सारा दिन छाजों मेंह बरसता रहा. मौसम एकदम अभी से खुनक(सर्द) होने लगा है. सर्द मौसम की आमद का पैगाम देती ये बारिशें एक अजीब सी उदासी का तास्सिर देती हैं.
सब सो चुके हैं लेकिन उसे नींद नही आरही है. दिल की उदासी जब हद से ज़्यादा बढ़ने लगी तो वो कमरे से बाहर निकल आती है.एक घुटन सी है हर तरफ़. वो दरवाज़ा खोलकर टेरिस पर चली आती है. बारिश रुक चुकी है लेकिन इक्का दुक्का बूँदें अभी टपक रही हैं. अंधेरे की चादर ओढे स्याह रात के लबों पर अजीब सी खामोशी है.ना चाँद ना सितारे, बस एक सर्द सा सन्नाटा. वो कुछ सोचना नही चाहती लेकिन उसके अन्दर सवालों की एक दुनिया है.उलझनों के कई दर खुल गए हैं. बेबसी सर उठाने लगी है.
किसी के हाथों का शफीक लम्स उसके बालों पर ठहर जाता है लेकिन वो हैरान नही होती. वो जानती है कि उसके दिल के मौसमों के एक एक रंग से अगर कोई वाकिफ है, तो वो उसके बाबा ही हैं. वो बाबा को परेशान ही तो नही करना चाहती थी वरना ख़ुद ही उनके कमरे में चली जाती. लेकिन वो जानती है कि कुछ सवालात ऐसे हैं जिनके जवाब उसके बाबा के पास भी नही हो सकते.
‘’मैं जानता हूँ तुम परेशान हो वरना ऐसे मौसम में इतनी रात गए यहाँ कभी नही आतीं. क्या परेशानी की वजह मुझे पूछने पड़ेगी बेटा?’’
जाने कितने लम्हे खामोशी की नजर हो जाते हैं, वो बाबा को देखती है. ‘’हाँ मैं परेशान हूँ, बहुत परेशान, मैं जानती हूँ, आप भी परेशान होंगे लेकिन ज़ाहिर नही कर रहे, लेकिन मुझ से बर्दाश्त नही होता, मुझे कुछ भी अच्छा नही लगता. आप जानते हैं, सब कुछ पहले जैसा होते हुए हुए भी पहले जैसा नही रहा.’’ बाबा की आंखों में अभी भी सवाल हैं. वो समझ नही पारहे या समझना ही नही चाहते. बाबा आप खबरें देखते हैं ना, एक अजीब सा माहौल हो गया है, कुछ सरफिरे और बुजदिल लोगों ने दहशत गर्दी की साजिश क्या अंजाम दी, लोगों की नज़रें ही बदल गयीं. कुछ हादसों ने पोशीदा नफरतों से नकाब ही हटा दिए. हम बेगुनाह होकर भी गुनाहगार ठहराए जारहे हैं. बाबा आज हिन्दुसानी मुस्लिम एक खौफ के साए में जीर आहा है. उसे शक की नज़र से देखा जारहा है.
’’ बाबा लब भींज लेते हैं, ‘’ हाँ कुछ बुजदिल लोग अपने नापाक इरादों से मज़हब को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं. ये देश के ही नही सारी कौम के दुश्मन हैं, इंसानियत के दुश्मन हैं.’’
‘’मैं मानती हूँ बाबा कि कुछ लोगों ने ऐसा घिनावना काम किया, लेकिन वो मुजरिम थे, हर मुजरिम जो जुर्म करता है तो सज़ा उसे मिलनी चाहिए, लेकिन सज़ा हमें क्यों मिल रही है? आप जानते हैं, कुछ लोग खुले आम हमारे मज़हब की तौहीन कर रहे हैं. उस मज़हब की जो बिना किसी वजह के इक पत्ता तक तोडे जाने के ख़िलाफ़ है. हमारे बारे में जिसका जो दिल चाहता है, खुले आम बोल रहा है. क्या ये जुर्म नही है? बाबा आज माहौल ये है कि किसी का दुश्मनी में भी किया हुआ एक इशारा एक मुस्लिम नौजवान की सारी जिंदगी तबाह करने के लिए काफ़ी है.
''आपने अखबार में पढ़ा है ना की किस तरह मुंबई में एक मौलाना महमूदुल हसन कासमी जो एक फ्रीडम फाइटर की फैमिली से ताल्लुक रखते हैं , की बेईज्ज़ती की गई. सिर्फ़ शक की बिना पर उन्हें नंगे पैर बगैर टोपी के घसीटते हुए पुलिस थाने ले गई. वो तो जब तलाशी में उनके घर के अलबम से पता चला कि वो कितने इज्ज़तदार शहरी हैं तब पुलिस ने ये धमकी देते हुए उन्हें छोड़ा की वो इस वाकये का किसी से ज़िक्र ना करें. बाद में उनकी बड़े नेताओं से जान पहचान देखते हुए उन से माफ़ी मांगी गई. बाबा जब ऐसे क़द वाले शहरी के साथ ऐसा सुलूक हो सकता है तो सोचिये एक आम मुस्लिम के साथ कैसा सुलूक होता होगा.
अपने ही देश में हमारे साथ गैरों जैसा सुलूक किया जाता है. हम एक साँस भी ले लें तो इल्जामों का पूरा पुलिंदा हमें थमा दिया जाता है.’’
वो बोलती जारही है और बाबा हैरत से उसे देखे जारहे हैं. शायद उन्हें यकीन नही आरहा है.
‘’बेटा..वो जाने क्यों उसे टोक देते हैं.’’ मैं मानता हूँ की हमारे साथ ग़लत हो रहा है लेकिन ये वक्ति बेवकूफियां हैं जो वक्त के साथ ख़त्म हो जायेंगी.’’
‘’ लेकिन क्यों बाबा’’ उसे उन पर गुस्सा आजाता है ‘’हम सब ठीक होने का इंतज़ार क्यों करें? हम किसी को सफाई क्यों दें? ये हमारा देश है, वैसे ही जैसे बाकी लोगों का, वो चाहे चर्चों पर हमले करें,चाहे बेगुनाह ईसाइयों को क़त्ल करें, बिहारियों पर ज़ुल्म करें, बम बनाते हुए पकड़े जाएँ, उन्हें हाथ लगाने की हिम्मत कोई नही करता. सारी दुनिया के सामने मस्जिद को शहीद करने वाले, क़त्ल गारत मचाने वाले, खुले आम इज्ज़तदार बने घूम रहे हैं…आप मुझे बताइए बाबा, उनकी करतूतों की उनकी कौम से सफाई क्यों नही मांगी जाती? उन्हें शक की नज़रों से क्यों नही देखा जाता? हम सच भी बोलें तो गद्दारी का तमगा पहना दिया जाता है, क्यों?
हमारा जुर्म क्या यही है की जब मुल्क का बटवारा हुआ तो हम ने अपना देश नही छोड़ा?
बाबा उसकी आंखों में तड़पता हुआ गुस्सा देखते हैं और जाने क्यों सर झुका लेते हैं.
वो उनके सामने आ खड़ी होती है ‘’ बाबा आप ही कहते थे ना की दुनिया में सब से ज्यादा महफूज़ हिन्दुस्तानी मुस्लिम्स हैं, आज देख लीजिये, एक हादसे ने सारे मायने ही बदल डाले हैं. आज हम अपने ही मुल्क में अकेले हो गए हैं. आज हमें एक ऐसे सरबराह की ज़रूरत है जो हमारे साथ खड़ा हो कर हमें ये अहसास दिला सके कि हम अकेले नही हैं, लेकिन ऐसा कोई नही है, हमें वोट बैंक की तरह इस्तेमाल करने वाले भी तमाशाई बने बैठे हैं.
आप जानते हैं, आज कालेज में एक्स्ट्रा क्लास लेने से इनकार करने पर एक लड़के ने मुझे कहा कि पता नही मुस्लिम्स लडकियां ख़ुद को इतना ख़ास क्यों समझती हैं.हालांकि उसके ऐसा कहने पर सर ने उसे डांटा भी, मैं कहना तो बहुत कुछ चाहती थी लेकिन आप ने मुझे मना किया था की ऐसे किसी टोपिक पर मैं अपनी ज़बान ना खोलूं, मैंने कोई जवाब तो नही दिया पर मैं उसकी आंखों के बदलते रंग देख कर दंग रह गई. आपको पता है ये वही लड़का था जो जाने कब से मुझ से दोस्ती की ख्वाहिश रखता था. कई बार सख्त लहजे में बात करने के बावजूद कभी उसके नर्म और मीठे लहजे में तब्दीली नही आई थी. आज उसका लहजा उसकी आंखों का अंदाज़ सब बदल गए थे. बाबा ये सब ठीक नही है, लोगों को बदलना होगा, ये हमारा देश है, कोई हमें पराया नही कर सकता. लोगों को समझना होगा की दहशत गर्दी का जन्म ज़ुल्म और बेइंसाफी की कोख से होता है. इसका ताल्लुक ना किसी मज़हब से होता है न किसी कौम से.
ये कुछ बेवकूफ और जज्बाती लोगों का इंतकाम होता है, ठीक उसी तरह जैसे ऊंची जात वालों के ज़ुल्म और तशद्दुद से तंग आकर छोटी जात के कहे जाने वाले कुछ जज्बाती बन्दूक उठा लिया करते थे. उसमें मज़हब का कोई दखल नही होता. बाबा ये बात लोगों को समझनी होगी, मीडिया को समझनी होगी जो तरह तरह की बातें फैला कर लोगों के जज़्बात भड़का रहा है. कुछ गलतियां हम पहले कर चुके हैं, अब और किसी गलती की गुंजाइश नही बची है. ये बात सब को समझनी होगी. हम एक घर में रहने वाले और एक ही फॅमिली का हिस्सा हैं. अगर खुशियों में एक हैं तो गम और मुसीबतों में भी एक होने चाहियें. परिवार तो वाही होता है ना बाबा?
वो थक कर चुप हो गई है, बाबा खामोश भीगे फर्श को तकते हुए जाने क्या सोचे जारहे हैं.
‘’बेटा, मैंने उम्मीद का दमन नही छोड़ा है, ये रमजान का महीना है, ये हमें सब्र की तलकीन करता है, सब्र से बड़ा हथियार कोई नही है.’’ आओ अब अनादर चलें’’
‘’सब्र…वो तल्खी से मुस्कुरा देती है. बाबा के सामने दिल में छाया गुबार निकाल कर मन कुछ हल्का हो गया है.बारिश की बूँदें फिर से गिरना शुरू हो गई हैं. मौसम कुछ और सर्द हो गया है, सन्नाटा भी और गहरा हो गया है. वो आसमान को देखती है. पता नही, उसका वहम है या सच, अँधेरा कुछ और बढ़ता महसूस हो रहा है. वो बाबा का हाथ थामे हुए अन्दर की जानिब बढ़ जाती है.
38 comments:
बेहतरीन तहरीर है...और तस्वीर भी प्यारी है...अपने ब्लॉग में आपके ब्लॉग का लिंक दिया है, ताकि कभी आपके ब्लॉग पर आने में सहूलियत रहे...
‘’सब्र…वो तल्खी से मुस्कुरा देती है. बाबा के सामने दिल में छाया गुबार निकाल कर मन कुछ हल्का हो गया है.बारिश की बूँदें फिर से गिरना शुरू हो गई हैं. मौसम कुछ और सर्द हो गया है, सन्नाटा भी और गहरा हो गया है. वो आसमान को देखती है. पता नही, उसका वहम है या सच, अँधेरा कुछ और बढ़ता महसूस हो रहा है. वो बाबा का हाथ थामे हुए अन्दर की जानिब बढ़ जाती है.
bahur bhaawuk hain aap....dunder likha hai
कुछ नासमझ लोगों के कारण यह धुंद छाई है , किंतु विशवास है की यह धुंद जल्द ही छंट जायेगी .
आपने अहम सवाल उठाया है,
उनकी करतूतों की उनकी कौम से सफाई क्यों नही मांगी जाती? उन्हें शक की नज़रों से क्यों नही देखा जाता? हम सच भी बोलें तो गद्दारी का तमगा पहना दिया जाता है, क्यों?
बहुत ही भावुक हो कर लिखा है आपने ...
रक्षंदा आपने लिखा भी अच्छा है और बहुत अहम सवाल भी उठाये है ।
बहुत भावुक लेख लिखा है आपने।
Bhaav se bheege hue shabd.. mahsoos kiye ja sakte hai.. ab kya kahu Ishawar kare sab jaldi theek ho jaye...
बहुत ही सुंदर तस्वीर के साथ अति सुंदर प्रस्तुति दी है आपने बधाई हो
आप ओर आपके बाबा उन लोगो में से एक है जिन पर इन्सानियत को फक्र है ,सच में दुखद है ,धुंध मगर दोनों ओर है जिस तरह कुछ ग़लत लोगो की वजह से किसी मजहब या कौम को ग़लत नही समझा जाना चाहिए ,उसी तरह कुछ सरफिरे लड़को की वजह से आप सबके लिए ऐसा न सोचे .
पर दुःख जब होता है जब ऊपर से लेकर नीचे तक कोई दिल्ली ब्लास्ट में मरने वालो पर एक शब्द नही बोलता ,शर्मा को तो कुछ उर्दू अखबारों ने ये तक लिखा है की वे इतने घायल नही थे की मरे (फिरदौस का ब्लॉग)तो दुःख होता है ,देश तो हम सबका है फ़िर अपराधी का धर्म इतना महतवपूर्ण क्यों है ?क्या किसी चोर को सिर्फ़ इसलिए छोड़ दिया जाए क्यूंकि वो फलां मजहब का है .
हिन्दुस्तान में एक बहुत बड़ी आबादी मुसलमानों की है ,क्या किसी मुस्लिम देश में ओर किसी धर्म को इतनी आज़ादी है ?क्या किसी मुस्लिम देश में कभी कोई प्रेजिडेंट हिंदू बन सकता है ?क्यों मुस्लिम बुद्दिजीवी कठमुल्लेपन ,फतवों के ख़िलाफ़ नही बोलते ?क्यों जमा मस्जिद के इमाम मुसलमानों के अन्दर शिक्षा की कमी ,गरीबी ,जैसे जरुरी मुद्दों से हटकर आतंवादियों के घर पहुँच जाते है ?क्यों लोग इंतज़ार नही करते की ओर खुलासा हो ?
जब इस तरह की बातें होती है तो आम आदमी के मन में शक होता है ,ओर आप जैसे नेक मुसलमानों को इससे परेशानी होती है पर अच्छा हो आप भी उनके खिलाफ लिखे .
bahit hi bhavuk dardanak.
Raskhanda ji,
PARIWAR , ko tabaah hota dekh ker bhee sabr to karna hee hoga.!1
..kaash,
kuch log jo, barbaadi faila rahe hain, unko akal aa jaye aur aise Gunaah band ho jaayein !
aap aise insaan aap ke samne aa jayein to unse kya kahengee ?
"मैं मानता हूँ की हमारे साथ ग़लत हो रहा है लेकिन ये वक्ति बेवकूफियां हैं जो वक्त के साथ ख़त्म हो जायेंगी।"
यह गहरा सब्र और अगाध विश्वास ही हिन्दुस्तान की थाती है। यह देश सब का है और रहेगा। वक्ती लोग बुलबुले की तरह फूट जाएँगे।
हम सब के चाहने ना चाहने से ये दीवार नहीं टूटने वाली। धमाके किए ही इसलिए जाते हैं कि नफ़रत फैले और शंकाओं की परत और जमती जाएँ। दिक्कत यही है की शंका सब को एक ही तराजू पर तौल देती है। और अच्छे लोग भी उसी चक्की मे पिसते हैं।
ऍसे में हम इतना ही कर सकते हैं कि देश के कानून और देश के दुश्मनों के हर कृत्य की भर्तस्ना करें चाहे वो किसी भी मजहब से ताल्लुक रखते हों।
हाँ कुछ बुजदिल लोग अपने नापाक इरादों से मज़हब को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं. ये देश के ही नही सारी कौम के दुश्मन हैं, इंसानियत के दुश्मन हैं.’’
आप ने बिलकुल सही लिखा हे, अरे इतने भावुक मत होऎ, आप सब हमारे अपने ही हे, लेकिन जेसा कि आप ने उपर लिखा हे, वह भी सच हे,सभी लोग ऎक सा नही सोचते, फ़िर कुछ बीच मे भडकाउ भी होते हे, रक्षंदा जिस देश मे मे रहता हु, वह मेरा नही , यहां जब कोई भी भारतीया कुछ भी गलत काम करता हे तो सब से पहले उसे हम लोग लानत भेजते हे, फ़िर अपनी बिरादरी से निकाल बाहर करते हे, ओर हमारे यहां सिर्फ़ भारतीय भारतीया ही होता हे हिन्दु मुस्लिम या उन्च नीच कुछ नही, यही कारण हे कि यहां हम लोग बिरादरी के बाहर निकाल जाने से कोई जुर्म नही करते , सब मिल कर रहते हे, क्यो कि एक भारतीया भी गलत काम करता हे तो सभी को शर्म आती हे ओर फ़िर टी वी पर जब दिखाया जाता हे तो उस का नाम या मजह्ब नही सिर्फ़ उसे एक भारतीया कहा जाता हे.
अरे उदास मत होये ओर अपने बाबा जान को भी कहे की उन का कहना सही हे मुस्लिम भारत मे अन्य देशो से ज्यादा सुरक्षित हे क्यो कि यह देश उस का अपना हे, ओर अपने बाबा को हमारा सलाम कहना,
आप को ओर आप के सारे परिवार को रमजान की मुबारक वाद, ओर एक मुस्कान हम सब के नाम
धन्यवाद
Anonymous साहेब !
हर बात पर प्रश्न करते समय सोचना तो दोनों तरफ़ का चाहिए अगर आप न्याय प्रिया व्यक्ति हैं ...न कि गुस्से में जो मन में आए प्रश्न करते चले गए ... आइये सोचते हैं ....
१.शर्मा को तो कुछ उर्दू अखबारों ने ये तक लिखा है की वे इतने घायल नही थे की मरे (फिरदौस का ब्लॉग) --
मुझे भी अजीब लगता है कि फिर उन्हें किसने मारा ..मगर अखबारों में छपी ख़बर अगर कहीं सच निकली तो ....
२.क्या किसी मुस्लिम देश में ओर किसी धर्म को इतनी आज़ादी है ?क्या किसी मुस्लिम देश में कभी कोई प्रेजिडेंट हिंदू बन सकता है ?
-- किसी और मुस्लिम देश से तुलना क्यों ?.... मुस्लिम अगर योग्य है तो किसी भी पोस्ट के लायक है ...धर्म और योग्यता का क्या रिश्ता ...
-क्यों जामा मस्जिद के इमाम मुसलमानों के अन्दर शिक्षा की कमी ,गरीबी ,जैसे जरुरी मुद्दों से हटकर आतंवादियों के घर पहुँच जाते है ? आपने ख़ुद कभी यह भाषण सुना है .....?
सुनी सुनाई बातें से गलतफहमी पैदा होती है ! एकपक्षीय तरीके से कभी न सोचिये ! आपके ल लेखन से लगता है कि आप बुद्धिजीवी हैं , फिर आप बिना क्रोध और दुराग्रह के दोनों पक्षों को जानने व समझाने का प्रयत्न करें ! विश्वास करें आप को ख़ुद संतोष महसूस होगा ! आप उनकी जगह पर रख कर एक वार अवश्य सोचें , यह मेरा आग्रह है ! आशा है बुरा नही मानेंगे !
सादर
काबिले तारीफ़ ..
सुन्दर, संवेदनशील पोस्ट!
अपने बाबा को मेरा सलाम कहिये ...
मेरी तो बस यही दुआ है....
दस्तूर किसी मजहब का ऐसा भी निराला हो
इक हाथ में इल्म हो दूजे में निवाला हो
Aapki lekhni mein kafi samvedanshilta hai.Apni samvednaon ke vividh rangon se yun heen parichay karati rahiye.(Abhishek)
‘’हम सब ठीक होने का इंतज़ार क्यों करें? हम किसी को सफाई क्यों दें? ये हमारा देश है, वैसे ही जैसे बाकी लोगों का, वो चाहे चर्चों पर हमले करें,चाहे बेगुनाह ईसाइयों को क़त्ल करें, बिहारियों पर ज़ुल्म करें, बम बनाते हुए पकड़े जाएँ, उन्हें हाथ लगाने की हिम्मत कोई नही करता. सारी दुनिया के सामने मस्जिद को शहीद करने वाले, क़त्ल गारत मचाने वाले, खुले आम इज्ज़तदार बने घूम रहे हैं…आप मुझे बताइए बाबा, उनकी करतूतों की उनकी कौम से सफाई क्यों नही मांगी जाती? उन्हें शक की नज़रों से क्यों नही देखा जाता? हम सच भी बोलें तो गद्दारी का तमगा पहना दिया जाता है, क्यों?...............
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कुछ ऐसे सवाल अक्सर मैं भी पुरे देश से करना चाहता हूँ. लेकिन कर नहीं पाता...........डरता था ऐसे सवाल करने पर ही अगर देश के प्रति मेरी निष्ठां पर लोग शक करने लगे तो .........और फिर किस से करुँ? नेताओं से? ये तो आतंकवाद के असली जिम्मेदार हैं! हाँ जनता से कर सकता हूँ. लेकिन वो बेचारी तो आतंक की चक्की में पिस रही है, क्या मेरी बात सुन पायेगी!
@सतीश जी -सब से ज़्यादा तसल्ली की बात यही है और यहीं आकर बाबा के सब्र वाली बात थोडी तसल्ली देती है की आज भी भारत में कुछ ऐसे लोग रहते हैं जिन्हें सही मायनों में इंसान कहा जासकता है, और भारत का पूरा भविष्य इन्हीं पर टिका हुआ है, दुःख यही है इनकी गिनती बेहद कम है...माना ऐसा जाता है की एजूकेशन इंसान के दिमाग को खुला बनाती है, वो इंसानियत के बारे ज़्यादा सोच सकता है लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है की आज के पढ़े लिखे युवा अन्दर से इतनी जाहिलाना सोच रखते हैं की जिहालत भी ऐसे लोगों के आगे फख्र कर सकती है...मैं आपको एक वाक्य सुनाती हूँ जो मेरी बहन के साथ बीता...सुनकर शायद आपको भी यकीन ना आए...लेकिन यकीन कीजिये ये सच है....हुआ यूँ की मेरी बहन स्केच कर रही थी, तभी एक लड़की उसके पास आई और पूछा की क्या स्केच कर रही हो?
मेरी बहन के जवाब देने पर वो हस दी और कहने लगी..अच्छा..मुझे लगा 'बम' का स्केच बना रही हो...हो सकता है सतीश जी उसने ये बात मजाक के मूड में कही हो लेकिन आप सोचिये आज हमारे लिए लोगों की सोच कितनी घटिया है, मेरी बहन ने भी उसका जवाब हंसकर यूँ दिया '' हाँ डर जाओ, मैं बम ही बना रही हूँ...आप बताइये, इस तरह की सोच कौन भर रहा है?
ये ज़हरीली सोच ही दहशत गर्दी को बढ़ावा दे रही है....लोगों को ये बात समझनी होगी, नही तो हालात इस से भी बदतर हो सकते हैं...अच्छा खासा सेकुलर माइंडेड इंसान भी ऐसे में जज्बाती हो जाए तो हैरान नही होना चाहिए...
watever you have written i might not agree with all ur thoughts but i would like to appreciate the way of expression. though at some places ur mood overtook your writing but after that too its nice peace to read......
आप परेशान न हों बिलकुल भी....आपके बाबा बिलकुल सही कहते हैं! बस विश्वास बनाये रखें की ये दिन जल्द ही निकल जायेंगे!वैसे भी हर व्यक्ति एक हादसे के लिए पूरी कौम को दोषी नहीं ठहराता...जो ऐसा करता है वो इंसान कहलाने लायक ही नहीं है!
. हाँ कुछ बुजदिल लोग अपने नापाक इरादों से मज़हब को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं. ये देश के ही नही सारी कौम के दुश्मन हैं, इंसानियत के दुश्मन हैं..
सुंदर प्रस्तुति.भावुक लेख,बधाई,
achcha likha hai aapney
har inssaan ek hi tarah se nahi sochta.. yadi aisa hota to kalam sahab rashtrapati nahi bante.. shahrukh khan salman khan aamir khan ye log yuhi famous nahi ho gaye hai.. nawab pataudi.. irfaan khan.. zaheer khan.. ye naam kaha se aaye..
aap bhi to rakshanda rizvi hai.. kisi blogger ne aapka lekh ye kahkar nahi thukra diya ki aap ek muslim hai..
aapke sare lekh mein dharm majhab ki hi baate hoti hai.. inse aage bhi ek duniya hai..
jo kah raha hu use anyatha mat lijiyega..
all the best..
kuchh insano ke liye sabko kosna nisandeh galat hai par tum ho ya main hame hi dahsat gardon ke khilf aawaj uthani hai,koi aur hamara kaam nahi kar dega,bas yah baat dhyan me rakhni chahiye.
कुश...जिन लोगों का आपने नाम लिया है की ये इतने फेमस कैसे बने...तो प्लीज़ एक बात मैं बता दूँ, की कलाम साहब को राष्ट्रपति बना कर हमारे ऊपर कोई एहसान नही किया गया...पहली बात ये की कलाम साहब जितने काबिल थे, उनके समकक्ष भी कोई खड़ा नही हो सकता था...दूसरी बात ये की , चाहे वो ज़ाकिर हुसैन हों, या कलाम, उन्हें क्या बनाया गया, राष्ट्रपति...क्या पावर होती है प्रेजिडेंट की...सरकार की कठपुतली से ज़यादा उनकी कोई अहमियत नही होती...उन्हें वाही करना ही पड़ता है जो सरकार चाहे...ज़रा बताइये..कितने मुस्लिम प्रधानमन्त्री बने हैं भारत के? ना बने हैं ना आगे बन्ने का सपना हम देखते हैं...हमें नही चाहिए ये सब..बस हम चैन से जीना चाहते हैं..अपने देश में अपने घर की तरह...जहाँ हमें रोज़ रोज़ अपने नाकर्दा गुनाहों की सफाई न देनी पड़े...और रहा सवाल मेरी पोस्ट में मज़हबी बातें होती हैं तो कुश जी, जिन हालत से आजका मुस्लिम गुज़र रहा है या जैसा उसे गुजारने पर मजबूर किया जारहा है, ऐसे हालत में हमें ना कवितायें सूझती हैं ना कहानियाँ...ईद आने वाली है लेकिन हमारे लिए कैसी ईद...कैसी खुशियाँ...खुदा ना करे कुश जी जो आपको कभी ऐसे हालत से गुज़रना पड़े...उम्मीद है मेरी तल्ख़ बातों का बुरा नही मानेंगे...क्या करें...आजकल हम ऐसे ही हैं...
@anonymous-सब से पहले शुक्रिया की बिना नाम लिखे आपने अपनी राय यहाँ रखी, और पूरी बेबाकी से रखी, आपका ये सवाल कि ..1.पर दुःख जब होता है जब ऊपर से लेकर नीचे तक कोई दिल्ली ब्लास्ट में मरने वालो पर एक शब्द नही बोलता ,शर्मा को तो कुछ उर्दू अखबारों ने ये तक लिखा है की वे इतने घायल नही थे की मरे (फिरदौस का ब्लॉग)तो दुःख होता है ,देश तो हम सबका है फ़िर अपराधी का धर्म इतना महतवपूर्ण क्यों है ?क्या किसी चोर को सिर्फ़ इसलिए छोड़ दिया जाए क्यूंकि वो फलां मजहब का है
१ तो इसका जवाब ये है कि आप हमेशा हमें ही शक की नज़र से क्यों देखते हैं? क्या आपको पुलिस काबिल-ऐ-एतबार लगती है? क्या आप नही जानते कि किस तरह परदे के पीछे क्या क्या होता है? किस तरह झूठे इनकाउन्टर किए जाते हैं , सच कुछ होता है और हमारे सामने कुछ और दिखाया जाता है...आप क्यों नही एक बार इस रुख पर भी सोचते...जहाँ तक सवाल आपके ये कहने का कि ऊपर से नीचे तक किसी ने उसकी बुराई नही कि, तो बात फिर वही कि हम से सफाई क्यों मांगी जाती है? ज़रा बताइये , आप लोगों में से कितनों ने कर्णाटक और उडीसा में बेगुनाह ईसाइयों पर होने वाले हमले की मज़म्मत कि...कितनों ने मांग की कि बजरंग दल जैसे खुनी पार्टियों पर बैन लगाया जाए, शिव सेना को पर्तिबंधित किया जाए...राज ठाकरे को बंद किया जाए...हम ने कब आपसे सवाल पूछा...कब आपसे सफाई मांगी...इन्साफ से सोचिये क्या मैं ग़लत कह रही हूँ...
जहाँ तक बात जुमा नमाज़ के खुतबे की है, आप पूरी तरह से ग़लत फहमी में जी रहे हैं...आप किसी भी मस्जिद में जाइए, हर पेश इमाम दहशत गर्दी के ख़िलाफ़ बोलते सुनाई देंगे...आप मुहर्रम की मजलिसों में जाइए और एक बार सुनिए...हमारे सभी मौलाना दहशत गर्दी के ख़िलाफ़ इस कदर जम कर बोलते हैं..कि कभी कभी गुस्सा भी आता है कि हम क्या कोई मुजरिम हैं जो हर मजलिस में इसी टोपिक पर बोलते हैं? इसके बावजूद अगर आप ये इल्जाम लगाते हैं तो दुःख के साथ शर्म भी आती है इस मानसिकता पर....कि इतना करने का क्या फायदा, जब इल्जाम वही लगना है...सच्चे दिल से सोचिये...इन ग़लत फहमियों को दूर कीजिये...हम भारतीय पहले हैं...देश की भलाई हम सब की है, हिंदू मारे जाएँ या मुस्लिम ...ईसाई मारे जाएँ या सिख...मरता एक भारतीय है...मरता एक इंसान है....जवाब ख़ुद से भी मांगिये...दूसरों को आइना दिखाने से पहले एक बार ईमानदारी से अपना चेहरा आईने में ज़रूर देखिये...
ये अच्छा है! खाजा खाना भी है और रखना भी है.. माफ़ कीजिएगा आपकी बात में लॉजिक नज़र नही आ रहा.. ये मेरी अपनी सोच है..
Dear All,
First thing, kindly someone suggest how to comment in Hindi so that I can learn it because whenever I open the comment box i have to type only in english... whereas I have Kruti & Brahmaha & able to type in Hindi in my blogpost. please someone suggest.
Now coming to the sensitive issue:
1.Ms Rakshanda, The moment you claim 'A single Family' you cannot disown whatever has been done by any of your family members. The basic flaw is there on both sides. This must be followed especially when the issue is religious.The whole of Hindu Community is responsible if Churches or any other religious shrines or feelings are attacked... similarly the whole of Muslim Community is to own responsibility if any such illogical (& cruel)expression like Bombing & terrorising takes place. This approach that only a Few distracted youth have done it & see we clean & neat people are paying the price is fundamentally wrong. Mind you,. i am meaning it to both sides.Yes, you have to pay the Price.Yes, we have to pay the Price... because our very brethern have adopted a short term vision & we are not doing anything to setting it right. And in worst case, we are rather sympathysing with them ... clandestinely of course. Mind you again, I am meaning this to both sides.
2. Who is Secular & who is Fundamental ... this discussion is endless &hopeless. In every community, religion & country.. there are secularist & fundamentalist forces..What is needed is that Secularist Forces should be stronger & more than that They Should be 'Honest'. In our country the so called secularists are a most confused lot & above all Worst exploiters of votes. That is the reason why reactionary forces are Gaining ground & having a receiving 'ear' in both the communities. There is Total disillusion in the mind of general public of this country with either congress or bjp or any other political parties for that matter. This country, it seems, is condemned to be religious in Half Hearted manner.
عید مُبارک
हमने कई बार उन आरोपों की दरयाफ्त करने की कोशिश की है जो आम तौर पर मस्जिदों की तक़रीरों पर लगाये जाते हैं. बताया जाता रहा है की बाज़ार में चिपके उर्दू में लिखे पोस्टर जाने किन किन चीजों से भरे होते हैं.
हमें नही पता कि इन चीजों कि शुरुआत कहाँ से होती है पर इतना जरूर है कि उर्दू पढ़ना जानने के तुंरत बाद हम ने पोस्टरों को ध्यान से देखना शुरू किया
हमने पाया कि उन पर चंद मजहबी बातें ही होती हैं.
अभी तक जितने मस्जिदों के खुतबे हमने सुने हैं वो भी उन आरोपों से दूर हैं जिन्हें उनपर लगाया जाता रहा है
एक तक़रीर में तो हम सुन रहे थे कि कैसे बोलने वाली शख्शियत लोगो को बता रही थी कि जिन्ना साहब को बाकायदा अंग्रेजों ने शाह दी थी और वो ख़ुद सच्चे मुसलमान तक नही थे
हो सकता है कि आरोपों में कहीं कुछ सच्चाई हो पर अभीतक हमें नजर नही आई
अब ऐसे में जब सिर्फ़ और सिर्फ़ शक ही फैला हो तो जहीन लोगो को आगे आना चाहिए
जिन्हें शक है उन्हें सिर्फ़ जाहिर करके नही रहना चाहिए बल्कि देखने कि भी कोशिश करनी चाहिए कि उसमे दम भी है या नही
देश की सत्तरह फीसदी आबादी अगर यूँ ही शक के साये में रहेगी तो हम तरक्की कैसे करेंगे?
सवाल जायज हैं और शक की निगाह रखने वालों को तार्किक होना होगा
रक्षंदा जी आपके लेखन में भारतीय युवा मुस्लिम का क्रोध झलकता है। यह क्रोध जायज भी है।और सिर्फ़ मुस्लिम युवा ही नहीं बल्कि इस देश का पूरा युवा वर्ग ही नेताओं की सियासी करतूतों से पीड़ित और क्रोधित है।परन्तु मेरे विचार से इस देश के युवाओं को मिलकर इस घृणा और क्रोध के माहौल से लड़ना होगा.ये लडाई हिंदू और मुस्लिम के बीच नही बल्कि प्रगतिवादी ताकतों और प्रतिक्रियावादी ताकतों के बीच है। इसलिए हमें अपनी कौमी, भाषीय और क्षेत्रीय पहचान से ऊपर उठकर राष्ट्रीय पहचान को मजबूत बनाना होगा। मैं ये दावे के साथ कह सकता हूँ की इस देश में प्रगतिवादी लोगों की कमी नहीं है, बस ये लोग एकजुट नहीं हैं। इसलिए मैं आपसे आग्रह करता हूँ कि एक भारतीय होने का प्रायश्चित करने कि बजाय देश को मजबूत करने वाली ताकतों का साथ दीजिये क्योंकि जब हमारे घर में आग लगी होती है तो हम आग को बुझाने का प्रयास करते हैं, न कि उस घर में होने का पछतावा करते हैं। उम्मीद है कि मैं अपनी बात आप तक पहुँचने में कामयाब हूँगा- आमीन
प्रिय रक्षंदा जी आपके मन जो टीस थी आपने वो लिखे दी, मानता हू की जो हो रहा है वो ग़लत हो रहा है, अगर १ ग़लत करे तो उसके लिए सभी को बदनाम नही करना चाहिए........... लेकिन जब आपने अपने मन की भडास निकली तो क्यों न मै भी कुछ सवाल उठाना चाहूँगा, शायद आपको अच्छा न लगे क्योंकि हकीकत कड़वी होती है.. ... उम्मीद करता हू आपको इतिहास का अच्छा ज्ञान होगा, जिस मस्जिद की आप बात कर रहे हो, आप ये क्यों भूल गई को वो मस्जिद मन्दिर को तोड़कर जबरदस्ती बनाई गई थी, जिन ईसाईयों की आप बात कर रही हो, आप ये क्यों भूल जाती हैं की वो पैसे के बल पर लोगों को प्रलोभन देकर धरम बदलाव रहे है, उन लोगों ने वह के १ सामाजिक कार्यकर्ता को किस तरह सद्यन्त्र के तहत मारा था, आपको ये भी याद होगा की भारत मैं किस धरम के लोगों ने जन-गन-मन राष्ट्रीय गीत का बहिष्कार किया, हमारे देश मैं हज यात्रा के लिए करोड़ों सब्सिडी दी जाती है, उनको हर तरह की सुविधा दी जाती है लेकिन अमरनाथ मैं यात्रा के दौरान ३ महीने के लिय अस्थायी रूप से जमीं देना इनको नागवार गुजरा........ क्यों, कितने ही मुस्लमान राजाओं ने जबरदस्ती हिंदू अबलाओं की इज्जत लुटी, कितने बेकसूर लोगों को मरवाया........याद होगा ना
अब आप ही बताइए जब आप केवल इल्जाम लगने से इतनी आक्रोशित हो गई, सोचो उनपर क्या गुजरी होगी जिनकी इज्जत लुटी गई, मन्दिर तोडे गए, उनका धरम बदलवाया गया, जिसने स्वीकार नही किया उसको मरवा दिया गया...................
अगर मेरी वजह से आपको ठेस पहुची है तो मैं आपसे उसके लिए माफ़ी मांगता हूँ, लेकिन हर चीज़ को नज़रअंदाज करना अच्छा नही होता, इस तरह का सवेंदनशील विषय लिखने से पहले हर पहलु का ख्याल रखना चाहिए!
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