
यादें जालिम भी होती हैं, तो हसीन भी होती हैं. दिल को जितना तड़पाती हैं, उतना ही सुकून भी दिया करती हैं.
कभी कभी तो ये यादें इंसान के अन्दर एक दुनिया सी आबाद कर देती हैं. यादों का मेरी जिंदगी में बड़ा अहम् रोल है. यादों में मैं जीती तो नही, लेकिन कुछ यादें जीने का बहुत बड़ा जरिया भी हैं मेरे लिए.
खैर आज तो खुशी का दिन है तो क्यों ना कुछ खुश गवार यादों की बस्ती में डेरा डाला जाए.
त्योहारों का मौसम है. हर तरफ़ खुशियाँ अंगडाइयां ले रही हैं. ये त्यौहार होते ही ऐसे हैं. गम के हर बादल को हटा कर अपनी जगह बना लेते हैं. एक दिन के लिए इंसान हर गम, हर अंदेशे भुला कर बस इन्हीं का हो जाता है.
दशहरा जब भी आता है, मुझे कोलकाता की याद आती है. मेरा वो शहर जहाँ मेरा बचपन बीता.जिंदगी के एक एक पल को जहाँ बड़ी शिद्दत से जिया मैंने. जवानी की नाज़ुक सी कोंपल ने धीरे से इसी शहर में छुआ था मुझे.
कोलकाता याद आता है तो दुर्गा पूजा की याद अपने आप दिल के झरोखे में अपनी झलक दिखला जाती है.
कोलकाता की दुर्गा पूजा, जब भी याद आती है दिल बड़े खूबसूरत अंदाज़ में धड़कने लगता है. इस मौके की जाने कितनी हसीन यादें मेरे साथ जुड़ी हुयी हैं.जिन्हें मैं चाहूँ भी तो भूल नही पाती.
त्यौहार आने की आहट ही दिलों को उमंगों से भर देती थी. चारों तरफ़ जैसे एक अलग सा नशा छा जाता था. पता नही क्यों, पर ईद की ही तरह ये त्यौहार मुझे अपना त्यौहार महसूस हुआ करता था. वैसी ही तैयारी हम इसके लिए करते थे, नए कपड़े, ज्वेलरी दोस्तों के लिए तोहफे…ओह .आज सोचती हूँ तो बड़ा अजीब सा लगता है. आख़िर क्यों, आज हम पहले की तरह इस त्यौहार से अपने आप को जुडा महसूस क्यों नही कर पाते ? सोचती हूँ तो वजहें बड़ी साफ़ साफ़ दिखायी देने लगती हैं.
दरअसल कोलकाता ही असली मायनों में वो शहर है जहाँ असली सेकुलरिज्म दिखायी देता है. एक अकेला शहर जहाँ ईद जब आती थी तो लगता था हम किसी मुस्लिम शहर में चले आए हैं. सारा शहर सज उठता था. हर तरफ़ रौनक और खुशियाँ. हर मज़हब के लोग इस त्यौहार से जुड़े दिखायी देते थे. बंगाली हों या ईसाई, सबको सेवईयां खरीदते देख सकते हैं आप,दुर्गा पूजा में सारा शहर दुल्हन की तरह सज जाता था तो वैसी ही सजावट और खूबसूरती क्रिसमस पर दिखायी देती थी. शायद किसी को यकीन ना आए लेकिन हम बच्चे ही नही हमारी सारी फैमिली क्रिसमस पर चर्च जाती थी. वहां जाकर बड़ा ही सुकून और खुशी का अहसास होता था.
इसे वहां के लोगों के दिलों की खूबसूरती से ज़्यादा वहां की कम्निस्ट सरकार जादू कहा जाए तो ग़लत नही होगा.
मैं नही जानती कि अब बुद्धदेव भट्टाचार्य का कोलकाता भी वैसा ही है या नही लेकिन मैंने ज्योति बासु का कोलकाता देखा था और मैं पूरे यकीन से कहती हूँ की अगर ज्योति बासु इतने लंबे अरसे तक बंगाल में राज करते रहे तो इस में कोई हैरानी की बात नही थी. वैसा मुख्यमंत्री पता नही हम दुबारा कभी देख पायें या नही .
वजह साफ़ है, जहाँ हर मज़हब का एहतराम होगा, जहाँ किसी के साथ नाइंसाफी नही होगी , कोई कोम अपने आप को दूसरे से कमतर नही महसूस करेगी, वहाँ प्यार और मुहब्बतों के जज्बे अपने आप ही जग जाते हैं.
दुर्गा पूजा की एक यादगार शाम आज भी मेरे दिल में मुस्कुरा उठी है.
मेरी एक दोस्त थी, मोह चटर्जी. उसके बेपनाह इसरार पर मैं उसके घर गई थी. काफी धनवान फैमिली थी उनकी, इसी लिए हर साल दुर्गा पूजा का शानदार इंतजाम उनके यहाँ किया जाता था. बेहद खूबसूरत पंडाल जिसे देखकर किसी किले का सा अहसास होता था, में शानदार स्टेज पर संगमरमर की दुर्गा जी, जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती थी. सफ़ेद सुर्ख और सुनहरे ज़रदोजी के काम वाली साड़ी और गोल्ड की भारी ज्वेलरी में वो इतनी हसीन नज़र आती थीं की बस नज़रें उन पर से हटती ही नही थीं.
बहरहाल उस शाम ममा की तबियत ठीक नही थी इसलिए मुझे बहन के साथ जाना पड़ा था.हमें देख कर मोह बहुत खुश थी. हमेशा की तरह वो बड़ी खूबसूरत साड़ी में ज्वेलरी पहने बड़ी प्यारी लग रही थी.
मुझे देख कर उसने जिद करनी शुरू कर दी की तुमने साड़ी क्यों नही पहनी. मैंने लाख बहाने बनाए लेकिन उसने मेरी एक नही सुनी और अपनी मम्मी की साड़ी पहनाने की फरमाइश करने लगी. सच कहूँ तो इस से पहले मैंने कभी साड़ी न पहनी थी ना ही पहनने की सोची थी. हालांकि मम्मी हमेशा साड़ी ही पहनती थीं लेकिन हमारे यहाँ शादी से पहले साड़ी पहनने का कोई रिवाज नही था. कुछ ख़ुद मुझे भी साड़ी बड़ी झंझट का लिबास लगा करता था(सच कहूँ तो आज भी…) लडकियां फेयरवेल पार्टी में बड़े शौक से साड़ी पहनती हैं, लेकिन मैंने उस मौके पर भी लहंगे से काम चलाया था.
लेकिन उसने कुछ इतने मान से मुझ से ये फरमाइश की कि मैं चाह कर भी उसे ‘ना’ नही कह पायी. मुझे पहननी पड़ी, इतनी हँसी आरही थी, वो पहना रही थी और मुझे गुदगुदी हो रही थी. थोडी देर में ही उसने बड़ी महारत से मुझे साड़ी पहना दी और सच पूछिए तो जब मैंने खुदको आईने में देखा तो एक पल को लगा जैसे मैं किसी और को देख रही हूँ. एकदम से काफी बड़ी सी लगने लगी थी, हमेशा से एकदम अलग. अपना आप अच्छा तो लग रहा था लेकिन साथ शर्म भी आरही थी कि ऐसे लिबास में बाहर सब के दरमियान कैसे जाउंगी?
आँचल से खुको ढकती, कभी आँचल तो कभी चुन्नट और कभी ज्वेलरी संभालती कभी इधर उधर देखती मैं आज भी अपनी उस कैफियत को भूल नही पाती. मेक -अप से चिढ़ने वाली लड़की को आज उसने ज़बरदस्ती से मेक -अप भी कर डाला था. इस में मोह का साथ मेरी बहन ने भी भरपूर तरीके से दिया था. जी भर के दोनों को कोसती हुयी मैं हिम्मत कर के बाहर आई थी. पंडाल में पहुँची तो एकदम जी चाहा, भाग जाऊं, ओह मेरे खुदा, इतनी नज़रें, सारी की सारी जैसे मुझ पर जम सी गई थीं, ऐसा लग रहा था, जैसे सबको पता हो कि इस लड़की ने पहली बार साड़ी पहनी है.
बड़ी मुश्किल से पसीना पोंछती खुदको संभालती, मैं स्टेज तक पहुँची थी. पूजा अपने शबाब पर थी, भक्ति में डूबे सब नाच रहे थे, मोह की फैमिली के कई लोग आए हुए थे, कुछ विदेश से भी ख़ास तौर से इसी मौके पर आते थे. मोह ने बड़ा प्यारा डांस किया. उसका डांस देखते देखते मैं अपनी सारी घबराहट भूल गई थी. हम सब जैसे एक रंग में डूब गए थे, मुहब्बत का रंग, भक्ति और विशवास का रंग. लेकिन तभी एक अजीब बात हुयी, मोह का एक कजिन, जो विदेश से आया था, उसने अचानक मेरे पास आकर मुझे भी डांस करने को कहा, मेरी सारी बौखलाहट फिर से वापस आगई, डांस और मैं?
वो भी इतने सारे लोगों के बीच?
लाख मना किया लेकिन वो बन्दा भी अपने आप में एक था, इस से पहले कि मैं रोना शुरू कर देती, मोह की मम्मी ने आकर उसे समझाया. वो उसे किसी काम के बहने ले गयीं तब मेरी जान में जान आई, मैंने मोह को कड़ी नज़रों से देखा जो हँसे जारही थी. उसके बाद मैं वहां नही रुकी, उसकी जिद से इस कदर घबरा गई कि मामा की तबियत का बहाना बनाकर जल्दी वहां से निकल आई. यहाँ तक की साड़ी पहने पहने ही घर आगई. मम्मी सो रही थीं. जल्दी जल्दी कपड़े बदले और तब जान में जान आई.
बाद में मोह ने बताया था कि उसका वो कजिन वापस आकर काफी देर मुझे पूछता रहा. मुझे बहुत हँसी आई.
आज भी वो दुर्गा पूजा याद आती है तो मुस्कुराए बिना नही रहती. पहली बार साड़ी पहना और फिर उस लड़के की जिद……मेरा बौखलाना, इतने लोग...उफ़
आज बड़ी शिद्दत से कोलकाता, अपनी दोस्त और दुर्गा पूजा को मिस कर रही हूँ. सोचती हूँ, काश मुहब्बतों और अपनाइयत की वो खुशबू हमारे हर शहर को वैसे ही अपनी आगोश में ले ले, जैसे मेरे उस शहर को लिए थी.जिसकी खुशबू में मेरा आज भी तं मन महका हुआ है....काश..