इंसान को बोलने वाला जानवर कहा जाता है. लेकिन जो खूबी(गुण) इंसान को मख्लूकों में अशरफ (जानदारों में सर्वश्रेष्ठ ) यानी अशरफुलमख्लूकात बनाती है और फरिश्तों से भी अफ़ज़ल (श्रेष्ठ) करार देती है वो है गुनाह की हिस रखते हुए भी गुनाह न करने की ताक़त .
सच तो ये है कि इंसान अगर ख़ुद को पूरी तरह काबू (कंट्रोल) में रखे तो उस से ज्यादा ताक़तवर कोई नही.
लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है कि यही इंसान आज बेकाबू है और इसी खराबी ने उसे बे इन्तेहा कमज़ोर कर दिया है .तह्ज़ीबी अखलाकी गिरावट ने उसे ज़लील-ओ-ख्वार कर रखा है कि कभी कभी तो उसकी स्याह (काली) करतूतों के सामने दरिंदों या वहशी जानवरों की मिसाल (उदाहरण) देना जैसे उन बेजुबानों की तौहीन(बेईज्ज़ती ) महसूस होती है।
क्या कर रहा है इंसान?
अपने ही जैसे इंसानों को खाता जा रहा है. जयपुर में जो कुछ हुआ वो तो महेज़ (सिर्फ़) वहशतों की एक छोटी सी तस्वीर है. ऐसी खूनी तस्वीरें ,ऐसे मंज़र हर दूसरे दिन इंसान देखने और सुनने पर मजबूर है.
खुदा ही जाने कि ताबीर-ऐ-ख्वाब क्या निकले
हवा के दोष(कन्धों) पे देखा है रक्स(नाच) शोलों का
हवा के दोष(कन्धों) पे देखा है रक्स(नाच) शोलों का
मासूम बेगुनाहों की मौत अन्दर तक आग भर देती है.दिल कहीं अन्दर से फूट- फूट कर रोता है. शायद खबरें देने वालों के लिए ये ख़बर पुरानी पड़ गई हो लेकिन उन दिलों का क्या करें जो अन्दर से खाली और वीरान हो गए हैं, उन आंखों का क्या करें जिन के आंसू थमने का नाम ही नही ले रहे।
लाशें चाहे जयपुर की हों या मुम्बई की , खून से लत पथ चेहरे मालेगाँव के हों या बनारस के .वो सारे चेहरे हिन्दुस्तान से भी पहले इंसानों के थे .
सरहदों से निकल कर देखें तो भी मंज़र वही होता है. दिल वैसे ही रोता है. झुलसे हुए वो वजूद इराक के हों या अफगानिस्तान के, बेनूर आँखें फिलिस्तीन की हों या पाकिस्तान की , चेचनिया की हों या अमेरिकन , हर लाश इंसान की होती है . हर खून इंसानियत का होता है. वो खून जिसका ना कोई मज़हब है न जिसकी कोई सरहद है , न कोई कौम है न फिरका . खून गोरे का हो या काले का, हिंदू का हो या मुसलमान का ,हिन्दुस्तानी हो कि पाकिस्तानी, इराकी हो या फिलिस्तीनी , ये सुर्ख(लाल) ही होता है . इसका रंग एक है जो चीख चीख कर कहता है कि ये इंसानियत का क़त्ल है हम इंसान हैं तो दूसरे इंसान की मौत हमारी मौत है.
एक खुदा के सब बन्दे हैं, एक आदम की सब औलाद
तेरा मेरा खून का रिश्ता, मैं सोचूं , तू भी सोच
मैं जानती हूँ कि बहुत सारे सियासतदान इन बेगुनाहों की लाशों में भी अपनी सियासत की ठंडी पड़ चुकी रोटियाँ गरम करने की खुशबू महसूस कर रहे होंगे. लेकिन मेरी इल्तेजा(विनती) है उन लोगों से, कि खुदा के लिए इसे किसी मज़हबी या इलाकाई चश्मे से मत देखिये. अपने जैसे इंसानों की लाशों पर सियासत मत कीजिये, ये ना किसी एक पार्टी की हार है न दूसरी की जीत .ये इंसानियत की हार और वहशियों की जीत है , जिस तरह इंसानियत का कोई मज़हब नही होता कोई जात नही होती उसी तरह वशियों और दहशत गर्दों का भी कोई मज़हब नही होता . उन्हें तो बस इंसानियत के खून का चस्का लग गया है. वो हमारी कमजोरी जानते हैं इसी लिए कभी जुमा के दिन इंसानों का खून बहाते हैं, कभी मंगल के दिन.तेरा मेरा खून का रिश्ता, मैं सोचूं , तू भी सोच
दिलों को बाँट कर हँसते खेलते मुल्क में अफरा तफरी का माहौल पैदा करना ,देश की मज़बूत जड़ें खोखली करना उनका एक मात्र मकसद होता है. उन्हें किसी मज़हब या कौम से क्या सरोकार.
अब ये हमारा फ़र्ज़ है कि हम सब एक होकर उन वशियों को ऐसी सज़ा दें कि दुबारा ये इंसानियत को दागदार करने का तसव्वुर भी न कर सकें.
20 comments:
bahut hi sundar likha aapne..... jab se jaipur mein blast ki khabre suni hai dil bahut dukhi hai tabhi se. kya hal hai is samasya ka, kaise rukega yeh sab khoon kahraba?
इन वहशियों को हम क्या सजा दे सकते हैं, जिन्हें सजा देनी है वो तो बस अपने फायदे में लगे रहते हैं...
हम तो बस एक ही सजा दे सकते हैं और वो है... प्रेम से रहना. शान्ति से रहना बस. उनका मकसद है घृणा फैलाना और हमें उन्हें नाकाम बनाना है.
अब लगता है उर्दू सीखनी पड़ेगी... उर्दू में जीरो हैं हम तो :(
jaipur मे हुए हादसे की जितनी निंदा की जाए कम है।
आप कहते हैं की इंसानियत हारी है मैं नही मानता, इंसानियत हारती तो गोधरा जैसे दंगे होते. यह उनके मंसुबो पर पानी फेरा है हमलोगों ने. इंसानियत ही तो जीती है यहाँ
bahut sahi kaha aapne ye insaan nahin insaaniyat ka katl-e-aam hai. shayad hume ise mitane ka koi aur rasta dhoodhana padega.
log umr me itne bade ho jate hain lekin dharm - majahab jaisi cheezo ko aankh mood ke maante chale jate hain par samjh nahin pate.ye nahin samjh pate ki sabse bada dharam to insaniyat hai
khair...
ek baat jariur kahan chahoonga aap ki urdu kamal ki hai
Would you like to have "IT" with me?
उम्दा पोस्ट, उम्दा खयाल। लगता है आप को पढ़ते पढ़ते कुछ कुछ उर्दू समझ आने लगेगी।
अकसर कई ब्लॉग पर आपकी टिप्पड़ियां पढ़ता, रक्षांदा (क्या मैने नाम सही लिखा है)ये नाम एट्रैक्ट करता ब्लॉग पर आने को सोचता तभी कोई और लेख अपने वजूद में लपेट लेता, पर आज शीर्षक से प्रभावित होकर बलॉक पर आया तो इस गुलाबी ब्लॉग पर मुस्कुराते गुलाबी चेहरे की रंगत में दिखी Pretty Woman और बाजू में दिखी जज़्बात से सनी इबारत। इंसानियत का सबक सिखाती...।
हां अब अकसर यहां आना होगा क्योंकि उर्दू के बेहतरीन लफ्ज़ों की पूंजी जो पानी है। कठिन शब्दों का हिंदी तर्जुमा तो आप कर ही देती हैं...ऐसा करती भी रहें आभारी रहूंगा।
जब कुछ इंसान मर जाते है
तो बहुत सारे इंसान मारे जाते है..
bahut khub lekhni hai apki,main prathamtay apko parh va dekh raha hun, swasth man se ek bat aur sweekariye, ap bahut khub surat hain..urdoo alfazon ka bahut khub tazurba dekha apki kalam se, man chahta hai kabhi apko sunoo taki in ke sahi uchcharanon ka bhi gyan pa sakun.
सही कहा आपने। पर हमारे कहने सुनने से बस अंदर का छुपा आक्रोश भर निकल जाता है। पर साल दर साल मुंबई, दिल्ली , हैदराबाद, जयपुर ये सिलसिला खत्म होने का नाम नहीं लेता।
निंदनीय कृत्य, शेम-शेम-शेम.
व्याकुल ग्यानी, हतप्रभ मेम..
अनुचित और अकारण सारी,
हिजड़ों की खिसियानी गेम...
बिल्कुल सही.
अति दुखद और निन्दनीय घटना पर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.
रक्शु जी मैं क़द्र करता हूँ आपकी इस तक़रीर की और आपसे न इत्तेफाकी का तो खैर सवाल ही कहाँ उठता है । किसिम -किसिम के ब्लॉग हैं यहाँ ---कुछ पढने लायक हैं तो कुछ काबिले-दीद हैं बस मगर आपका ये ब्लॉग यकीन मानिये एक ताज़ा हवा के झोंके के मानिंद जी हरा कर देता है । आपके अल्फाज़ , आपकी सलाहियत , कहने का पुर कशिश अंदाज़ और आपकी तस्वीरें सभी कुछ कितना ख़ास, कितना अलग है! हिन्दी में कहने की कोशिश करूँ तो आपका ये ब्लॉग ''पठनीय भी और दर्शनीय भी''।
हर दिन एक दफा आपके ब्लॉग पे दस्तक देता हूँ ये सोच कर के जाने आज क्या हो ........
बिल्कुल सही,वो अगर हमें बांटने की कोशिश करते हैं तो हम ये दिखायेंगे कि उनकी ये घिनावनी साजिश कभी सफल नही हो सकती, हम हिन्दुस्तानी एक हैं और एक ही रहेंगे, हमारी एकता ही आने वाले दिनों में उनकी हिम्मत तोड़ सकती है. खुदा से दुआ है कि आने वाले दिन सिर्फ़ और सिर्फ़ शांति लायें अमन लायें. आमीन.
आप सभी का एक बार फिर शुक्रिया...thanks a lot
sab kuch kah diya aapne ...bas aapse ittefaq rakhta hun..
नहीं आप गलत समझती हैं शायद, आंतकवादी और इंसान मैं फर्क है.. वही फर्क जो इन्सान और शैतान में है
हादसे की जितनी निंदा की जाए कम है उम्दा पोस्ट
,,,thak...thhak..knock..knock..hello.. where r u ?
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