Friday, June 27, 2008

Look .......I m back in my beautiful world

मिलना और बिछड़ जाना.....
जिंदगी के यही तो रंग हैं....























ये दिल भी कितनी अजीब शै है.रिश्ते बनाना और रिश्तों को सीने से लगा कर इतने करीब कर लेना कि थोडी सी जुदाई भी सूहान -ऐ-रूह लगने लगे,आस पास चाहे कितने ही खूबसूरत मनाजिर क्यों न बिखरे हों,कितने ही दिलचस्प लोगों से आप घिरे क्यों न हों, दिल बस उन्हें ही तलाश करता है जिन्हें वो अपने पास देखना चाहता है. है न एकदम पागल…

वैसे जुदाई का दौर शायद कुछ लंबा हो गया था. पता नही आप सब ने ऐसा महसूस किया या नही, कर भी नही सकते क्योंकि आप सब अपने और दोस्तों के साथ जो थे, तन्हाई मेरे हिस्से में आई थी. बहरहाल शुक्र है कि ये दौर बीत गया और मैं आप सब के बीच वापस आगई हूँ .

मनाली का सफर काफी यादगार रहा, शिमला में जिस कोफ्त का सामना करना पड़ा था ,मनाली ने उसको मिटा दिया.

खूबसूरती के जो रंग यहाँ बिखरे पड़े हैं, उन्हें इतनी आसानी से मिटाया नही जासकता.तरक्की की हवा यहाँ भी चली है लेकिन वो मनाली की दिलकश रंगों को धुंधला नही कर सकी है. लगातार होती बारिश ने ज़रूर परेशान किया लेकिन दूर तक बिखरे पहाडों के मंज़र में बरसती बारिशों ने धुंआ धुंआ मौसम को इतना ख्वाबनाक बना दिया था कि जी चाहता था कि बस मैं ख़ुद भी इसी मंज़र का एक हिस्सा बन जाऊं. आँखें बंद हों, बरसती बारिशें हों और बस….लम्हे यहीं ठहर जाएँ….न कोई आरजू रहे ना कोई जुस्तुजू…न कुछ पाने की ख्वाहिश हो न कुछ खो जाने का खौफ…

कई बार ख्याल आया ..काश मैं भी शायर होती तो शयद उन हसीन मनाजिर को लफ्जों के ज़रिये अपने साथ ले आती….सोचती हूँ अनुराग जी होते तो मनाली की सरी खूबसूरती अपनी नज्मों में समेट कर बड़ी आसानी से अपने साथ ले आते…मेरी ऐसी किस्मत कहाँ…

फिर भी इस सफर ने बहुत कुछ दिया है जो मेरी जिंदगी के साथ रहेगा. एक दोस्त का मिलना और फिर यूँ बिछड़ जाना कि चाहूँ भी तो जिंदगी में दोबारा उसकी रफाकत(साथ) हासिल नही कर सकती.

शायद कुछ रिश्ते होते ही ऐसे हैं कि उन्हें एक मोड़ पर ख़त्म कर देना ही बेहतर होता है…इस से पहले की वो बेतहाशा दर्द देने के बाएस(वजह) बन जायें.

फिर भी बिछड़ जाने का दर्द हर दर्द से ज़्यादा तकलीफ देह होता है. ये शायद वही समझ सकता है जो इस दर्द से गुज़रा हो.

कभी कभी अजीब सी झुंझलाहट होती है, रिश्ते ऐसे क्यों होते हैं? जब उनका अंजाम बिछड़ना हो तो वो रिश्ते बनते क्यों हैं? छोडिये…पता नही मैं कहाँ आगई…

ये तो जिंदगी है न, जाने ऐसे कितने मोड़ इस जिंदगी में आते हैं और आते रहेंगे.

खुशी तो बस ये है की एक रिश्ता बिछड़ भी गया तो इतने सारे खूबसूरत रिश्ते मेरी राह भी तो देख रहे थे…जनाब आप और कौन?

बहुत बहुत अच्छा लग रहा है आप सब के दरमियाँ फिर से आकर….दुआ यही है खुदा से की इन रिश्तों से बिछड़ने का करब जिंदगी में कभी न दे...(अमीन)

15 comments:

Rajesh Roshan said...

कुछ और तस्वीरे भी लगा देती तो और अच्छा होता और हा, अनुराग जी तो अच्छा लिखते ही हैं आप भी कम अच्छा नही लिखती.

कुश said...

स्वागत है आपका फिर से.. आशा है सफ़र बढ़िया रहा होगा.. आपसे सहमत हू अनुराग जी वादियो को नज़मो में समेटने में माहिर है.. लिखती रहिएगा..

आभार
कुश

दिनेशराय द्विवेदी said...

रक्षन्दा जी, इधर ब्लाग पर भी आप की गैरहाजरी शिद्दत से महसूस की गई। शिमला में जो गन्दगी फैली हुई थी वह इंन्सानों की फैलाई हुई थी। मनाली में कुदरत की खूबसूरती देखने को मिली तो वहाँ इन्सान ने कुदरत के निजाम में कम से कम दखल दिया होगा। कुदरत से बड़ा दोस्त और खैरख्वाह इन्सान का कोई नहीं। इन्सान ही उस के साथ दगा कर रहा है। अगर अब भी न संभला तो पूरी इंन्सानी बिरादरी को इसकी सजा भुगतनी पड़ सकती है। आप को इस दोस्त से बिछड़ने का दर्द नहीं होना चाहिए क्यों कि यह तो कभी आप से बिछड़ ही नहीं सकता। आप जहाँ जाएँगी वहाँ यह जरूर मिलेगी। वही तो हम सब को भी जोड़ती है। वह एक साथ ही सब जगह हाजिर है। आप के यहाँ भी और हमारे पास भी। बस उस की शक्ल जुदा जुदा है। शायर भी आप हैं। जो कुछ इस पोस्ट में लिखा है वह शायरी नहीं तो क्या है। कोशिश करें तो आप वजनदार शेर भी कह सकती हैं और गज़लें भी।

Abhishek Ojha said...

स्वागत है !

यात्रा वृतांत लाइए... मतलब हमें भी तो सैर कराइए..!

ghughutibasuti said...

यात्रा वृतांत लाइए। हम भी पढ़कर घूम लेंगे पहाड़ों पर।
घुघूती बासूती

डॉ .अनुराग said...

चलिये अच्छा हुआ आप लौट कर आयी.. ..जिंदगी तो खैर रिश्तो ओर फलसफो में उलझी ही रहेगी...पर वक़्त सबसे बड़ा बाजीगर है आपकी सब मुश्किलों को आसन कर देंगा..एक नज़्म भेज रहा हूँ...

किसी ठंडी तनहा रात मे
जब यादो के बादल उमड़ते है
बूँद दर बूँद कई लम्हे गिरते है
कुछ भीगे ख्याल उठाता हूँ
ख्वाहिशों की आंच मे जलाता हूँ
कही पशेमन न करे तुझे,
कल तडके ये राख
ये सोचकर समंदर की हथेली भर आता हूँ ।



9 sal pahle ki diary के कुछ पन्नों से ली गयी

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

रसकान्धा जी ,
आप लिखिये,
आप की यात्रा
और ज़िँदगी के बारे मेँ -
-- लावण्या

rakhshanda said...

आप सभी का बहुत बहुत शुक्रिया...क्यों नही..अब आ ही गई हूँ तो धीरे धीरे ही सही दिल की सारी बातें आप के साथ ही शेयर करुँगी.
बस इतना है कि आप सब से मिल कर इतना अच्छा लग रहा है कि अभी तो आप सब को पढने में ही काफी टाइम लग जाएगा.

rakhshanda said...

@anuraag ji-आपकी नज्में किसी को भी अपना दीवाना बना सकती हैं...सब से बड़ी बात ये है कि आप नज्मों में दिल के नाज़ुक अहसास को इतनी खूबसूरती से लफ्जों का आँचल ओढ़ाते हैं कि यकीन नही आता कि जो हम सोच कर कह नही पाते उसकी ख़बर आपको कहाँ से हो गई...

rakhshanda said...

थैंक्स दनिश जी - आप ठीक कहते हैं कि वही तो हम सब को भी जोड़ती है। वह एक साथ ही सब जगह हाजिर है। आप के यहाँ भी और हमारे पास भी....बस कुछ लोग होते हैं जो खुशी भी देते हैं तो साथ ही दुःख भी दे जाते हैं...शायर ...काश मैं भी शायर होती....कोशिश तो करूँ पर रास्ता कौन दिखायेगा?

Udan Tashtari said...

वाह! पुनः स्वागत है. अब फ्रेश मूड से लिखना शुरु करें नियमित. अनेकों शुभकामनाऐं.

समयचक्र said...

स्वागत है.लिखती रहिएगा.

मुनीश ( munish ) said...

both the nature pics. are from simla na ki Manali area ! kyoon sahi pakda ya nahin?

दिनेशराय द्विवेदी said...

रक्षन्दा जी, रास्ता तो आप में अभिव्यक्ति की छटपटाहट ही दिखाएगी। आप कोशिश तो कीजिए। तराशने वालों की कमी नहीं है।

बवाल said...

Mohtarma Rakshandajee,
Hum sab aapke qaayalon kee fehrist main shamil log hain. Aap na jaya keejiye kahin. Duniya tamaam kee gandgee dekhne ke baad aapkee poston kee sanjeedgeeyaan sukoone-dard hua kartee hain. Allah kare kam-az-kam ek baar aap jaisee adeeb se roo-b-roo hone ka mauka mile. Khair, bahtareen post ke saath aapkee dilkash tasveer par hum itna hee kah sakte hain ki :-
jahane-rangoboo main kyon talashe husn ho humko ?
hazaaron jalve rakshinda hamaare dil ke parde main !!

Maalik aap par dariya-e-noor naazil kare. Aapka khairkhwah.