,,करीब आधेघंटे के बाद वो थोड़ा नॉर्मल हुयी,तब रो रो कर जो कुछ उसने बताया,उसने मुझे गम ओर गुस्से से भर दिया,,एकपल को सुमन दी की बात मुझे ठीक लगी…अनीला ने बताया की वो रास्ते में थी,और जल्दी से जल्दी यहाँ पहुँचजाना चाहती थी पर रास्ते में ही कुछ लड़के रंग लिए उसके पीछे पड़ गए,उसने मन किया तो वो ज़बरदस्ती करनेलगे,तभी किसी बुजुर्ग ने उन्हें डाँट कर भगाया,,वो उस समय तो चले गए, अनीला चल पड़ी,रास्ते में एक लीचीका बागीचा पड़ता है,,वही वो उसका इंतज़ार कर रहे थे,,वो छोटी बच्ची चिल्लाती रह गई मगर वो भेडिये रूपीमदमस्त जानवर,,अपनी ताकत ओर मस्ती का उदाहरण पेश करते रहे,,जाने उसके साथ क्या अनर्थहोजाता,,जब फरिश्ता बनकर कुछ लोग मोके पर वहां आगये…हमारा घर पास ही था,सो वो भागती हुयी यहाँ पहुँचगई..मामा ने बड़ी मुश्किल से उसे संभाला,सारा दिन वो हमारे घर रही,मामा ख़ुद शर्मिंदा थीं की उन्होंने आज उसेआने से मन क्यों नही किया,,कल का दिन मेरी जिंदगी के बदतरीन दिनों में से एक था,,रात जब लेटी तो मासूमअनीला के आंसू मुझे अपने दिल पर गिरते महसूस हुए,,कैसी है ये दुनिया,कैसा है इसका समाज…ओर क्या है यहाँस्त्री का अस्तित्व,,जिस स्त्री की कोख से पुरूष जन्म लेता है,उसी को जब चाहता है भेडिये की तरह भंभोड़ कररख देता है…ये समाज,उसके रीत रिवाज,,सब ढोंग हैं…सच तो ये है की ये दुनिया,ये समाज एक ओरत के लिएकिसी शिकारगाह से कम नही,,जंगल है ये दुनिया,जहाँ ओरत का अस्तित्व कोई नही,,हम कुछ भी कहें,कितनाभी ख़ुद को मज़बूत बनाने की कोशिश करें…किसी न किसी रूप में,कही न कही,हम अपनी जैसी मासूम लड़कियोंको इस श्कारगाह में तड़पता देख कर आंसू बहने के सिवा कुछ नही कर सकतीं…

में मानती हूँ,अलग अलग रूप में ये दोनों घटनाएं पुरूष की घटिया मानसिकता की ओर इशारा करती हैं,,जो कहीं नकहीं,किसी न किसी चोर रास्तों से अपनी गन्दी हवस की संतुष्टि करता रहता है,होली जैसा पवित्र त्यौहारइसका दोषी नही है,पर सोचिये तो कही न कहीं ये सुमन दी के जीजा और उन मदमस्त लड़कों जैसे विक्षिप्तपुरुषों को ऐसी घिनावनी हरकत का अवसर प्रदान करने का जिम्मेदार तो है न…क्या दिवाली या ईद जैसेत्यौहार पर भी किसी ने ऐसी घटनाएं होते देखि हैं? क्या दूसरे त्यौहार किसी पुरूष को किसी स्त्री को इतनेअजादाना तरीके से छूने का मोका देते हैं? नही…निश्चित ही बाकी त्योहारों की तरह होली का स्वरूप भी पवित्रमानसिकता का प्रतीक है,पर इस तरह की घटनाएं क्या इस की पवित्रता का मजाक उडाती नही प्रतीत होतीं?

में जानती हूँ ब्लोग्स पढने वालो में पुरुषों की गिनती महिलाओं से काफी अधिक है,और में ये भी नही कह रही कीसारे पुरूष ऐसी घटिया मानसिकता वाले होते हैं,,पर आप भी जानते हैं की आप ही के आस पास,आपके ही रिश्तेदारों में कहीं ऐसे लोग भी हैं जो इस पवित्र त्यौहार को कलंकित कर रहे हैं,,,सोचिये…यदि सौ लोगों की खुशियों मेंकहीं एक आँख बेबसी के आंसू से बहा रही हो तो क्या हम वास्तव में खुश हो सकेंगे?

यदि आप लोगों में से कोई किसी एक ऐसे विक्षिप्त इंसान को बेनकाब कर सका तो में समझूंगी,,मेरी मेहनत बेकार नही गई…....

Tuesday, March 18, 2008

सैय्याँ मोहे रंग दे आज ऐसे........


मौसम बहुत नशीला हो चला है..यहाँ हामारे देहरादून में हर तरफ़ फूल ही फूल खिले हैं..सर्द मौसम दूर जारहा है,,ओर गुलाबी सा मौसम मुस्कुरा कर सब कोहोली' की मुबारक बाद दे रहा है..एक अजीब सी खुशबू चारों ओर बिखरी हुई है,,ज़रा ध्यान से सुनें तो पता है ये मौसम क्या कहता है? कहता है,,दोस्तो,,होली तो हर साल आती है,,वही रंग वही गुलालवाही महकते पकवानबड़े लोगो की बड़ी होली,,छोटे गरीब लोगो की छोटी होलीएक दूसरे पर रंग लगाया,,थोडी मस्ती कीओर दिन खत्मबात खत्म..होली खत्म..तो फिर नया क्या है?

कुछ तो नया होकिसी हवाले से तो अहसास हो की नए साल की होली भी नई हैजब गरीब दुखियारे लोगो की भी बेफिक्री भरी होली हो….जब अमीर लोग सब कुछ भूल कर गरीब की झोंपड़ी में रंग लगाने पहुंचें जब हिंदू मुस्लिम इन गुलाबी रंगो में ऐसे जज़्ब हो जाएं की हर बाबरी मस्जिद और हर गुजरात का ज़ख्म भरता चला जाए….जब हर पुरूष अपनी महिलाओं को इज्ज़त और मुहब्बत का वो रंग लगाएकि कभी किसीमहिला दिवसकी ज़रूरत ही पड़ेजब हमारे देश का आधुनिकता के रंग में पूरी तरह रंगता जारहा युवा वर्ग अधुन्किता के काले रंग को पोंछ कर अपने देश की खोती जारही परम्पराओं के सुनहरे रंगो में ऐसे डूब जाए की अधुन्क्ता रूपी नाग उन्हें डसने से पहले ही अपनी मौत आप मर जाएउनके दिलो में सच्चे प्यार का वो रंग भरा हो की उन्हें कभी किसी एक दिनवैलेंटाइन, डेका दिखावा करना पड़े,,अपने अपने बुजुर्गो के लिए मुहब्बत ओर इज्ज़त का रंग इतना फैला हुआ हो की किसीmothers day किसी ‘fathers day और किसी टीचर्स डे के बहाने से उन्हें याद करने की ज़रूरत बाकी रहे…..क्या हैं ऐसे रंग कहीं? क्या देश के किसी हिस्से में होगी ऐसी होली? पता नहीफिर भी उम्मीदें है की दामन छोड़ने का नाम नही ले रही,,बहकाती हैं बहलाती हैं सर्गोशियाँ करती हैं,,सब कुछ जानते हुए भी एक दिन सब कुछ बदल जाने की तसल्लियाँ देती हैं,,ऐसे में यही सोच कर हर सच से आँखें चुराने को दिल चाहता है,,की उम्मीद ही जिंदगी के होने की निशानी है , उम्मीद पर ही ये दुनिया कायम है,,तो फिर क्या करें? कर लें एक बार फिर ये उम्मीद और इनके पूरे होने का यकीन?…इस दुआ के साथकी खुदा करे ये होली उन रंगो को लेकर आए जो इंसान की हर कुंठा,,उसके अन्दर की हर घुटन,,सब कुछ पाकर भी कुछ पाने जैसी असंतुष्टि की मानसिकता को पूरी तरह धोकर उसे मुहब्बत प्यार एकता ओर भाईचारे के खूबसूरत और इतने गहरे रंगो में रँगे कि कयामत तक ये रंग छूट ना पायेंऐसे ही चमकते रहेंसमय के साथ साथ ओर निखरते रहें..(अमीन)

इस दुआ के साथ,,सभी को होली की बहुत बहुत मुबारकबाद

बहुत सारी शुभकामनाओं के साथ

HAPPY HOLI...

Monday, March 17, 2008

Pretty woman: ये मैं हूँ......


Pretty woman: ये मैं हूँ......


शायेद...कहीं तो अलग हूँ मैं.....

कभी कभी अपने बारे में सोचती हूँ ओर उलझ जाती हूँ,,सब कहते हैं..बहुत अलग हो तुम…अलग…क्याअलग…अकसर सोचती हूँ..मैं भी तो आम लड़कियों जैसी हूँ…क्या अलग है मुझ में?


फिर ख़याल आता है कही न कही कोई बात तो है जो अलग करती है मुझे,,अपनीकाजिंस को देखती हूँ अपनीको देखती हूँ ओर बस देखती रह जाती हूँ…बेफिक्री से खिलखिलाती ये लडकियां,,आंखो में सपनो की एकदुनिया बसाए…कितनी मासूम हैं…एक मैं हूँ..जाने कितनी फिक्रो की बोरियां ख़ुद पे लादे,,उनका साथ देना भीचाहती हूँ तो नही दे पाती…ज़ोर से हँसना चाहती हूँ,,मैं भी खिलखिलाना चाहती हूँ,,इतने ज़ोर से की आसमानों तकआवाज़ जाए…..ओर कोशिश भी करती हूँ,,फिर ख़ुद ही अहसास होता है…अरे ये मैं क्या कर रही हूँ…कोई क्याकहेगा…...

to be continued......



बस...इसी लिए अलग हूँ...............



कोई कुछ कहे या नही,,ख़ुद को भी तो जवाब देना है…क्योंकि अपनी नजरो में भी मेरा एक स्टैंडर्ड है…ओर बस येखिलखिलाहट एक मुस्कान में बदल जाती है…

कुछ ऐसी ही हूँ मैं…..

बचपन से hi थोडी shy , थोडी सी रिज़र्व…खामोश…किसी सोच में गुम…

मामा बताती हैं की जब छोटी थी तब ज्यादा खेलने के बजाये कुछ न कुछ पढ़ना या ड्राइंग करना ज्यादा पसंद थामुझे…

आज भी मेरी friends जब इकठ्ठी होती हैं तो उनके पसंदीदा topics होते हैं..movies,,फैशन, film stars और boys…


सोचती हूँ कभी मेरा ब्लॉग देखेंगी तो ......


तो मेरी तो खैर नही होगी…लेकिन क्या करूँ..लिखना है तो लिखना है

अब ज़रा अपनी friends की बातो पर निगाह डालते हैं…

हाए निशा,,तूने देखा रणबीर कपूर और दीपिका का नया add…हाय मैं मर जाऊं,,कितना cute लग रहा हैरणबीर….

शरिया…really यार,,रणबीर एकदम hot है..

सना…रणबीर की छोड़…दीपिका कितनी प्यारी होती जारही है,,

मैं बोर होती सुनती रहती हूँ…

बात आगे बढ़ती है,,movies से फैशन तक,,,आजकल फैशन में क्या inn है क्या आउट हो चुका है…

वो मुझे भी हर बार शामिल करना चाहती हैं पर मैं क्या बोलूं?

जब दिल लगता ही नही इन बातो में तो बस ‘हूँ’ हाँ’ ही कर सकती हूँ…

हैरानी होती है कभी कभी…क्या बातें करने के लिए यही topics रह गए हैं?

मैं दोष सिर्फ़ अपनी friends को दूंगी तो ये ज्यादती होगी…collage की दूसरी लडकियां ओर लड़के,,मेरी अपनीबहेन…मेरी cousins..सभी ऐसी हैं…जब कोलकाता में थी,ऐसी ही class fellows से घिरी थी…शहर चाहे कोई भी होदेहरादून,मसूरी,कोल्कता,lakhnow या मुम्बई…कहीं कोई फर्क नही है…

किसी से अगर दुनिया के हालत, पॉलिटिक्स की बातें करो तो महा बोर का certificate मिल जाता है…तब नाचाहते हुए भी लगता है ‘हो न हो मैं ही अलग हूँ…हेहेहे

अब क्या करूँ…हूँ तो हूँ…अपनी मरजी तो बनी नही

खुदा ने ऐसे ही बनाना था मुझे…..

बहुत देर हो गई…

आगे फिर कभी….

To be continued


Sunday, March 16, 2008

मुझे पागल कर दो....

by my fav shaayer Vasi Shah

जब भी पढ़ती हूँ,,मेरे दिल को छू जाती है....


अपने अहसास से छू कर मुझे संदल कर दो
मैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल कर दो
ना तुम्हें होश रहे ओर मुझे होश रहे,
इस कदर टूट के चाहो, मुझे पागल कर दो
तुम हथेली को मेरे प्यार की मेहँदी से रंगो
अपनी आंखो में मेरे नाम का काजल कर दो
उसके साए में मेरे ख्वाब दहेक उठेंगे
मेरे चेहरे पे चमकता हुआ आँचल कर दो
धुप ही धुप हूँ मैं टूट के बरसों मुझ पर
इस कदर बरसों मेरी रूह में जल्थल कर दो
जैसे सहराओं में सरे शाम हवा चलती है
इस तरह मुझ में चलो की मुझे जल्थल कर दो
तुम छुपा मेरा दिल ओट में अपने दिल के
ओर मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
मसला(problem) हूँ तो निगाहें चुराओ मुझसे
अपनी चाहत से तवाज्जाह से मुझे हल कर दो
अपने गम से कहो हर वक़्त मेरे साथ रहें
एक अहसान करो उसको मुसलसल(continue)कर दो
मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत तुम
ओर मेरी जात को सूखा हुआ जंगल कर दो

Thursday, March 13, 2008

ye main hun.. हूँ ये मैं हूँ......

अपने डिपार्टमेन्ट की सीढियों पर बैठे बैठे सब को देखना ओर कुछ सोचते रहना हमेशा से पसंद रहा है. क्लास केबाद सबके अपने अपने मश्गले हैं..कुछ अपने ग्रुप के साथ मस्ती करते हैं तो कुछ कैन्टीन में वक्त गुजारतेहैं.कई क्लास fellows हैं जिनके बीच कुछ ख़ास(स्पेशल) सा रिश्ता है,वो इस कीमती समय को भला कहाँ शेयरकरेंगे.

कुछ मेरे जैसे पागल भी हैं जो किताबो के कीडे कहलाते हैं,ओर इन्ही के साथ जीते ओर मरते हैं.

डिपार्टमेन्ट की सीढियों पर बैठ कर पढ़ना ओर बाकी के समय में सबको निहारते रहना बहोत अच्छा लगताहै.ऐसे में मुझ जैसी thinker या बकोल मेरी friends केथोडी सी पागलके लिए सोचो के जाने कितने दर खुलजाते हैं.

ये सोचें भी अजीब होती हैंइन की कोई सीमा नही कोई हद नहीज़मीन से लेकर आसमानों तक कही भीजासकती हैंकभी किसी के साथ तो कभी अकेले,तनहापर कितनी सच्ची दोस्त होती हैंजब कोई नहीहोता,,,जब सब दूर हो जाते हैं तब भी ये सहेली हम से दूर नही होती,,कितना भी neglect करो..कितना भी पीछाछुदाओये पीछा छोड़ने वालो में से नही हैं….

लेकिन यही तो है जो हमें जीने का अहसास कराती है,,हम इंसान हैं,,हम जी रहे हैं..सिर्फ़ अपने लिए नहीदूसरोके लिए भीहमारे ये अहसास ही याद दिलाते रहते हैं.......

आगे फिर कभी ..........

Wednesday, March 12, 2008

हमें क्या दुःख है........

ये कुछ 'नज्म' हैं जो मेरी तो नही हैं पर मुझे इतनी पसंद हैं की लिखे बिना नही रह सकी...

पूछने वाले तुझे कैसे बताएं आख़िर..

दुःख इबारत तो नही है जो तुझे लिख कर दे दें..

ये कहानी भी नही है की सुनाएँ तुझ को..

ज़ख्म हो तो तेरे नाखून के हवाले कर दें

आईएना भी तो नही जिस को दिखाएँ तुझको

ये कोई राज़ नही जिस को छिपाएं तो वो राज़,

कभी चेहरे कभी आंखों से छलक जाता है,

जैसे आँचल को संभाले कोई,ओर तेज़ हवा..

जब भी चलती है तो शानो से ढलक जाता है,

अब तुझे कैसे बताएं की हमें क्या दुःख है?





मुहब्बत ठहर जाती है..........





हम अक्सर ये समझते है ,,

जइसे हम प्यार करते हैं

उसे हम भूल बैठे हैं ,,

मगर ऐसा नही होता ,,

मुहब्बत दाय्मी सच है.

मुहब्बत ठहर जाती है,

हमारी बात के अन्दर

मुहब्बत बैठ जाती है

हमारी जात के अन्दर मगर

ये कम नही होती...

किसी भी दुःख की सूरत में

कभी कोई ज़रूरत में

कभी अनजान से गम में

कभी लहजे की ठंडक में

उदासी की ज़रूरत में

कभी बारिश की सूरत में

हमारी आँख के अन्दर

कभी आब-ऐ -रवां बनकर

कभी कतरे की सूरत में

बजाहिर ऐसा लगता है उसे

हम भूल बैठे हैं मगर ...

ऐसा नही होता ,मगर ऐसा नही होता ...

ये हरगिज़ कम नही होती ......

मुहब्बत ठहर जाती है..........



Tuesday, March 11, 2008

वो मुझ से कहता है..........

वो अक्सर मुझ से कहता है की वो बिल गेट्स से भी बड़ा आदमी बनना चाहता हैवो कहता है पैसा इंसान कीसबसे बड़ी ज़रूरत है,आप के पास पैसा है तो सब कुछ है,,ये दुनिया सिर्फ़ ओर सिर्फ़ पैसे वालो की हैमैं उस सेपूछती हूँ,,क्या पैसे से सब कुछ खरीदा जासकता है? क्या बिल गेट्स को कोई गम नही होगा? क्या वो कभी बेबसीके साथ रोया नही होगा? क्या जब उसके पास उसके मां ओर बाप नही होंगे तो उसका पैसा उसे उनका वही प्यारलोटा सकेगा?

वो कहता हैहाँ,,उनका नही लेकिन उन जैसा प्यार देने वाले बहोत लोग मिल जायेंगे उसे….क्योंकी उसके पासमनी पॉवर है,,ये ऐसा पॉवर है जो दुनिया की हर ताकत से बड़ा हैये खुशियाँ, प्यार , इज्ज़त ओर शोहरत सबकुछ दे सकता हैपैसा है तो क्या नही मिल सकता,,आज सब कुछ बिक रहा है बस खरीदने के लिए पैसा होनाचाहिए ,,teams बिक रही हैं,,महान से महान खिलाडी बिक रहे हैं..ओर उन्हें खरीद कोन रहा है?वो जिसके पासमनी हैमैं उसे हैरत से देखती रहती हूँ ओर पूछ बैठती हूँ,,,शायेद तुम कुछ हद तक सही हो पर मुझे ऐसा क्योंलगता है कि तुम ग़लत हो,,,मेरी सोच तुम्हारे जैसी क्यों नही है? पैसा मेरे लिए वो सब क्यों नही है जो तुम्हारेलिए है?

वो मेरे पास आता है,,मेरी आंखो में देखते हुए मुस्कुरा कर कहता है,,क्योंकी तुम एकदम पागल हो,,तुम्हें God नेख़ास ज़रूर बनाया है पर तुम्हारी सोच एकदम आम लड़कियों जैसी है,,,गांव देहात कि innocent लड़कियोंजैसी….तुम्हें क्या लगता है,,अपनी इस सोच के साथ तुम कहाँ जाओगी? तुम ये जो हर समय मज़हब, cultureओर वतनपरस्ती का राग अलापती रहती हो,,इनकी आज कही कोई जगह नही है,,इंग्लिश में class में टॉप करनेवाली लड़की जब उर्दू ओर हिन्दी कि हिमायत में बोलती है तो बस हँसी आती है,,ये उर्दू ओर हिन्दी से प्यारजता कर क्या करोगी तुम? जिनकी दुनिया के किसी ओर हिस्से में क्या अपने देश में कोई पूछ नही है,,ज़मानाहम इंग्लिश lovers का है यार…..इंडिया सुपर पॉवर हम जैसे youngsters के सहारे ही बन सकता हैरहातुम्हारा future तो वो तो वही होगा,,,husband को ऑफिस भेज कर सास कि सेवा करते हुएसास बहुवालेसीरियल देखते,,शाम को पति के लिए चाय नाश्ता बनाते ओर ओर अपने शैतान बच्चो को होमवर्क करवाते कबबुढापा आज्येगा पता ही नही चलेगा….

मैं मुसुक्राते हुए उसे देखती रहती हूँ,,जवाब मेरे पास बहोत हैं पर उसे बोलते देखना पता नही क्यों अच्छा लगताहै मुझे….वो जोश से बोलता हुआ,,मेरी बातो पर चिड्ता ओर गुस्सा करता हुआ बहोत ऊँचे ऊँचे सपने देखने वालालड़का,,,मुझे बच्चो जैसा innocent दिखाई देता है,,वही बच्चो वाला उतावलापन,,वही गुस्सा वही जिद,,आसमानके चाँद को छूने ओर पाने कि तमन्ना करता हुआ वो लड़का आज हमारे खूबसूरत देश के हर युवा कि जुबां बोलरहा हैवो ख़ुद को ख़ास कहता है पर सच तो ये है कि उसकी ये सोच आज हमारे हर युवा कि है,,,जल्दी से मंज़लपर पहुँचने कि तमन्नाजल्दी,,तेज़ओर जब जल्दी पहुँचाना है तो तेज़ चलना नही,दोढ़ना पड़ता है,,,जब सभीदोड रहे हों तो इस दोड में भी आगे निकलने कि होड़….टॉप पर पहुँचने कि ख्वाहिश ओर इस ख्वाहिश में हर उसचीज़ को कुचलते चले जाना,,जो आपको इस होड़ में कही से भी disturb करती होंवो चीज़ें चाहे हमारे रिश्तेहों,,हमारा मज़हब हो,,हमारा culture हो या हमारी परम्पराएँ….

उसके आदर्श आज न महात्मा गांधी हैं न Sir सय्यद अहमद खान न मदर ट्रेअसा,,उसके आदर्श आज bill gates ओर अनिल अम्बानी हैं,,,,मैं उसे मुस्कुराते हुए बस देखती रहती हूँ ओर वो मेरे चुप रहने पर ओर चिद्ता है,,,,वो कहता है कि मेरी सोच बिल्कुल आम लड़की कि सोच है,,,कितना नादान है वो,,मैं उसे क्या बताऊँ कि आज हमारी आम लड़की के सपने भी बहोत बड़े हो गए हैं,,,घरो में बर्तन धोने वाली लड़की का सपना भी बहोत सारा पैसा है तो मिस इंडिया ओर miss world जैसे कांटेस्ट में mother treasa को अपनी आदर्श बताने वाली लड़की भी परक्टिकल लाइफ में आकर मदर ट्रेअसा कि राह पर चलने के बजाये वहाँ जाती है जहाँ ढेर सारा पैसा उसका मुन्ताज़र

है…………..इस में नया क्या है,,,अब मैं उसे कैसे समझाओं कि मेरी सोच तुम्हारे जैसे लोगो के लिए आम सही मेरेलिए special हैहाँ मेरे सपने बहोत छोटे हैं,,,पर इन सपनो से प्यार है मुझेमैं ऐसी ही हूँ,,छोटी छोटी खुशियों परहंसने वाली,,ओर छोटे से दुःख पर रो पड़ने वालीइंग्लिश में टॉप करना मेरे कैरिअर का हिस्सा है ओर ये हिस्सामजबूरी हुआ करता है पर उर्दू ओर हिन्दी मेरे दिल में रहती हैं क्योंकी ये हमारी राष्त्र भाषाएं हैं ओर यही हमारीपहचान हैं,,हाँ मैं पहले अपने देश,अपने मज़हब ओर अपने culture से प्यार करती हूँ,,,हो सकता है मेरे जैसे लोगोसे ये देश सुपर पॉवर बने पर हमारे जैसे लोग इस देश को उन लोगो का देश बनायेंगे जिन के ज़मीर ज़िनदाहैं,,,जो इंसान हैं रोबोट नही जिनके अहसास ज़िनदा हैं जिनकी फीलिंग्स ज़िनदा हैं,,वरना एक सुपर पॉवर तोहमारे सामने है,,जहाँ के लोग ज़िनदा तो हैं पर उनके ज़मीर कब के मर चुके हैं,,पर मैं ये सब उस से नही कहनाचाहतीजानती हूँ वो नही समझेगासो मुस्कुराकर उसे चिढाने में क्या हर्ज है….हैना