Tuesday, July 15, 2008

ये रंग-ऐ-सियासत है....दिल थाम के देखें...



पिछले दिनों कुछ अपने आप में इस तरह गुम रही कि होश ही नही रहा कि हमारे आस पास क्या हो रहा है.

बहुत हो चुकीं सफर और उसकी यादें….

अब जो इर्द गिर्द देखा तो अहसास हुआ कि इस दरमियान थोड़ा नही बहुत कुछ फर्क आचुका है मुल्क और दुनिया के हालात में.

हम इस दुनिया में रहते हैं तो ज़ाहिर है यहाँ होने वाले हालात का असर हमारे ऊपर भी पड़ता ही है, तो फिर जिस मुल्क में रहते हैं उसके हालात तो फिर हमारे अपने ही हालात हुए ना. हम चाहें भी तो उस से मुंह मोड़ नही सकते.

अब ज़रा देश के हालात पर निगाह डाल रही हूँ तो पता चलता है कि यहाँ तो बड़े ही तूफानी मोड़ चुके हैं.

वैसे ये मोड़ कोई अनजाने नही हैं. इस मोड़ के आने का अंदाजा हमें क्या, देश के बच्चे बच्चे को काफी पहले से था.

एक बड़ी ही घिसी पिटी कहानी की तरह, जिसे सिनेमा हाल में देखते हुए फिल्मों के शैदाई साथ बैठे अपने दोस्तों को सुनाते जाते हैं, ‘’ अब पता है क्या होगा, अब हीरो की मां को विलेन मार डालेगा और हीरो बदला लेने की कसम खायेगा…..या हिरोइन पहले हीरो पर गुस्सा करेगी लेकिन फिर उसी हीरो से रोमांस भी करेगीवगैरा वगैरा….वो बोलता रहेगा और परदे पर उसके बताये हुए सीन ही चलते रहेंगे. ठीक इसी तरह हमारी सियासत की कहानी का ये मोड़ तो उसी लम्हा लिख दिया गया था जब लेफ्ट ने यूपीए सरकार को सपोर्ट तो किया लेकिन सरकार में कोई पोस्ट लेने से इनकार कर दिया.

सब को पता था इसका क्या मतलब है, ठीक उसी फ़िल्म की तरह, वही सब कुछ होता रहा जिसका अंदाजा क्या यकीन सब को था.

सरकार और लेफ्ट के बीच चूहे बिल्ली का खेल चलता रहा, चलता रहा और फ़िल्म आगे बढती रही.

क्लाईमेक्स आरहा था, कब तक वही सीन दोहराए जाते और कब तक पब्लिक अपना ज़ब्त आज़माती .



क्लाईमेक्स तो आना ही था.

कांग्रेस पार्टी अमेरिका के साथ एटमी करार के लिए बेताब थी , यूँ , जैसे करार हुआ तो पार्टी के हर मेंबर की जान चली जायेगी.

लेफ्ट जो इस करार के खिलाफ थी, लेकिन ये भी जानती थी की जिस मुद्दे को लेकर सालों से रूठती थी लेकिन फिर मान भी जाती थी, उसी मुद्दे को लेकर अगर उसने सपोर्ट वापस लिया तो ये तो बड़ा फुसफुसा एंड होगा.

लेकिन तभी उसे बहाना भी मिल गया.

जी 8 सम्मलेन के अमीर हाकिम , गरीबी भूख और महगाई का हल खोजने इथोपिया या बंगलादेश के किसी भूखे शहर या गाँव में नही, जापान के एक खूबसूरत द्वीप पर इकठा हुए. ‘अरे भाई इतने हैरान क्यों हैं? इतने पेचीदा मसले किसी ऐसी जगह हल किए जाते हैं जहाँ इंसान सुकून से कुछ सोच सके. जब जेहन पुरसुकून होगा, दिल--दिमाग और जिस्म को उसकी सारीखुराकमुयस्सर होगी तभी तो इतने मुश्किल मरहले आसान होंगे.

आठ हाकिमों के पीछे उनकी हाँ में हाँ मिलाने वाले पाँच और खुशनसीब वहां जाने वाले थे और उस में हमारे मुल्क के वजीर--आज़म भी शामिल थे.

ये कोई कम एजाज़(सम्मान) की बात थोड़े ही है.

प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को वहीं एटमी करार पर बात आगे बढानी थी. लेकिन हमेशा की तरह लेफ्ट विलेन की तरह रास्ते में आगई.

लेफ्ट की मांग थी कि सरकार सेफगार्ड कर पूरा मसौदा दिखाए लेकिन सरकार ने ऐसा करने से ये कह कर इनकार कर दिया की ये सीक्रेट फाइल किसी को दिखाई नही जासकती.

और बस---

आगया क्लाइमेक्स ---

वैसे कुछ हद तक लेफ्ट के लिए ये ठोस बहाना था. लेफ्ट की समर्थन वापसी के बाद प्रणव मुखर्जी ने साफ़ कहा था कि सांसद में बहुमत हासिल करने के पहले यूपीए सरकार IAEA में सेफगार्ड मसौदे के अग्रीमेंट के लिए नही जायेगी और उन्होंने ये बात G 8 सम्मलेन में हिस्सा लेने गए प्रधान मंत्री से बात करने के बाद कही थी.

लेकिन ठीक उसके अगले दिन ख़बर आगई की सरकार IAEA में पहुँच गई और IAEA ने ड्राफ्ट सेफगार्ड अग्रीमेंट को अपने बोर्ड मेम्बरों को भेज दिया है.

आख़िर इस झूठ की वजह क्या थी ?

दूसरी वजह जो वाकई चौकाती है वो ये की जिस ड्राफ्ट सेफगार्ड अग्रीमेंट को सीक्रेट कहकर सारी पार्टियों, आम लोगों यहाँ तक की चार साल से बाहर से सपोर्ट कर रही लेफ्ट पार्टी तक से छिपाया गया, वही ड्राफ्ट कुछ अमेरिकी साइटों पर मौजूद था.

हैरानी यही होती है की जो ड्राफ्ट सीक्रेट था ही नही उसके लिए यूपीए सरकार ने सियासी पार्टियों से झूट क्यों बोला?

बहरहाल बहाने काफी ठोस थे क्लाइमेक्स सीन के लिए और लीजिये, क्लाइमेक्स हो गया. लेकिन तभी एक और मोड़ आगया और क्लाइमेक्स एंटी क्लाइमेक्स हो गया.

अच्छा मौका देख कर मुलायम सिंह ने सरकार को सपोर्ट करने का वादा कर लिया.

क्या बात हैइसे कहते हैं सियासत की गहरी समझ.

सरकार मुतमईन हो गई कि चलो, फिलहाल तो मुसीबत टली लेकिन अभी ड्रामा ख़तम नही हुआ था बल्कि ये तो ड्रामे की शुरुआत थी.

सरकार ने मुलायम का हाथ थामा तो लेफ्ट भी कहाँ पीछे रहने वाली थी, उसने मायावती से हाथ मिला लिया.

या खुदा…..ये है हमारे मुल्क की सियासत और उसकी ड्रामे बाजियां, अजीब रंग हैं इसके , अजीब रिश्ते हैं….लता जी का एक गाना है,,,

कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ के.

दो पल मिलते हैं, साथ साथ चलते हैं

जब मोड़ आए तो बच के निकलते हैं

तो यही है सियासत, यहाँ मतलब के लिए रिश्ते बनते हैं और मतलब के लिए ही दूसरे ही पल तोड़ दिए जाते हैं.

बहरहाल जोड़ तोड़ का ये खेल जारी है और हम जैसे लोग हैं तमाशबीन….कि हम सिर्फ़ देख सकते हैं, कुछ कर नही सकते.

सिर्फ़ बेबसी से तमाशा देखते हैं और कुढ़ते हैं सो हम भी कुढ़ रहे हैंआप भी हमारे संग थोड़ा सा कुढ़ लें.

21 comments:

मुनीश ( munish ) said...

Politics hardly appeals me ,but when u have spent so much time writing, there must be something important in it ,but im compelled to comment here 'cos u have quoted one of my all time favourite songs here: ''KITNE AJEEB.....'' from film PAGE THREE. The lyrics of this song penetrate the core of heart and itz very moving definitely!

Rajesh Roshan said...

मुनीश जी पहली पंक्ति में थोड़ा बदलाव करते हुए मैं कहना चाहता हु Politics rarely appeals me....

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

kitni aasani se sachchai ki kaduahat ko kaagzon par ukeraa hai aapne...aapko bebaak likhne par hamaari taraf se badhaayee...

Kaf-e-pa qhaar pe aari pe sar hai
safar ke baad bhi baaqii safar hai
- p k kush ' tanha'

डॉ .अनुराग said...

गोया की इस मोहब्बत में मन मुटाव के अगर कोई मजे ले रहा है तो वो है हमारे अमर सिंह,देखिये आजकल हर चैनल पर कोई न कोई बात कहते नजर आ जाते है.....वो एक शेर है ना.....
..
कुछ ऐसा इश्क रहा सियासत का अपना
रकीब ठीक रहे साथ के ग़लत निकले

डा. अमर कुमार said...

तुमने मुद्दे तो सही उठाये हैं, रक्शंदा
पर मेरा एक एतराज़ है, तुमसे ।
बुरा मत मानना ।


इतनी अच्छी कलम है, तुम्हारी ।
राजनीति व राजनीतिज्ञ पर न लि्खा करो ।
इन पर लिखने वाले ढेरों यहाँ पहले से ही धक्कम-धुक्की कर रहे हैं ।
तुम क्यों अपनी कलम गंदी करती हो ?

Prostitutes & Politicians have no moral .
and... You would never like to immortalize them ! No doubt, you write good.

समय चक्र said...

mai daktar Amar kumar ki bat se sahamat hun . kripya bura n mane to ....

rakhshanda said...

@डा.अमर जी, सब से पहले आपका बहुत शुक्रिया अदा कर दूँ और अब आपकी बात का जवाब, सर मैं भला आपकी बात का बुरा कैसे मान सकती हूँ,अगर आपने ऐसा कहा है तो कुछ सोच समझ कर कहा है,और मुझे पूरा यकीन है की इस में मेरा भला है,वैसे एक बात बता दूँ, बस जो कुछ होता है, दिल चाहता है कुछ कहने को, और ऐसे में ब्लॉग से बेहतर रास्ता कोई दूसरा नही है, सो मन की बात लिख देती हूँ....ऐसा बिल्कुल नही है की मैं राजनीति पर ही लिखना चाहती हूँ लेकिन जो आस पास होता है वो लिखने को मजबूर कर देता है,मैं आपकी सलाह का ख्याल रखूंगी...थैंक्स प्लीज़ इसी तरह मेरे साथ रहिएगा...

rakhshanda said...

@मनीष जी , थैंक्स मनीष जी आप ने मुझे पढ़ना शुरू किया, सच बहुत अच्छा लगता है जब आप मेरी पोस्ट पर कमेन्ट करते हैं...मुझे उम्मीद है की आगे भी आपकी सलाह मिलती रहेगी...thanks

rakhshanda said...

इसके आलावा आप सब का बेहद शुक्रिया...इसी तरह मेरे साथ रहिएगा...thanks

Udan Tashtari said...

Hum to itani der se aaye ki yahan to sabka shukriya ho chuka. :(

Sab siyasi khel hain..inki gahrai kya aur inki unchai kya!!

Anonymous said...

preety woman bhut sahi likha hai. aapke blog par aai to aesa laga ki jaise apne blog par hun.

राज भाटिय़ा said...

रक्शंदा,भई आप की लम के कायल हो गये,हर बात मे अपना रंग दिखा रही हे, यह जुदाई कलम खरीदी कहा से हे, हमे भी ला दो, एक सुन्दर लेख के लिये बहुत बहुत धन्यवाद

राज भाटिय़ा said...

लम नही **कलम पढे**

rakhshanda said...

समीर जी, अपने देर नही की, बिना आपके कमेन्ट मेरी कोई पोस्ट पूरी नही हो सकती,खुदा करे आप बिल्कुल स्वस्थ रहें और हमेशा मेरे साथ रहें...आपका शिद्दत से इंतज़ार था...अब शुक्रिया भी कर दूँ लेकिन आपको तो आना ही है...और राज जी,मेरी तारीफ़ जब आप जैसे लोग करें तो थोड़ा सा कालर खड़ी करने को जी चाहता है...thank you sooooo much

ज़ाकिर हुसैन said...

आपकी पोस्ट पढ़ी
बहुत खूब लिखा है आपने
बधाई

नीरज गोस्वामी said...

आज पहली बार आप के ब्लॉग पर आया...और सच कहता हूँ की मुझे अफ़सोस हुआ की अब तक क्यूँ नहीं आया यहाँ. बहुत दिलचस्प अंदाज़ में आपने आज के सूरते हाल का तबसरा किया है...राजनीती एक ऐसा विषय है जिसे मैंने हमेशा दूर से ही सलाम ठोका है....लेकिन आपके अंदाज़ का कायल हो गया हूँ...
इसके अलावा भी मैंने आप के इस पेज पर आए सरे आर्टिकल पढ़ डाले...गज़ब के नाज़ुक एहसास हैं आप के दिल में और उन्हें लफ्ज़ पहनाने की काबलियत भी है. सदा खुश रहें और ऐसे ही लिखती रहें , इसी दुआ के साथ
नीरज
पी.एस.: मेरे ब्लॉग पर आ कर खोपोली देखने का शुक्रिया.

vipinkizindagi said...

आज पहली बार आप के ब्लॉग पर आया.
सुन्दर लेख ...

sudhakar soni,cartoonist said...

aapka blog bahut sanjeeda,shayrana h

कुश said...

बिल्कुल दुरुस्त फरमाया.. काफ़ी दिनो बाद आया हू तो बहुत कुछ पढ़ना बाकी है.. सब पढ़कर कमेंट करूँगा

rakhshanda said...

शुक्रिया नीरज जी, आप आए, मुझे पढ़ा, यही मेरे लिए फख्र की बात है,और मैं तो अब आती रहूंगी...इसलिए आपके ब्लॉग को अपनी लिस्ट में शामिल कर रही हूँ...
आप सभी का एक बार फिर शुक्रिया...

ज़ाकिर हुसैन said...

अपना कीमती वक़्त निकाल कर मेरा ब्लॉग पढने
और अपनी बेशकीमती राय से मुझे नवाजने का बहुत बहुत शुक्रिया
जाकिर हुसैन
khamoshbol.blogspot.com