Wednesday, March 12, 2008

हमें क्या दुःख है........

ये कुछ 'नज्म' हैं जो मेरी तो नही हैं पर मुझे इतनी पसंद हैं की लिखे बिना नही रह सकी...

पूछने वाले तुझे कैसे बताएं आख़िर..

दुःख इबारत तो नही है जो तुझे लिख कर दे दें..

ये कहानी भी नही है की सुनाएँ तुझ को..

ज़ख्म हो तो तेरे नाखून के हवाले कर दें

आईएना भी तो नही जिस को दिखाएँ तुझको

ये कोई राज़ नही जिस को छिपाएं तो वो राज़,

कभी चेहरे कभी आंखों से छलक जाता है,

जैसे आँचल को संभाले कोई,ओर तेज़ हवा..

जब भी चलती है तो शानो से ढलक जाता है,

अब तुझे कैसे बताएं की हमें क्या दुःख है?





मुहब्बत ठहर जाती है..........





हम अक्सर ये समझते है ,,

जइसे हम प्यार करते हैं

उसे हम भूल बैठे हैं ,,

मगर ऐसा नही होता ,,

मुहब्बत दाय्मी सच है.

मुहब्बत ठहर जाती है,

हमारी बात के अन्दर

मुहब्बत बैठ जाती है

हमारी जात के अन्दर मगर

ये कम नही होती...

किसी भी दुःख की सूरत में

कभी कोई ज़रूरत में

कभी अनजान से गम में

कभी लहजे की ठंडक में

उदासी की ज़रूरत में

कभी बारिश की सूरत में

हमारी आँख के अन्दर

कभी आब-ऐ -रवां बनकर

कभी कतरे की सूरत में

बजाहिर ऐसा लगता है उसे

हम भूल बैठे हैं मगर ...

ऐसा नही होता ,मगर ऐसा नही होता ...

ये हरगिज़ कम नही होती ......

मुहब्बत ठहर जाती है..........



4 comments:

चक्करघिन्नी said...

आप अगर थोड़ी कोशिश करें तो इसे और अच्छी तरह से लिखा जा सकता था...
जैसे कि...

पूछने वाले कैसे तुझे बतायें दर्दे दिल की दास्तां।
इबारत कोई दुख की नहीं जो लिख दे ये आसमां।।

सुनाई जा सके जो तुझको ये वो कहानी तो नहीं। जख्म रिसता दिल से पर किसी की नजर नहीं।।

गर होता कोई आईना तो मैं दिखाती तुझको।
गर होता कोई राज तो मैं छुपाती तुझसे।।

कभी चेहरे से तो कभी आंखों से छलक जाता है। जैसे तेज हवा के झोंके में आंचल सरक जाता है।।

चली जब पुरवई हवा तो अश्क बह निकलते है।
कैसे बताएं हम तुम्हे कि ये अश्क क्यों बहते हैं।।

अब बताइये कि ये कैसी है। नज्म लिखें तो कोशिश कीजिये कि दोनों पंक्तियों के अंत में एक जैसे शब्द ही आएं।

rakhshanda said...

its so nice sir...ab main aapka mukabla to nahi kar sakti...mujhe to ab aap se seekhte rahna hai...really abhi to is duniya ko samjhne mein kafi time lagega...actually sir jo duniya meri hai...wo ajeeb si hai...yahan ke logo ki baaten badi ajeeb si hain...shayed aap nahi samjhenge...meri baaten mere aas paas ke logo ke sar se guzar jati hain...lekin mujhe aap logo ki ye duniya bahot pyaari lagti hai so pls be with me...thanks

चक्करघिन्नी said...
This comment has been removed by the author.
चक्करघिन्नी said...

आप लोगों की बातों पर ध्यान क्यों देती हैं। आप अपने आपमें सोचने की कोशिश कीजिये। लोग क्या सोचते हैं, क्या बोलते हैं, क्या करते हैं... यह उनका अपना नजरिया हो सकता है... लेकिन आपका नहीं। दुनिया कभी अजीब नहीं होती है, हमारे अपने विचार ही दुनिया को अजीब सा बनाते हैं। आप अपनी सोच में परिवर्तन कीजिये तो आपका दुनिया के प्रति नजरिया स्वयं ही बदल जाएगा। जो भी विचार आपने मन में घुमड़ते हैं, उन्हें ब्लाग में उकेर दीजिये।