पिछले दिनों मेरे साथ जो भी हुआ या अभी भी हो रहा है, उनका मेरी जात पर कोई असर नही पड़ा, अगर मैं ये कहती हूँ तो ग़लत कहूँगी. खामोशी से अपने अपने आप में मगन, आप कहीं जारहे हों और अचानक बहुत सारी अजीब निगाहें सिर्फ़ आप पर मारकूज़ हो जाएँ तो कुछ लम्हों के लिए आपका उलझ जाना लाज़मी है.
मैं भी उलझी थी, न सिर्फ़ उलझी थी बल्कि चाँद लम्हों के लिए बेहद मायूस भी हो गई थी, सच कहूँ तो नफरत सी हो गई थी लोगों की मेंटालिटी से. हालाँकि ये मेरे साथ पहली बार हो रहा हो, ऐसा नही है, स्कूल, कॉलेज हर जगह ऐसी मेंटालिटी वाले लोगों को देखा है मैंने, लेकिन फिर भी ज़ख्म जब भी लगता है, ताज़ा महसूस होता है. दरअसल इसकी वजह ये है की असल जिंदगी में मैं एक बेहद रिज़र्व टाइप लड़की रही हूँ. बचपन से कुछ कुछ शर्मीली और अपने आप में सिमटी हुयी.
मेरी दुनिया मेरे घर वाले, मेरा घर, मेरी पढाई और मेरा शौक पढ़ना और लिखना.
बचपन ही से घर में किताबों का कीडा कही जाने लगी थी. आज भी वही हाल है. ब्लोगिंग मजाक मजाक में शुरू हुयी और जल्दी ही दिल के बेहद करीब हो गई.
दिल को सुकून मिलने लगा लिखकर, और इतने सारे दोस्त और चाहने वाले मिले तो एक नई दुनिया का सा गुमान होने लगा, जहाँ पहुँच कर मैं जिंदगी की तल्खियाँ भूल जाया करती थी. अपनी बात साफगोई से कहने का मौका जो मिला था यहाँ.लेकिन कुछ चर्चा के भूखे लोगों की वजह से पिछले दो दिन मेरा सारा सुकून दरहम-बरहम हो गया.
हालांकि मैंने देखा कि इतने सारे काबिल-ऐ-एहतराम लोग मेरे साथ थे. उन्होंने मुझे किसी की परवाह किये बिना बस लिखते रहने की सलाह भी दी लेकिन गुस्सा और मायूसी ने मुझे बेहद डिस्टर्ब कर दिया था. जब से मैं इस जगह आई, मैंने सिर्फ वही लिखा जो मेरे दिल ने मुझे लिखने पर इसरार किया, जब भी किसी वाकये और किसी बात ने मुझे कुछ कहने पर मजबूर किया, मैंने बिना किसी खौफ के लिखा.
मैंने देखा था कि कुछ लोग चर्चा में आने के लिए एक दुसरे को निशाना बनाते हैं, लेकिन मुझे इन सब बातों से हमेशा वहशत रही है. भड़ास छोड़ने की कई वजहों में से एक वजह ये भी रही कि मैंने देखा कि यहाँ बस एक दुसरे के कसीदे पढ़े जाते हैं या फिर किसी को निशाना बनाया जाता है, और इन बातों से मुझे हमेशा से चिढ रही है.
अमर जी, अनुराग जी, दनिश जी, रचना जी ,रंजू जी ,लावण्या जी, अफलातून जी अनुराग (अनुवेशी) जी लवली और मेरे बहुत सारे दोस्तों ने मुझे बहुत ताकत दी लेकिन फिर भी अपने बारे में होती झूठी चर्चा, छिछोरेपन की हद तक जाती जांच और पड़ताल ने मुझे बेहद सदमा पहुँचाया था.सब से ज्यादा दुःख इस बात का था कि जिस बात से मुझे नफरत थी, मुझे उसी पर मजबूर कर दिया गया था.
हमेशा की तरह मैंने अपना ये दर्द भी अपने बाबा से ही बांटा . मैंने उन्हें सारी बातें बतायीं , उस पागल इंसान की वो पोस्ट भी दिखाई और लोगों के कमेन्ट भी.
मुझे लगा मेरी तरह बाबा भी नाराज़ होंगे और दुखी, लेकिन मैं उस वक्त हैरान रह गयी जब मैंने देखा कि उन्होंने निहायत सुकून से वो सब कुछ सुना और पढ़ा. उनके चेहरे पर जो सुकून था उसने मुझे हैरान कर दिया.
मैं झुंझला गयी, मैंने कहा बाबा आपको इतना सब कुछ देख कर गुस्सा नहीं आया?
आपको पता है क्या हुआ? बाबा मुस्कुरा पड़े और कहने लगे, ‘’किस बात पर गुस्सा करूँ? इस बात पर, कि किसी बेवकूफ ने तुम्हें लड़की के बजाये लड़का साबित करने की कोशिश कि है या इस बात पर कि इतने सारे लोग सिर्फ तुम्हारे साथ हैं और तुम्हें किसी की परवाह न करने को कह रहे हैं?’’
मैं कुछ नहीं कह पायी, वो थोडी देर खामोश रहे फिर मेरे पास आये, मेरे सर पर हाथ रखा और कहा ‘’ बेटा ये दुनिया है, जब आप कोई अच्छा काम कर रहे हों तो बहुत सारी आँखें आपकी तारीफ़ के लिए उठेंगी लेकिन कुछ आँखों में नापसंदीदगी के रंग भी होंगे. हमारी तारीख ऐसी बहुत सारी मिसालों से भरी पड़ी है. बड़े बड़े अज़ीम लोग भी दुनिया के इस जालिम सच से बच नहीं पाए. हमारे रसूल(अ.स) ने जब इस्लाम के बारे में दुनिया को बताना शुरू किया तो बहुत सारे लोग उनके अपने हो गए तो बहुत सारे लोग उनकी जान के दुश्मन भी हो गए. जानती हो ये कौन लोग थे?
ये वही लोग जिन्हें उनके किरदार की मजबूती में अपना किरदार बहुत छोटा दिखाई देने लगा था.
वो उनके दुश्मन नहीं थे, दरअसल वो अन्दर से खौफ का शिकार थे. गांधी जी को क़त्ल करने वाला बस इसी खौफ का शिकार था तो अब्राहम लिंकन की जान लेने वाला भी इसी डर में मुब्तेला था. लेकिन तुम बताओ, उन्हें ख़त्म कर के क्या वो उनके किरदार को छोटा कर सके?
नहीं, बल्कि उनके किरदार आसमानों की बलंदी तक पहुँच गए. इन अजीम-उष-शान किरदार के मालिकों के सामने हमारी और तुम्हारी क्या औकात?
ये सुनहरी मिसालें हमें जिंदगी के बदसूरत से बदसूरत चेहरों का सामना करने की ताकत देती हैं.
खलील जब्रान ने लिखा है कि अगर आप साबित कदम हैं तो आपकी तरफ फेंका गया पत्थर लौट कर फेंकने वाले के हाथ ज़ख्मी कर देगा.
बाबा बोलते जारहे थे और मैं —हैरान सी उनके पुरसुकून चेहरे को देखे जारही थी.
दोस्तों, हैरान मैं अपनी कैफियत पर भी थी, जहाँ न अब कोई सवाल बाकी था ना कोई जवाब.
सारी नाराजगी, सारा गुस्सा..कुछ भी तो बाकी नहीं रहा था.
जो बात मेरे इतने सारे दोस्तों ने समझाने की कोशिश की थी और मैं समझ कर भी समझ नहीं पारही थी वो इतनी आसानी से समझ में आगई थी कि अब न कोई हैरानी थीं न कोई शिकायत.
मैं जो कल तक यहाँ तक सोच बैठी थी कि लिखना छोड़ दूंगी, इतनी मज़बूत हो गयी थी कि अपनी ताकत का अहसास खुद मुझे हैरान कर रहा था.
बाबा की नमाज़ का टाइम हो गया था. मैं भी उनके साथ नमाज़ के लिए उठ गयी, बिलकुल हलकी फुल्की, मुस्कुराहटों की खुशनुमा चादर ओढे.
निगाह उठा कर चारों तरफ देखा तो हैरान रह गयी, ताहद्दे निगाह सिर्फ रौशनी ही रौशनी थी, इतनी कि आँखें खैरा हुयी जारही थीं, अब अंधेरों के वजूद की गुंजाइश ही कहाँ थी.
35 comments:
न कोई वहशत रहे, न कोई दहशत रहे।
उनका क्या बिगड़े, जिनपे खुदा की रहमत रहे।
अच्छा है अब आप सिर्फ लिखने पर ध्यान देंगी।
आप बाबा को मेरा प्रणाम कहें |दो पोस्ट्स उन्हें दिखायें - हम इस आवाज का मतलब समझें
हिटलर के नाजियों अौर मुसोलिनी के फासिस्टों ने भी यही किया था अौर यह कविता भी
हत्यारों के गिरोह का
एक सदस्य हत्या करता है
दूसरा उसे दुर्भाग्यपूर्ण बताता है
तीसरा मारे गए आदमी के दोष गिनाता है
चौथा हत्या का औचित्य ठहराता है
पाँचवाँ समर्थन में सिर हिलाता है
और अन्त में सब मिलकर
बैठक करते हैं
अगली हत्या की योजना के सम्बन्ध में ।
- राजेन्द्र राजन .
ठोकरें गर सफर रोक दें तो बात ही क्या,
सफर तो जारी रहे तभी सफर है।
वापस लौटने पर ढेरो बधाई .....आप जैसे है वैसे ही रहिये ....वक़्त से बड़ा आइना कोई नही है ...सच्चे दिल से लिखिये ओर सच्चा लिखिये ....कही किसी को कुछ साबित करने की जरुरत नही है.....उम्मीद है अब कुछ सार्थक लिखेगी एक बात ओर आप कुश ओर रचना जी का नाम लेना शायद भूल गयी ...
please activate archievs on your blog
ब्लागजगत में और अधिक मजबूती के साथ शिरकत करे. मेरी शुभकामनाये आपके साथ है.
लिखतीं रहें। चिंता मत करें।
सच्ची बात लिखना भी एक लड़ाई है, और लिखने वाला इस लड़ाई का फौजी। जब एक फौजी मैदान में जाता है तो जीत के बावजूद उसे घाव मिलते ही मिलते हैं। ऐसी बातें तो चलती रहेंगी। लिखना जारी रहे। अच्छा फौजी मैदान नहीं छोड़ता।
आपके यहां आकर कई नये उर्दू शब्द सीखने को मिल जाते हैं
जैसे इस बार दरहम-बरहम के मतलब पता चला
humm chalo mere na sahi kisi ke samjhane par ho tunhe akl to aayi..majak kar rahi thi..
..par main aaj bahut khus hun.
शाबाश रख्शंदा !
तुम्हारी ईमानदारी तुम्हारी कलम को ताकत देगी ! मैं यह उम्मीद करता हूँ कि आने वाले समय में, मेरे देश की इस मुस्लिम लडकी की आवाज़ हिंदू मुस्लिम एकता को एक नया आयाम देगी ! और साथ ही यह भी कि हमारी मुस्लिम बच्चियां अब समय के साथ चलना भी सीख गयी हैं !
the issue now is that whether rakshanda knew about blogging when she says she did not know !!!
the issue whether rakshanda is male or female as per mr ghost buster is not the issue so we should not talk about it !!!!!
making it man and woman tug of war
the issue whether writing with a psuedo name { as mr ghost buster is doing } or writng with a pseudo identity {as mr ghost buste feels blogger rakshanda is doing } is equally fradulent or as mr ghost buster says that the second is fraud and the first is not still remains to be cleared !!!!
because who will certify that mr ghost buster is not a woman but a man and that rakhanda ia not man but woman ???????
the basic core problem is if mr ghost buster can prove that rakshanda is a man posing as woman then he has to give the complete documentary evidence of the same but in the process he will have to come out with his true colours , his own name and identity
I WISH WE HAD AN OPTION IN THE PASSPORT OR VOTER I CARD OR SOME PHOTO IDENTIY WHERE in future we all would be required to fill true blogger identity to solve all future confusions
we need to establish our identites in such a way that if someone tells us that no you are a man or viceversa we can go to court with a admissable proof
dinesh ji is the best authority to make a movement on this thru his blog
आप को जब भी पढ़ा है अच्छा लगा है. यही सोचा कि इस इंसान से मेरा रिश्ता क्यों नहीं है. फुरसतिया जी मेरे चाचा हैं, समीर लाल जी मेरे फूफा हो गए और भी भाई-बन्धु हो गए. एक आप को कैसे मैंने छोड़ दिया.
निक्की (एक मुस्लिम लड़का) मेरा दोस्त है, अभी उसके साथ गया अमीनाबाद गया था, यहाँ की कश्मीरी चाय बड़ी अच्छी बनती है. कबाब बड़े अच्छे हैं अमीनाबाद के. (मैं भी क्या विज्ञापन करने लगा.)
आप की मैंने चर्चा छेड़ दी, तो उसने कहा कि नेह-निमंत्रण भेज दो.
चलिए आज से आप मेरी रिश्तेदार हो ही जाइए. रिश्ता आप ख़ुद सोच लें :)
मेरे ब्लॉग ' ब्लॉग्स पण्डित ' पर मैंने आप को साथी चिट्ठाकारों की सूची में जोड़ लिया है.
बात थी नेह-निमंत्रण की, स्वीकार है आपको ? यदि हाँ, तो रिश्ता भी गढ़ लीजिये.
यदि नहीं तो भी आप मेरी सगी तो हो ही गयीं.
रमजान का यह पावन माह आप को खुशियाँ दे.
' ब्लॉग्स पण्डित ' ई-गुरु राजीव
मैं आप के साथ था और हूँ, आगे भी बने रहने का इरादा है. आप इस ब्लॉगर परिवार को छोड़ कर मत जाना.
जिसे जो भी कहना है, मेरे बारे में, शौक से कह सकता है...
करे कोई निन्दा दिन रात
सुयश का पीटे चाहे ढोल
किये कानों को अपने बन्द
रही बुलबुल डालों पर डोल
सुरा पी मधु पी कर मधु पान!
मधुशाला
हरिवंश राय बच्चन
आप निरन्तर लिखें.... आगे बढे........ दूसरों की प्रेरणा बनें
sachchai hamesha aatmvishvas badhati hai, isliye maayus hone ki to koi baat hi nahin hai. pure aatmvishvas key saath likhana jari rakhiye.
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इसके लिखने के अंदाज़ में कभी कभी मर्दानगी आ जाती रही है, लेकिन आज कुछ राहत मिली...
यह जान कर कि,
रख़्शंदा बचपन से ही लड़की है...
भला बताइये, कितनी ग़लत बात है ?
जान कर मेरा तो सिर दुखने लगा...
’ रख़्शंदा ....बचपन से ही लड़की है... ’
हा हाह्हाः हा .. यह तो बचपन से ही लड़की है... जरा देखो इसको ?
स्वागत ..आप बस लिखे पहले भी कहा था अब भी वही कहती हूँ .....वही आपकी सही सार्थकता साबित करेगा और आपकी आवाज़ को हर दिल तक पंहुचा देगा ...बहुत बहुत शुभकामनाये ..मुझे आपके बाबा जी की कहीं बातें बहुत अच्छी लगी ...उन्हें मेरा सलाम कहें ..
ज़रूर अफलातून जी, मैं ये पोस्ट बाबा को ज़रूर दिखाउंगी और आपका बेहद शुक्रिया...u r really my well wisher
@e.गुरु राजीव जी, क्यों नही राजीव जी आप ने मुझे जो मान दिया है उसके लिए शुक्रिया एक छोटा लफ्ज़ होगा, रिश्ता आपने ख़ुद जोड़ने को कहा है ना..तो फिर आप मेरे बड़े भाई हुए...बोलिए मंज़ूर है ना...उम्मीद है आप ये रिश्ता निभाएंगे....
अनुराग जी, मैं रचना जी को भूली नही हूँ हाँ, बस दो बार लिखना भूल गई जिसकी माफ़ी चाहती हूँ...और हाँ, कुश जी को भी शुक्रिया कहना चाहिए, जिन्होंने मेरा इतना साथ दिया...थैंक्स कुश जी.
Rachna ji,
I have activated my blog archievs...thanks
इतने सारे प्यार के लिए मैं जितनी भी खुशी महसूस करूँ, कम है..बाबा ने ठीक कहा था, मैं ही नही समझ सकी थी...लेकिन अब समझ गई हूँ
जहाँ तक आजके दिन का सवाल है, दिल बहुत उदास है, गुस्सा भी है और बेबसी भी..आप सब को मालूम है, कल दिल्ली में जो कुछ हुआ...उसने सारी रात की नींद छीन ली, शाम से ही फ़ोन कर कर के हम सब वहशत जादा रहे, इतने सारे रिश्तेदार और दोस्त दिल्ली में हैं..उनकी खैरियत की ख़बर जब तक नही मिली, दिल अनजाने अंदेशों से सहमा रहा, खुदा गारत करे, ऐसे वहशी दरिंदों को, खुदा करे आप सब बखैरियत हों....आमीन
जब भी किसी वाकये और किसी बात ने मुझे कुछ कहने पर मजबूर किया, मैंने बिना किसी खौफ के लिखा.
-यही तारीफी है. आप का काम अपने मन की बात कहना और अपने पाठकों के साथ बांटना है. दीगर बातों पर ध्यान देने से, आपका लेखन भटकेगा और यह आपके अपने पाठकों के साथ अन्याय ही कहलायेगा.
आप जैसे लिखती हैं, बस लिखती रहें. हमेशा की तरह मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं.
aapke vichar pravawshali hai. aap chinta n karen aapki anugunj bani rahegi aagaj jo kar diya aapne.
रख्शंदा !
कृपया इस शहरोज के ब्लाग पर आपसे सम्बंधित एक लेख लिखा था, जरूर देखें !
http://saajha-sarokaar.blogspot.com/2008/08/satish-qalam.html
वापसी पर खुशी हुई... लिखती रहे.
Raskhanda ji,
The Best bet in Blogging is to keep Expressing with abundece & fearlessness.
A BLOG is YOUR OWN VOICE -
Let No One stop it.
आपके बाबा ने सही कहा। जिन्दगी इम्तहान लेती है। पर विजेता का पहचान इस इम्तहान के गुजरने के बाद ही होता है।
अरे हम थोडे विजी क्या हुये यहां सब गडबद सा हो गया, अजी आप को तो हम हिम्मत वाली समझते हे फ़िर यह सब बाते दिल मे क्यो लेती हे, अब ओर भी जोश से लिखो, यहां सब एक दुसरे की टांग खीचने पर लगे हे, पता नही क्यो..... अगर नाराज हो कर गई तो कितनो के दिल टुटेगे. अब यहां से वापिस जाना बहुत मुस्किल हे , सिर्फ़ अच्छे दोस्तो को देखो, फ़िर हमेशा मुस्कुराती रहोगी, दुशमन तो वेसे कोई हे नही , फ़िर भी कई लोग दुश्मनी निभाना चाहते हे, उन्हे नजर अंदाज करो,सच्चई से सभी डरते हे, ओर तुम सच्चई ही तो लिखती हो,चाहे तो अपने बाबा से भी पुछ लेना यह सब बाते, लिखो ओर खुब लिखो
धन्यवाद, आप के बाबा को सलाम
thank u राज जी, आप सभी की दुआएं और प्यार मेरे साथ है तो यकीनन मैं लिखती रहूंगी...और हमेशा आपके साथ रह सकूँ, ये दुआ भी करुँगी....बहुत शुक्रिया उनका भी जो ऐसे वक्त में मेरे साथ थे और उनका भी जिन्होंने मुझे अपनी दुश्मनी का हिस्सा बनाया....thank you.
रक्षन्दा जी ,
आप गूंजिये और सदियों तक वह गूंज सुनाई दे इंशा अल्ला यही ख्वाहिश है।
बाबा ने जो कहा सही कहा।आप अपना स्वभाव बनाए रखें।नेट पर कौन क्या है इसकी खोज खबर रखना फालतू काम है ,पहचान् लेखक के लेख से धीरे धीरे सामने आ ही जाती है।
शुभकामनाएँ
bhut lamba likhti ho ... chota likha karo or seedha kam ki bat. ye to dhang se btaya hi nhi tumne ki aisi kaun si mail aa gayi thi tumhe or usme kya likha tha? pahli baar tumhara blog padhne vale ko kya samjh ayega ki tum kis bare me baat kar rhi ho?
नहीं रही कपिल के शो की यादें Read full news in Hindi at Hindi7
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