
{वो मेरे दिल के बहुत करीब रहती है,उसके लबों से निकला सच है जिसे बस मैंने अपने कलम का सहारा दिया है}
वो हमारे ही आस पास की एक औरत है. ज़रूरी नहीं कि मैं उसका नाम लूँ, मैं उस से मुन्स्लिक अपने रिश्ते के बारे में बयान करूँ, ये भी ज़रूरी नहीं है. वो आपके आस पास की भी हो सकती है.
उसका दर्द कहने को बडा आम सा है, कुछ लोग शायद इसे पूरी तरह समझ ना पायें. कई लोगों की नज़रों में वह एक मुतमईन जिंदगी गुजार रही है लेकिन शायद ये सच नहीं है. वो लम्हा-लम्हा मर रही है. ऐसे जैसे स्लो poison का असर बहुत आहिस्ता-आहिस्ता इंसान से जिंदगी का राबता छीनता चला जाता है, वैसे ही बहुत कुछ करने की आरजू होते हुए भी कुछ न कर पाने की तड़प उसे पल-पल जिंदगी से दूर ले जारही है.
बडी आम सी कहानी ही उसकी.
बचपन से आला तालीम हासिल करने का जूनून दिल में लिए शऊर की मंजिलें तै करती हुई उस लड़की को मालूम ही नही था कि वो एक ऐसे घर में परवरिश पारही है जहाँ बेटियों और बेटों को अलग अलग निगाहों से देखा जाता है.
वो अपना जूनून साथ लिए, कामयाबी की मंजिलें तै करती जारही थी. उम्र के उस हिस्से में जब आम लड़कियों की आँखों में किसी अनजान शहजादे के हसीं ख्वाब खुद बखुद दर आते हैं, जाने क्यों, किसी शहजादे ने उसके ख़्वाबों की सरज़मीन पर कदम नहीं रखा.
ख्वाब उसकी आँखों में भी उतरे लेकिन उन ख़्वाबों में भी उस ने खुद को कभी डाक्टर के रूप में देखा तो कभी इंजीनिअर के रूप में, कभी वो रिसर्च में खुदको मसरूफ देखती तो कभी आई.ऐ.एस ऑफिसर के रूप में अपने मुल्क की खिदमत करते हुए. उसे पता ही नहीं चला कि उसके माँ बाप चार चार बेटियों की लाइन से वहशतजादा हैं और उन्होंने उस वहशत का इलाज अपनी बेटियों को तालीम की दौलत से आरास्ता करने के बजाये जल्द से जल्द उनकी शादी को माना और महज़ दसवीं के बाद उसकी शादी कर दी.
वो वक्त ही ऐसा था या शायद बचपन से ही माँ बाप के किसी हुक्म के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत ही नहीं दी गयी थी उन्हें. वो भी इनकार नहीं कर सकी लेकिन उसके खामोश आंसू चीख चीख कर उनके फैसले से इनकार करते रहे लेकिन शायद उसके माँ बाप ने उन चीखों को सुना ही नहीं या सुन कर भी अनजान बन गए.
उसकी शादी हो गयी, लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि शादी के बाद जिंदगी को उसने नहीं गुज़ारा, जिंदगी ने जैसे उसको गुज़ारा.
ऐसा नही था कि वो कोई ना-आसूदा(असंतुष्ट) जिंदगी गुजार रही थी. शौहर अच्छी पोस्ट पर थे,अपने सारे फरायेज(कर्तव्य)
भी पूरे करते थे और शायद उस से प्यार भी करते थे. खूबसूरत घर, प्यारे प्यारे बच्चे, वो अपने फराएज़ और जिम्मेदारियों में पूरी तरह खो गयी.
उसकी मेहनत उसके घर की खूबसूरती और बच्चों की तरबियत और उनके स्कूल के सालाना(yearly) रिज़ल्ट में साफ़ साफ़ दिखाई देती है.
इस दरमियान एक दिलचस्प बात हुयी,बदलते वक्त ने उसके माँ बाप को बेटियों की तालीम की अहमियत और ज़रुरत वाजेह(स्पष्ट) कर दी और आज उसकी अपनी बहनें आला तालीम हासिल कर चुकी हैं.
वो जब भी उन्हें एख्ती है,उसके दिल की अजीब कैफियत हो जाती है, कभी तो उनकी कमियाबियों पर बहुत खुशी महसूस करती है और कभी कभी वो सब उसे उसके ख़्वाबों के कातिल नज़र आते हैं.
क्योंकि अपनी जिम्मेदारियों और फराएज़ से बहुत दूर उसकी दिल की धरती के किसी कोने में दफन उसके वो ख्वाब आज भी सिसकते रहते हैं. ऐसा नहीं है कि उसने उन ख़्वाबों की ताबीर पाने कि कोशिश नहीं कि. उसने अपनी इन ख्वाहिशों का इज़हार एक बार नहीं, कई कई बार किया लेकिन जाने क्या होता था, जब जब उसने अपने ख़्वाबों की ताबीर पाने की कोशिश कि, उसके घर का माहौल घुटन ज़दा हो जाता गया. काफी सुलझे हुए मिजाज के मालिक उसके शौहर को बात बात पर गुस्सा आने लगता था. वो गुस्सा कभी घर पर, कभी उस पर और कभी बच्चों पर बहाने बहाने से उतरने लगता और वो सदा की बुजदिल लड़की इस घुटन से वहशतज़दा, हर बार अपने ख़्वाबों को बडी खामोसी दफ़न कर देती है.
बस--
सब ठीक होजाता है. शौहर का रवैय्या, घर का माहौल, एक मुतमईन खुशहाल आसूदा फैमिली जो किसी के भी रश्क करने का बाईस हो सकती है. क्या हुआ…कुछ ख्वाब ही तो टूटते हैं , और ख़्वाबों का क्या है, कमबख्त बेवजह आँखों में उतर आते हैं और सारी जिंदगी आँखों में किर्चियों की सूरत चुभन देते रहते हैं......
उसका दर्द कहने को बडा आम सा है, कुछ लोग शायद इसे पूरी तरह समझ ना पायें. कई लोगों की नज़रों में वह एक मुतमईन जिंदगी गुजार रही है लेकिन शायद ये सच नहीं है. वो लम्हा-लम्हा मर रही है. ऐसे जैसे स्लो poison का असर बहुत आहिस्ता-आहिस्ता इंसान से जिंदगी का राबता छीनता चला जाता है, वैसे ही बहुत कुछ करने की आरजू होते हुए भी कुछ न कर पाने की तड़प उसे पल-पल जिंदगी से दूर ले जारही है.
बडी आम सी कहानी ही उसकी.
बचपन से आला तालीम हासिल करने का जूनून दिल में लिए शऊर की मंजिलें तै करती हुई उस लड़की को मालूम ही नही था कि वो एक ऐसे घर में परवरिश पारही है जहाँ बेटियों और बेटों को अलग अलग निगाहों से देखा जाता है.
वो अपना जूनून साथ लिए, कामयाबी की मंजिलें तै करती जारही थी. उम्र के उस हिस्से में जब आम लड़कियों की आँखों में किसी अनजान शहजादे के हसीं ख्वाब खुद बखुद दर आते हैं, जाने क्यों, किसी शहजादे ने उसके ख़्वाबों की सरज़मीन पर कदम नहीं रखा.
ख्वाब उसकी आँखों में भी उतरे लेकिन उन ख़्वाबों में भी उस ने खुद को कभी डाक्टर के रूप में देखा तो कभी इंजीनिअर के रूप में, कभी वो रिसर्च में खुदको मसरूफ देखती तो कभी आई.ऐ.एस ऑफिसर के रूप में अपने मुल्क की खिदमत करते हुए. उसे पता ही नहीं चला कि उसके माँ बाप चार चार बेटियों की लाइन से वहशतजादा हैं और उन्होंने उस वहशत का इलाज अपनी बेटियों को तालीम की दौलत से आरास्ता करने के बजाये जल्द से जल्द उनकी शादी को माना और महज़ दसवीं के बाद उसकी शादी कर दी.
वो वक्त ही ऐसा था या शायद बचपन से ही माँ बाप के किसी हुक्म के खिलाफ आवाज़ उठाने की हिम्मत ही नहीं दी गयी थी उन्हें. वो भी इनकार नहीं कर सकी लेकिन उसके खामोश आंसू चीख चीख कर उनके फैसले से इनकार करते रहे लेकिन शायद उसके माँ बाप ने उन चीखों को सुना ही नहीं या सुन कर भी अनजान बन गए.
उसकी शादी हो गयी, लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि शादी के बाद जिंदगी को उसने नहीं गुज़ारा, जिंदगी ने जैसे उसको गुज़ारा.
ऐसा नही था कि वो कोई ना-आसूदा(असंतुष्ट) जिंदगी गुजार रही थी. शौहर अच्छी पोस्ट पर थे,अपने सारे फरायेज(कर्तव्य)
भी पूरे करते थे और शायद उस से प्यार भी करते थे. खूबसूरत घर, प्यारे प्यारे बच्चे, वो अपने फराएज़ और जिम्मेदारियों में पूरी तरह खो गयी.
उसकी मेहनत उसके घर की खूबसूरती और बच्चों की तरबियत और उनके स्कूल के सालाना(yearly) रिज़ल्ट में साफ़ साफ़ दिखाई देती है.
इस दरमियान एक दिलचस्प बात हुयी,बदलते वक्त ने उसके माँ बाप को बेटियों की तालीम की अहमियत और ज़रुरत वाजेह(स्पष्ट) कर दी और आज उसकी अपनी बहनें आला तालीम हासिल कर चुकी हैं.
वो जब भी उन्हें एख्ती है,उसके दिल की अजीब कैफियत हो जाती है, कभी तो उनकी कमियाबियों पर बहुत खुशी महसूस करती है और कभी कभी वो सब उसे उसके ख़्वाबों के कातिल नज़र आते हैं.
क्योंकि अपनी जिम्मेदारियों और फराएज़ से बहुत दूर उसकी दिल की धरती के किसी कोने में दफन उसके वो ख्वाब आज भी सिसकते रहते हैं. ऐसा नहीं है कि उसने उन ख़्वाबों की ताबीर पाने कि कोशिश नहीं कि. उसने अपनी इन ख्वाहिशों का इज़हार एक बार नहीं, कई कई बार किया लेकिन जाने क्या होता था, जब जब उसने अपने ख़्वाबों की ताबीर पाने की कोशिश कि, उसके घर का माहौल घुटन ज़दा हो जाता गया. काफी सुलझे हुए मिजाज के मालिक उसके शौहर को बात बात पर गुस्सा आने लगता था. वो गुस्सा कभी घर पर, कभी उस पर और कभी बच्चों पर बहाने बहाने से उतरने लगता और वो सदा की बुजदिल लड़की इस घुटन से वहशतज़दा, हर बार अपने ख़्वाबों को बडी खामोसी दफ़न कर देती है.
बस--
सब ठीक होजाता है. शौहर का रवैय्या, घर का माहौल, एक मुतमईन खुशहाल आसूदा फैमिली जो किसी के भी रश्क करने का बाईस हो सकती है. क्या हुआ…कुछ ख्वाब ही तो टूटते हैं , और ख़्वाबों का क्या है, कमबख्त बेवजह आँखों में उतर आते हैं और सारी जिंदगी आँखों में किर्चियों की सूरत चुभन देते रहते हैं......
कटे पंख...

(खामोश लबों की पुकार)
मैं जिस वक्त और समाज में जी रही हूँ. उसमें दो किस्म की औरतें हैं. एक वो जो बदलते हुए वक्त में तरक्की के रास्तों पर मर्दों के कन्धों से कन्धा मिला कर चल रही हैं और एक वो जिन्हें तरक्की के मानी तक मालूम नहीं. जो बस जी रही हैं क्योंकि ये जिंदगी उन्हें जीने को मिली हुयी है.
दिलचस्प बात ये है कि उन्हें इस बात का कोई गम भी नहीं है क्योंकि उन्होंने खुद को पहचाना ही नहीं है इसलिए कुछ न कर पाने का उन्हें मलाल(दुःख) भी नहीं है.
मेरी ट्रेजडी ये है कि मैं इन दो किस्मों में से किसी एक में भी फिट नहीं आती.
खुद से आशना तो हूँ लेकिन उड़ने को पंख ही नहीं हैं.
कोई भी औरत तरक्की के आसमान में तभी उड़ सकती है जब उसके पास आला तालीम के पंख मौजूद हों. ये पंख ही उसे self-depend बनाते हैं. जाहिल औरत ज़माने में बगैर पंख के होती है. लेकिन उस जाहिल औरत के लिए भी इत्मीनान की बात ये होती है कि उसे अपने पंखों से आशनाई ही नहीं होती, मतलब वो जानती ही नहीं कि मुझे ये पंख नसीब हो सकते थे और इन पंखों के ज़रिये उड़ान भर कर वो कितने आसमान तलाश कर सकती थी. वो अपनी मौजूदा जिंदगी को ही अपना नसीब मान कर जीती और मरती है.
तड़पती और घुटती तो वो औरत है जिसे पंख देकर काट लिए जाएँ.
वो तालीम तो हासिल कर ले लेकिन अधूरी.
कहते हैं ना, अधूरापन सब से ज़्यादा दुःख देता है. टांगें रखने वाले इंसान की टांगें हादसे में कट जाएँ तो वो सारी जिंदगी जिंदा रह कर भी जिंदा लाश जैसी जिंदगी गुज़रता है.
कुछ न कर पाने की तड़प, अपनी खूबी से आशना होते हुए भी उसे दुनिया के सामने ना ला पाने की घुटन---शायद वही समझ सकता है जो इन हालात से गुज़र चुका हो. कि कैसा महसूस होता है जब अपने जैसी औरतों को तरक्की के खुले आसमान में उड़ते हुए देखती हैं और हसरत से देखती रह जाती हैं.
उड़ना चाहें तो कटे हुए पंख का जान लेवा दर्द दो कदम पर ही ज़मीन में गिरा देता है.
आह...जी चाहता है, वक्त को वापस मोड़ कर उस दौर में ले आयें जब वो तालीम हासिल कर रही थीं. हालात चाहे जैसे भी हों, उन्हें अपने मुताबिक मुड़ने पर मजबूर कर दें. दुनिया की कोई मजबूरी इन क़दमों को रोक न पाये. कोई एहतराम कोई रिश्ता उनके पंखों की कुर्बानी ना ले सके.
लेकिन लम्हे जो गुज़र गए, उन्हें वापस कौन ला सका है भला. अब तो घुट घुट के जीना और हसरत से उड़ान भरती अपनी कौम को देखते रहना है.
दिलचस्प बात ये है कि उन्हें इस बात का कोई गम भी नहीं है क्योंकि उन्होंने खुद को पहचाना ही नहीं है इसलिए कुछ न कर पाने का उन्हें मलाल(दुःख) भी नहीं है.
मेरी ट्रेजडी ये है कि मैं इन दो किस्मों में से किसी एक में भी फिट नहीं आती.
खुद से आशना तो हूँ लेकिन उड़ने को पंख ही नहीं हैं.
कोई भी औरत तरक्की के आसमान में तभी उड़ सकती है जब उसके पास आला तालीम के पंख मौजूद हों. ये पंख ही उसे self-depend बनाते हैं. जाहिल औरत ज़माने में बगैर पंख के होती है. लेकिन उस जाहिल औरत के लिए भी इत्मीनान की बात ये होती है कि उसे अपने पंखों से आशनाई ही नहीं होती, मतलब वो जानती ही नहीं कि मुझे ये पंख नसीब हो सकते थे और इन पंखों के ज़रिये उड़ान भर कर वो कितने आसमान तलाश कर सकती थी. वो अपनी मौजूदा जिंदगी को ही अपना नसीब मान कर जीती और मरती है.
तड़पती और घुटती तो वो औरत है जिसे पंख देकर काट लिए जाएँ.
वो तालीम तो हासिल कर ले लेकिन अधूरी.
कहते हैं ना, अधूरापन सब से ज़्यादा दुःख देता है. टांगें रखने वाले इंसान की टांगें हादसे में कट जाएँ तो वो सारी जिंदगी जिंदा रह कर भी जिंदा लाश जैसी जिंदगी गुज़रता है.
कुछ न कर पाने की तड़प, अपनी खूबी से आशना होते हुए भी उसे दुनिया के सामने ना ला पाने की घुटन---शायद वही समझ सकता है जो इन हालात से गुज़र चुका हो. कि कैसा महसूस होता है जब अपने जैसी औरतों को तरक्की के खुले आसमान में उड़ते हुए देखती हैं और हसरत से देखती रह जाती हैं.
उड़ना चाहें तो कटे हुए पंख का जान लेवा दर्द दो कदम पर ही ज़मीन में गिरा देता है.
आह...जी चाहता है, वक्त को वापस मोड़ कर उस दौर में ले आयें जब वो तालीम हासिल कर रही थीं. हालात चाहे जैसे भी हों, उन्हें अपने मुताबिक मुड़ने पर मजबूर कर दें. दुनिया की कोई मजबूरी इन क़दमों को रोक न पाये. कोई एहतराम कोई रिश्ता उनके पंखों की कुर्बानी ना ले सके.
लेकिन लम्हे जो गुज़र गए, उन्हें वापस कौन ला सका है भला. अब तो घुट घुट के जीना और हसरत से उड़ान भरती अपनी कौम को देखते रहना है.