
उम्मीद तो ख़ामोशी से अपना दामन समेटे कब की जा चुकी थी. फिर भी एक आस जो दिल के गोशे में कहीं सिमटी हुयी थी, आज खामोशी से दम तोड़ गयी. इंसान कितना मजबूर हो जाता है कुदरत के आगे, चुपचाप उसके दिए हुए हर गम कुबूल कर लेना मजबूरी ही तो है.
दिल तो सुबह से उदास था, तबियत भी कई दिन से ख़राब थी, नींद को बुलाते बुलाते आँखें तो पहले ही थक जाती थी लेकिन आज इस खबर ने जैसे आँखों को भीगने का एक बहाना दे दिया.
ज्योति बासु नहीं रहे, लिखते हुए उंगलियाँ जाने क्यों काँप सी रही हैं.
यही दुनिया है, हर इंसान को दुनिया के इस स्टेज पर अपना किरदार निभा कर चले जाना है पर क्यों किसी का जाना इतना रुला देता है?
आज जब उन्हें सोचती हूँ तो साथ अपना बचपन दिखाई देने लगा है. ज्योति बाबु के कोल्कता में बीता था मेरा बचपन, ये वो वक्त था जब कोल्कता का नाम लेते ही ज्योति बाबु याद आते थे तो उनका नाम लेते ही कोल्कता शहर याद आता था. ऐसा इसलिए नहीं था की वो इतने लम्बे अरसे तक बंगाल के चीफ मिनिस्टर रहे, नहीं...जो लोग उन्हें जानते होंगे, वही बता सकते हैं कि ज्योति बाबु बंगाल में रहने वाले हर इंसान के दिल में बसते थे.
मैं कोई जर्नलिस्ट नहीं हूँ, न ही किसी सियासत से मुझे मतलब है, मैं जो कुछ लिख रही हूँ आज एक आम इंसान की आवाज़ के रूप में लिख रही हूँ...वो सियासी पहलु से क्या थे ये सियासतदान जानें, उनकी पोलिटिकल पोलिसीज़ कैसी थीं ये जर्नलिस्ट बताएं , लेकिन एक आम शहरी की निगाहों से उन्हें देखना है तो मेरी आँखों से देखें.
ज्योति बाबु का कोल्कता......सेकुलरिज्म का जीता जागता नमूना , किसी को किसी से शिकायत नहीं, अपनाइयत, मुहब्बत और सादगी जहाँ के लोगों के दिलों में बसती थी.
हम शहर के जिस हिस्से में रहते थे, उसे कोलकता का दिल कहा जाए तो गलत नहीं होगा, अरे जनाब आचार्य जगदीश चन्द्र बोस रोड , जहाँ हमारा फ्लैट था. दो बिल्डिंग छोड़ कर मिशनरी ऑफिस और दो मिनट की दूरी पर कम्निस्ट ऑफिस...हुआ न कोल्कता का दिल...
दूर से तो उन्हें कई बार देखा लेकिन करीब से देखने का एक बार मौका मिला , वो मौका और वो लम्हा जो मेरी बिसारतों में मुन्जमिद होकर रह गया है.
२६ जनवरी की तैयारियां वैसे तो हमेशा खूब जोर शोर से हमारे स्कूल में हुआ करती थीं लेकिन उस बार तैयारी में एक गैर मामूली जोश का अहसास था, बच्चों को तो खैर कुछ पता नहीं था. वो तो हमेशा की तरह पूरे जोश खरोश से अपनी अपनी तैयारी कर रहे थे...
मुझे अपनी दोस्त और बहन के साथ एक नज़्म (poem)पढनी थी...खैर हम ने जी जान से मेंहनत की...
२६ जनवरी का दिन आगया, और उसी दिन हमें पता चला की हमारे स्कूल में आज ज्योति बासु आने वाले हैं....बच्चों की हालत क्या थी ना पूछिए..मैं क्या बताऊँ, हमेशा की शर्मीली दब्बू सी लड़की अन्दर से और डर गयी...लेकिन दिल में कहीं दबा दबा सा जोश भी मुस्कुरा रहा था...दिल था की धड़कता ही जारहा था...
और फिर किसी ख़्वाब की मानिंद वो आगये....मैं बस उन्हें देखती रह गयी...उनका वो खूबसूरत चेहरा, कुशादा पेशानी , सादगी में बसा उनका वजीह सरापा...लेकिन सबसे ज्यादा जिस ने मुझे हैरान किया वो थीं उनकी आँखें...ज़हानत से लबरेज़ उन आँखों में क्या था , ये मैं शायद कोशिश भी करूँ तो लिख नहीं पाउंगी...
हमारी बारी आई, और हम ने वो नज़्म बिना किसी झिझक के अपनी उम्मीदों से बढ़ कर बेहतर सुनाया, मैं आज भी हैरान हूँ, मेरी आवाज़ हमेशा अपनी दोस्तों और बहन के बीच दब सी जाती थी, उस दिन पहली बार मैंने खुद को नुमायाँ पाया..सोचती हूँ, ये उनकी मौजूदगी का ही तो एजाज़ था
प्रोग्राम ख़तम हुआ , तालियों के शोर के थमते ही ज्योति बाबु उठे और सारे बच्चों को तोहफा देने लगे, अचानक ही न जाने दिल में क्या आया , आज जब उन लम्हों को याद कर रही हूँ तो हैरानी से सोचती ही रह जाती हूँ की शर्मीली सी उस बच्ची को इतनी हिम्मत कहाँ से आगई थी...यकीन तो मुझे आज भी नहीं आरहा है...
जाने दिल में क्या समाया कि कापी से पेज फाड़ा और कांपते हाथों से जो दिल में उस वक्त आया लिख कर धीरे से उनके सामने जाकर खड़ी हो गयी, जब वो मेरी तरफ मत्वज्जा हुए तो कांपते हाथों से वो पेज उनकी तरफ बढ़ा दिया था मैंने...उन्होंने बड़ी दिलचस्पी और थोड़ी हैरानी से उसे पढ़ा और फिर उसे जोर से दोहराया 'ज्योति बाबु ...यू आर इन माई हार्ट '' वो मुस्कुराए और मेरा हाथ थाम कर अपने पास बुलाया...मैं निगाहें झुकाए उनके करीब चली आई, सब मुझे दिलचस्पी से देख रहे थे...उन्होंने बड़े प्यार से मेरा नाम पूछा और पता नहीं मैंने इतनी आहिस्तगी से अपना नाम बताया था या मेरा नाम ही इतना मुश्किल था, बहरहाल उन्होंने दोबारा पूछा तब मैंने कोशिश कर के जोर से उन्हें अपना नाम बताया, उन्होंने जो नाम दोहराया , उसे सोचकर आज भी लबों पर मुस्कराहट आजाती है...'रोक्शंदा '
हमारी टीचर जो मेरे मिज़ाज के बारे जानती थी, उनसे मेरा ताआरुफ़ कराते हुए कहा था कि she is the best student of our class .............
ज्योति बाबु ने मेरे सर पर हाथ रखा और जो कुछ कहा वो उनके दिए हुए तोहफे से कहीं ज्यादा कीमती था मेरे लिए . मैं कभी उसे भुला नहीं पाउंगी.
उन्होंने कहा ''you r the sweetest girl, i have ever seen''
बस उस एक जुमले ने जैसे उस दिन मुझे दुनिया की सब से ख़ास लड़की बना दिया था, अचानक सब की निगाहों में मैं कुछ और बन गयी थी...कुछ शर्मीलेपन का अहसास कुछ फख्र का सुनहरा रंग....मैं वो लम्हा कभी भूल नहीं सकी.
वो चले गए लेकिन हमेशा मेरे दिल में रहे...कई बार दिल शिद्दत से उनसे एक बार और मिलने की तमन्ना करता रहा लेकिन सारी तमन्नाएं कहाँ पूरी हुआ करती हैं...
पहले वो शहर छूटा, फिर ज्योति बाबु ने खामोशी से अपनी कुर्सी छोड़ दी.
आम आदमी के दिल में बसने वाले उस लीडर को किसी ओहदे का लालच कभी था ही नहीं, पार्टी के लिए पी.एम्. का ओहदा ठुकराने वाले,हिदू मुस्लिम, सिख ईसाई हर मज़हब को अपने दिल में बसाने वाले, गरीब अमीर सब को मुहब्बत बांटने वाले उस इंसान की शान में मैं भला क्या लिख सकती हूँ.
उन्होंने इतने लम्बे अरसे बंगाल के चीफ मिनिस्टर रहते हुए पूरे बंगाल के लोगों में मुहब्बतों को जो पैगाम बांटा वो आज भी जिंदा है और नस्लों तक जिंदा रहेगा.
कई लोगों ने मुझ से कहा की उनकी economical policies ने कोल्कता को मुंबई और दिल्ली से काफी पीछे कर दिया, मैं उनकी policies पर कोई कमेन्ट नहीं करना चाहती, लेकिन इतना ज़रूर कहूँगी कि हो सकता है कि तरक्की में कोल्कता , मुंबई और दिल्ली की बराबरी नहीं कर पाया हो लेकिन क्या सेकुलरिज्म के मामले में मुंबई और दिल्ली उसके आस पास भी ठहर सकते हैं?
हमें ऐसी तरक्की नहीं चाहिए जिस में से बेगुनाह इंसानों के खून की बू आती हो...हमें ऐसा शहर और माहौल चाहिए जहां अपनेपन और मुहब्बतों की खुशबू आती हो...जहाँ न हिन्दू रहता हो न मुस्लिम..न सिख न ईसाई...जहाँ सिर्फ और सिर्फ इंसान रहते हों ...
हाँ,,ऐसा ही था ज्योति बाबु का कोल्कता और बंगाल...
क्या हुआ जो आज वो जिस्मानी तोर पर हमारे बीच नहीं हैं...वो तो मेरे जैसे हर इंसानों के दिल में रहते हैं और हमेशा रहेंगे...
जहाँ तक मेरा सवाल है, हर इंसान की तरह मेरा बचपन भी मेरे दिल के एक खूबसूरत कोने में मौजूद है, फुर्सत के किसी भी प्यारे लम्हे में जब भी यादों के उस अल्बम को खोलूंगी...ज्योति बाबु तो उसमें मौजूद ही रहेंगे...शायद आखिरी साँसों तक...
दिल तो सुबह से उदास था, तबियत भी कई दिन से ख़राब थी, नींद को बुलाते बुलाते आँखें तो पहले ही थक जाती थी लेकिन आज इस खबर ने जैसे आँखों को भीगने का एक बहाना दे दिया.
ज्योति बासु नहीं रहे, लिखते हुए उंगलियाँ जाने क्यों काँप सी रही हैं.
यही दुनिया है, हर इंसान को दुनिया के इस स्टेज पर अपना किरदार निभा कर चले जाना है पर क्यों किसी का जाना इतना रुला देता है?
आज जब उन्हें सोचती हूँ तो साथ अपना बचपन दिखाई देने लगा है. ज्योति बाबु के कोल्कता में बीता था मेरा बचपन, ये वो वक्त था जब कोल्कता का नाम लेते ही ज्योति बाबु याद आते थे तो उनका नाम लेते ही कोल्कता शहर याद आता था. ऐसा इसलिए नहीं था की वो इतने लम्बे अरसे तक बंगाल के चीफ मिनिस्टर रहे, नहीं...जो लोग उन्हें जानते होंगे, वही बता सकते हैं कि ज्योति बाबु बंगाल में रहने वाले हर इंसान के दिल में बसते थे.
मैं कोई जर्नलिस्ट नहीं हूँ, न ही किसी सियासत से मुझे मतलब है, मैं जो कुछ लिख रही हूँ आज एक आम इंसान की आवाज़ के रूप में लिख रही हूँ...वो सियासी पहलु से क्या थे ये सियासतदान जानें, उनकी पोलिटिकल पोलिसीज़ कैसी थीं ये जर्नलिस्ट बताएं , लेकिन एक आम शहरी की निगाहों से उन्हें देखना है तो मेरी आँखों से देखें.
ज्योति बाबु का कोल्कता......सेकुलरिज्म का जीता जागता नमूना , किसी को किसी से शिकायत नहीं, अपनाइयत, मुहब्बत और सादगी जहाँ के लोगों के दिलों में बसती थी.
हम शहर के जिस हिस्से में रहते थे, उसे कोलकता का दिल कहा जाए तो गलत नहीं होगा, अरे जनाब आचार्य जगदीश चन्द्र बोस रोड , जहाँ हमारा फ्लैट था. दो बिल्डिंग छोड़ कर मिशनरी ऑफिस और दो मिनट की दूरी पर कम्निस्ट ऑफिस...हुआ न कोल्कता का दिल...
दूर से तो उन्हें कई बार देखा लेकिन करीब से देखने का एक बार मौका मिला , वो मौका और वो लम्हा जो मेरी बिसारतों में मुन्जमिद होकर रह गया है.
२६ जनवरी की तैयारियां वैसे तो हमेशा खूब जोर शोर से हमारे स्कूल में हुआ करती थीं लेकिन उस बार तैयारी में एक गैर मामूली जोश का अहसास था, बच्चों को तो खैर कुछ पता नहीं था. वो तो हमेशा की तरह पूरे जोश खरोश से अपनी अपनी तैयारी कर रहे थे...
मुझे अपनी दोस्त और बहन के साथ एक नज़्म (poem)पढनी थी...खैर हम ने जी जान से मेंहनत की...
२६ जनवरी का दिन आगया, और उसी दिन हमें पता चला की हमारे स्कूल में आज ज्योति बासु आने वाले हैं....बच्चों की हालत क्या थी ना पूछिए..मैं क्या बताऊँ, हमेशा की शर्मीली दब्बू सी लड़की अन्दर से और डर गयी...लेकिन दिल में कहीं दबा दबा सा जोश भी मुस्कुरा रहा था...दिल था की धड़कता ही जारहा था...
और फिर किसी ख़्वाब की मानिंद वो आगये....मैं बस उन्हें देखती रह गयी...उनका वो खूबसूरत चेहरा, कुशादा पेशानी , सादगी में बसा उनका वजीह सरापा...लेकिन सबसे ज्यादा जिस ने मुझे हैरान किया वो थीं उनकी आँखें...ज़हानत से लबरेज़ उन आँखों में क्या था , ये मैं शायद कोशिश भी करूँ तो लिख नहीं पाउंगी...
हमारी बारी आई, और हम ने वो नज़्म बिना किसी झिझक के अपनी उम्मीदों से बढ़ कर बेहतर सुनाया, मैं आज भी हैरान हूँ, मेरी आवाज़ हमेशा अपनी दोस्तों और बहन के बीच दब सी जाती थी, उस दिन पहली बार मैंने खुद को नुमायाँ पाया..सोचती हूँ, ये उनकी मौजूदगी का ही तो एजाज़ था
प्रोग्राम ख़तम हुआ , तालियों के शोर के थमते ही ज्योति बाबु उठे और सारे बच्चों को तोहफा देने लगे, अचानक ही न जाने दिल में क्या आया , आज जब उन लम्हों को याद कर रही हूँ तो हैरानी से सोचती ही रह जाती हूँ की शर्मीली सी उस बच्ची को इतनी हिम्मत कहाँ से आगई थी...यकीन तो मुझे आज भी नहीं आरहा है...
जाने दिल में क्या समाया कि कापी से पेज फाड़ा और कांपते हाथों से जो दिल में उस वक्त आया लिख कर धीरे से उनके सामने जाकर खड़ी हो गयी, जब वो मेरी तरफ मत्वज्जा हुए तो कांपते हाथों से वो पेज उनकी तरफ बढ़ा दिया था मैंने...उन्होंने बड़ी दिलचस्पी और थोड़ी हैरानी से उसे पढ़ा और फिर उसे जोर से दोहराया 'ज्योति बाबु ...यू आर इन माई हार्ट '' वो मुस्कुराए और मेरा हाथ थाम कर अपने पास बुलाया...मैं निगाहें झुकाए उनके करीब चली आई, सब मुझे दिलचस्पी से देख रहे थे...उन्होंने बड़े प्यार से मेरा नाम पूछा और पता नहीं मैंने इतनी आहिस्तगी से अपना नाम बताया था या मेरा नाम ही इतना मुश्किल था, बहरहाल उन्होंने दोबारा पूछा तब मैंने कोशिश कर के जोर से उन्हें अपना नाम बताया, उन्होंने जो नाम दोहराया , उसे सोचकर आज भी लबों पर मुस्कराहट आजाती है...'रोक्शंदा '
हमारी टीचर जो मेरे मिज़ाज के बारे जानती थी, उनसे मेरा ताआरुफ़ कराते हुए कहा था कि she is the best student of our class .............
ज्योति बाबु ने मेरे सर पर हाथ रखा और जो कुछ कहा वो उनके दिए हुए तोहफे से कहीं ज्यादा कीमती था मेरे लिए . मैं कभी उसे भुला नहीं पाउंगी.
उन्होंने कहा ''you r the sweetest girl, i have ever seen''
बस उस एक जुमले ने जैसे उस दिन मुझे दुनिया की सब से ख़ास लड़की बना दिया था, अचानक सब की निगाहों में मैं कुछ और बन गयी थी...कुछ शर्मीलेपन का अहसास कुछ फख्र का सुनहरा रंग....मैं वो लम्हा कभी भूल नहीं सकी.
वो चले गए लेकिन हमेशा मेरे दिल में रहे...कई बार दिल शिद्दत से उनसे एक बार और मिलने की तमन्ना करता रहा लेकिन सारी तमन्नाएं कहाँ पूरी हुआ करती हैं...
पहले वो शहर छूटा, फिर ज्योति बाबु ने खामोशी से अपनी कुर्सी छोड़ दी.
आम आदमी के दिल में बसने वाले उस लीडर को किसी ओहदे का लालच कभी था ही नहीं, पार्टी के लिए पी.एम्. का ओहदा ठुकराने वाले,हिदू मुस्लिम, सिख ईसाई हर मज़हब को अपने दिल में बसाने वाले, गरीब अमीर सब को मुहब्बत बांटने वाले उस इंसान की शान में मैं भला क्या लिख सकती हूँ.
उन्होंने इतने लम्बे अरसे बंगाल के चीफ मिनिस्टर रहते हुए पूरे बंगाल के लोगों में मुहब्बतों को जो पैगाम बांटा वो आज भी जिंदा है और नस्लों तक जिंदा रहेगा.
कई लोगों ने मुझ से कहा की उनकी economical policies ने कोल्कता को मुंबई और दिल्ली से काफी पीछे कर दिया, मैं उनकी policies पर कोई कमेन्ट नहीं करना चाहती, लेकिन इतना ज़रूर कहूँगी कि हो सकता है कि तरक्की में कोल्कता , मुंबई और दिल्ली की बराबरी नहीं कर पाया हो लेकिन क्या सेकुलरिज्म के मामले में मुंबई और दिल्ली उसके आस पास भी ठहर सकते हैं?
हमें ऐसी तरक्की नहीं चाहिए जिस में से बेगुनाह इंसानों के खून की बू आती हो...हमें ऐसा शहर और माहौल चाहिए जहां अपनेपन और मुहब्बतों की खुशबू आती हो...जहाँ न हिन्दू रहता हो न मुस्लिम..न सिख न ईसाई...जहाँ सिर्फ और सिर्फ इंसान रहते हों ...
हाँ,,ऐसा ही था ज्योति बाबु का कोल्कता और बंगाल...
क्या हुआ जो आज वो जिस्मानी तोर पर हमारे बीच नहीं हैं...वो तो मेरे जैसे हर इंसानों के दिल में रहते हैं और हमेशा रहेंगे...
जहाँ तक मेरा सवाल है, हर इंसान की तरह मेरा बचपन भी मेरे दिल के एक खूबसूरत कोने में मौजूद है, फुर्सत के किसी भी प्यारे लम्हे में जब भी यादों के उस अल्बम को खोलूंगी...ज्योति बाबु तो उसमें मौजूद ही रहेंगे...शायद आखिरी साँसों तक...
20 comments:
स्कूली दिनों में हम जी. के. के तहत उनका नाम रटे थे... फिर जब जाना तो... बस...
उनके निधन के बारे में जानकर दुःख हुआ . नमन करता हूँ .....
ज्योति बाबू उन महात्माओं में से थे जिनके विरोधी भी सम्मान करते हैं, वे कहीं भी रहे, हर एक से आदर सम्मान ही प्राप्त किया ! उनको याद करने के लिए शुक्रिया !
bahut hee dil ko Coone baalee post.
ज्योति बाबू की उम्र हो चुकी थी। उन्हें जाना था वे चले गए। मुझे उन्हें सुनने का अवसर मिला था। उन की कमी बहुतों को खलती रहेगी।
मुझे खुशी है इस बहाने ही सही कोई साल भर बाद प्रेटी वूमन एक बार फिर हमारे बीच है। आप अब फिर जाइएगाष लेकिन इतने दिनों तक के लिए नहीं। ब्लाग जगत को आप जैसे लोगों की जरूरत है।
आज बहुत दिनो बाद ब्लॉग पर आना हुआ तो देखा कि फिर से लिखना शुरु किया है आपने। ज्योति बाबू के बारे में आपने जो निजी संस्मरण बाँटे हैं उनसे उनके प्रति बंगाल के आम जन का प्रेम झलकता है। प्रधानमंत्री बनने का अवसर लगभग मिल गया था उन्हें पर क्या सोचकर कम्युनिस्टों ने देवगोड़ा को वो मौका दिया ये मेरी समझ नही आया। उनके क़द का दूसरा लीडर वामपंथ में कब आएगा ये बड़ा प्रश्न है आज के दिन में।
हम सब ने एक दिन जाना है, अपना समय आने पर , ज्योति बाबू काफ़ी उम्र के हो गये थे, फ़िर जाना ही था, बाकी मै भारत की राज नीति के बारे बहुत कम जानता हुं इओस लिये क्या लिखूं, बस आप सब के गम मै मै भी गम गीन हुं, लेकिन एक खुशी की बात भी है कि तुम लोट आई, बहुत अच्छा लगा.
धन्यवाद
आपका निजी संस्मरण शायद उन्हें एक राजनातिक नहीं एक बचपन की याद के तौर पे देखता है ...निसंदेह म्रत्यु दुखदायी होती है ..
ज्योति बाबू ने संपूर्ण एवं यादगार जिन्दगी जी. उनके अवसान से एक युग की समाप्ति हुई.
उनको विनम्र श्रृद्धांजलि. किसी भी व्यक्ति का किसी भी अवस्था में जाना हमेशा ही दुखद होता है.
संस्मरणात्मक आलेख अच्छा लगा.
रक्षंदा जी, आदाब
श्रद्देय ज्योति बसु के पदचिन्हों पर चलकर
समाज से भेदभाव दूर करने का प्रयास ही
उनके प्रति सच्ची श्रद्दांजलि है..
बसंत पंचमी की शुभकामनाएं...
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
सही कहा है किसी ने, किसी को देखना है तो दूर जाकर देखो या जब देखो जब वो दूर हो जाए.
निसंदेह जन नायक रहे ज्योतिबा!!
शुक्रिया आप सबका...हाँ मैं जानती हूँ, ज्योति बासु की उम्र हो चुकी थी, लेकिन कुछ लोग ऐसे होते हैं न जिनका जाना एक खालीपन छोड़ जाता है...जो बड़ी मुश्किल से भरता है या शायद कभी नहीं...
aakirkar khojte khojte pa hee liya...sikayten bahut hain par filhal abhi vapsi ke liye bahut bahut badhaiiiiiii.
भावों की गागर छलका दी - अतिसुंदर आलेख. ज्योति बासु जी को भाव भीनी श्रद्धांजलि.
nice
hii rakshanda...
aaj tumhara ye blog padha...
maine na kabhi jyoti babu ko dekha na jana lekin tumhari post khatam karte karte pata nahi kyu apne aap hi aansu aa gye...
Aradhana
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ऎ लड़की, तुम्हारी पोस्ट की फ़ीड क्यों नहीं मिल रही है ?
आज ज्योति बाबू पर सर्च मारा तो यहाँ पहुँचा । एक अच्छी पोस्ट जो मैं लिखने से रह गया !
खुश रह !
Jane chale jate hain kahan...duniya se jaane wale...kaise dhundhe koi unko....nahi kadmon ke bhi nishan.
@ papa- thank u papa...I am very happy to see ur comment...its most precious for me...thanks
बहुत अच्छा लिखा है आँखे नम हो गयी है आगे के लिखूं -लाल सलाम
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