सुर्ख ओ सफ़ेद चेहरा,बड़ी बड़ी रोशन और ज़हीन आँखें,लंबा कद लेकिन जो चीज़ उनकी शख्सियत कोसब से ज़्यादा असर अन्गेज़(प्रभावशाली) बनाती थी वो थी उनके चेहरे पर खूबसूरत दाढ़ी- आम तौर से दाढ़ी किसी भी चेहरे की खूबसूरती को कम कर देती है पर कुछ लोगों के व्यक्तित्व में ये चार चाँदलगा देती है.
उनके बोलने का अंदाज़ इतना सेहर अन्गेज़ (जादुई)था की सुनने वाला उनकी बातो के सेहर में खो जानेपर मजबूर हो जाता था. दिल में बसता हुआ धीमा धीमा लहजा और बात को तर्क के साथ पेश करने कावो अंदाज़ कि सामने वाला सहमत हुए बिना न रह सके. कुछ ऐसी ही शख्सियत के मालिक थे अतहरअली खान.
बाबा किसी से भी इतने जल्दी प्रभावित नही होते,लेकिन जब से वो उन से मिले थे,उनके होठों परउन्ही का नाम होता था…किसी की इतनी तारीफ सुनने के बाद अपने आप मन में उस व्यक्ति से मिलनेकी उत्सुकता जग जाती है,मुझे भी हुयी थी…
ये बात थोडी पुरानी है,लगभग पाँच साल पहले की,उन दिनों हम कोल्कता में रहा करते थे…यूँ तो मैंइतनी mature नही थी लेकिन जिंदगी के साथ साथ लोगो को देखने का नजरिया हमेशा से थोड़ा बूढारहा है मेरा…कभी कभी अपनी दोस्तों की बातें सच लगने लगती हैं कि तू तो पैदाईशी बूढ़ी है या तेरेअन्दर कोई बूढी रूह समां गई है..
एक बार जब बाबा के साथ वो हमारे घर आए थे तब पहली बार
फिर एक बार नही कई बार उन्हें देखा और सुना…अक्सर बाबा उन्हीं के साथ पाये जाते थे..
हमारे बाबा का नजरिया जिन्दिगी के प्रति ऐसा है की कभी कभी हैरानी होती है की अगर उन्होंने उच्चशिक्षा पायी होती तो जाने कहाँ होते…उनके ख्यालों की बारीकियां,उनकी thinking,लोगो को परखनेका उनका मापदंड आम लोगों से काफी अलग कर देता है उन्हें…ख़ुद को इस मुआमले में खुश किस्मतमानती हूँ कि मुझे उनका साथ नसीब है.
दिल की खूबसूरती का अक्स हमारे चेहरे पर नज़र आने लगता है..ये बात
ये ज़रूरी नही कि इंसान का चेहरा बहुत खूबसूरत हो,वैसे भी खूबसूरती की डेफिनिशन अलग अलगलोगो के लिए हमेशा से अलग रही है,गोरा रंग देखने वालों को आकर्षित करते नैन नक्श,सिडोल शरीरयोरोपिये दिरिष्टि से खूबसूरती की कसोटी पर खरे हो सकते हैं पर मेरी नज़र में खूबसूरती न तो गोरारंग है न तीखे नैन तक्ष न ही सिडोल शरीर और लंबा कद, असली सुन्दरता के मायने हैं इंसान काखूबसूरत दिल जो इतना हसीन हो की उसका हुस्न अपने आप चेहरे पर नज़र आने लगे.
अतहर अली खान का दिल कैसा है,ये उनके खूबसूरत व्यक्तित्व से ज़्यादा उनके खयालात और उनकेन्ज्रियात से पता चलता था. बात चाहे अपने मज़हब की हो रही हो या किसी और की, सियासत की होया जिंदगी के दूसरे पहलुओं की..उनके खयालात सच मच मुखतलिफ थे,एक बार बात ओर्तों केहुकूक(अधिकार ) और इस्लाम की हो रही थी, अब ओर्तों के अधिकार की जहाँ बात आए…हमारे बाबाकभी पीछे रहने वाले नही हैं..लेकिन ये सुनकर मुझे बड़ी खुश गवार हैरत हुई की अतहर अली खान ख़ुदबाबा की बातों के हिमायती थे…एक बार
सिर्फ़ हम ही नही , वहां लह्ने वाले सभी लोगों में वो काफी respected शख्सियत माने जाते थे.
उनकी बीवी भी बड़ी नरमदिल ओर प्यारी थीं. हमेशा दूसरों के काम आने वाली, वो परदा करती थींलेकिन करीबी collage में जॉब भी करती थीं, जहाँ तक परदे का सवाल है, हो सकता है बहुत से लोगोका नजरिया अलग हो लेकिन मेरे ख्याल में परदा कभी भी ओरत की तरक्की में रुकावट नही बनसकता, हम परदा कर के भी तरक्की की रफ़्तार में उसी स्पीड से दोड़ सकते हैं, जिस तरह बाकी के लोगदोड़ रहे हैं.
बात हो रही थी दूसरी और मैं कहाँ पहुँच गई, ये मेरी पुरानी और बड़ी बुरी आदत है, बहेर्हाल कहने कामतलब ये अतःर अली खान की शख्सियत से सिर्फ़ बाबा ही नही ख़ुद मैं बहुत प्रभावित थी.
वो दोपहर मुझे आज भी अच्छी तरह याद है जब हमेशा की तरह बाबा मुझे school से लेने आएथे,रास्ते में रुक कर उन्होंने फल खरीदते हुए बताया था की अतहर अली कई दिनों से बीमार हैं औररास्ते में वो थोडी देर को उनकी खरियत लेने उनके घर चलेंगे .उनका घरमेरे school के काफी करीब थातो हमारे घर से काफी दूर. हम उनके फ्लैट पर पहुंचे.गर्मी का मौसम था.बाबा ने बेल बजायी पर कोईआवाज़ नही उभरी,शायेद वो ख़राब थी.
दरवाजे पर हाथ रखा तो वो खुलता चला गया.गर्मी के मरे बुरा हाल था.इसलिए हम बिना कोईतकल्लुफ़ किए अन्दर दाखिल हो गए.सारे घर में सन्नाटा था.ड्राइंग रूम भी खाली था .मैं उनके ड्राइंगरूम की शानदार सेटिंग से इम्प्रेस हुए बिना न रह सकी थी.इस से पहले की बाबा अतहर साहिब कोआवाज़ देते,करीब ही रूम से बर्तन के ज़ोर से पटखने की आवाज़ के साथ साथ किसी की धीमी मगरगरज्दार आवाज़ उभरी…”ये खाना बनाया है? इसे खाना कहते हैं जाहिल ओरत? तुम लोग कितना भीपढ़ लिख लो रहो गी वही जाहिल की जाहिल” ये आवाज़ बिला शुबहा(निसंदेह) अतहर साहब की थीलेकिन ये पथरीला और सर्द लहजा तो जैसे किसी और का था…जिसमें सामने वाले के लिए बेतहाशाहिकारत थी..जवाब में आंटी की सहमी सहमी सी आवाज़ उभर रही थी पर मैं तो बाबा की ओर देख रहीथी जो अजीब सी बेयाकीनी की कैफियत में थे.फिर जाने क्या हुआ,बाबा खामोशी से उसी तरह बाहरआगये जैसे अन्दर गए थे….सारा रास्ता वो खामोश रहे.
मेरा दिल चाह, पूछूँ कि बाबा जिनकी शख्सियत खूबसूरत होती है,क्या वो वाकई में(सचमुच) उंदर सेभी उतने ही खूबसूरत होते हैं? पर जाने क्यों मैं नही पूछ सकी.
उस दिन के बाद न कभी बाबा ने अतहर साहब के बारे में कोई बात की न ही
मैं आज भी मानती हूँ की लोगों को परखने के मामले में बाबा का कोई जवाब नही है.लेकिन ये भी तो सचहै न कि जीवन में अपवाद होते रहते हैं.अपवाद न हो तो जिंदगी का सारा हुस्न ही खत्म हो जाए.सोअतहर अली खान भी एक अपवाद ही थे.
12 comments:
सच है खूबसूरती मन की होती है…
पर तय यह भी कौन करे जो उसे
परखने की कोशिश कर रहा है वह भी
उतना ही सुंदर है…?
अच्छा लिखा है…
कुछ-2 अक्ष्रर एक हो गये हैं उनको अलग कर लें…
बहुत ही विचार संपन्न लेख है… सुंदर!!
क्या बात है आपने तो ठान रखा लगता है एक से एक सही मुद्दे पे बात करने के लिए!!
भाषा अच्छी है, उर्दू भी माशा-अल्लाह अच्छी ही है। बस दिक्कत शायद टायपिंग मे है थोड़ी!!
अच्छा लगा आपको पढ़कर!!
लिखती रहिए!
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बहुत सही..क्या बात है, वाह!!!
भावपूर्ण विचार....अच्छा है...
पहली बार आपको पढ़ा और अच्छा लगा।
Thank u,aap sab ka shukriya mujhe itna hosla dene ka.main koshish karungi ki aap sab ki ummeedon par poora utar sakun.thanks.
सच हमेशा छुपा रहता है,
अपवाद होते हैं......पर , मुलम्में का उतरना तकलीफदेह होता है ,
अनुभवी आँखें भी धोखा खाती है!.......
बहुत अच्छे ढंग से लिखा,जो जिया
वो शख्स जो देखने मे मुझ से बहुत बड़ा था
पास जा के देखा तो नकली लम्बे पैरो पे खडा था
कुछ इस तरह का अनुभव होता है जब हम किसी सच जान लेते है
बहुत खूबसूरत लिख्ती है आप
divine india,sanjeet ji,udan ji,bodhsatv,mamta n rashmi didi and krishn ji-very very thanks for ur support.pls be with me.thanks again.
apan bhi idhr aate rhte hain...snd rhe
बहुत बढ़िया विचार..
फोन्ट की साइज अगर छोटी करदें तो पोस्ट और सुंदर दिखने लगेगी।
फोन्ट को छोटा करने के लिये जो कोड है वह यहां नहीं लिखा जा सकता।
sagarnahar et gmail.com
bahut achha lekh hai...
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