रात मुंबई से फायेज़ा (मेरी कजिन)का फ़ोन आया, चहकते हुए पूछ रही थी कि मेरी ईद की तैयारियां कहाँ तक पहुंचीं, मेरा जवाब सुनने से पहले ही मोहतरमा शुरू हो गयीं अपनी बातें लेकर..’’पता है मैंने इस बार अपनी ड्रेसिंग की तैयारी एकदम अलग तरह से की है, आफ व्हाइट और पीच कॉम्बिनेशन का लहंगा सेट, साथ में मैचिंग ज्वेलरी और चूड़ियाँ, माथे पर बिंदी के साइज़ का टीका लगाने का इरादा है, इसके आलावा मैंने….वो कहती जारही थी और मैं सुनती जारही थी. उसकी तफसील ख़तम हुयीं तो वो फिर उसी सवाल पर आगयी..’’यार तुमने तो कुछ बताया ही नही, तुम क्या पहन रही हो?
मैं उसे क्या बताती की मुझे इस बात से कोई फर्क नही पड़ता की मैं क्या पहन रही हूँ, ये सारी बातें तो तब अच्छी लगती हैं ना जब दिल का मौसम खुश गवार हो, उमंगों और मुसर्रतों की कलियाँ दिल के गुलशन में खिल रही हों, जब अन्दर का मौसम ज़र्द होरहा हो तो उदासियाँ डेरे जमा लेती हैं, ऐसे में किसी खुशी के मायने ही कहाँ रह जाते हैं…एक बार दिल चाहा पूछूं कि बेहिस बन कर कैसे जिया जाता है? मुझे भी सिखा दो, बड़े फायदे हैं इसके..इंसान बहुत सारी मुश्किलों से बच जाता है. पल पल से खुशियाँ कशीद कर जिंदगी के सारे मज़े लेसकता है.
बड़ी मुश्किल से उसे टाला, कुछ
फ़ोन रखने के बाद भी मैं काफी देर उसके बारे में सोचती रही, क्या हो
आज हमारा मुल्क किस मुश्किलों से गुज़र रहा है, देश का कोई कोना महफूज़ नही रह
मैं भला ईद की क्या तय्यारी करूँ फायज़ा, मुझे धमाकों में मारे गए मासूम लोगों की लाशें दिखायी देती हैं, उन मासूम बच्चों के आंसू दिखायी देते हैं,जो इन धमाकों में अपने माँ या बाप को खो चुके हैं, मुझे उन बेगुनाह नौजवानों के चेहरे दिखायी देते हैं जो बेगुनाह होकर भी पुलिस के जालिमाना तशद्दुद सहने पर मजबूर हैं, उन माँओं के आंसू, उनके बाप की बेबसी दिखायी देती है जो एकदम अकेले हो गए हैं, मुझे वो मासूम गरीब ईसाइयों की लाशें दिखाई देती हैं जो कुछ खुनी दरिंदों के ज़ुल्म का शिकार होकर मौत के मुंह में चले गए, मुझे वो बेबस सैलाब के शिकार लोगों की बेबसी दिखाई देती है जो आज दाने दाने के मुहताज दर बदर भटक रहे हैं…मैं ईद कैसे मनाऊं फायज़ा, मैं क्या तैयारियां करूँ, किस दिल से करूँ. खुशियाँ या उसकी सेलिब्रेशन तो तब होती हैं ना जब दिल अन्दर से खुश हो, लेकिन मैं ये सब भला फायज़ा से क्या कहती. जानती थी, उसे कुछ समझ नही आएगा.
हाँ, ईद आएगी, एक रस्म आदायगी की तरह गुज़र जायेगी. रोजों के बाद ईद की खुशियाँ मनाना मुस्लिम पर फ़र्ज़ है, सो ये फ़र्ज़ सादगी से अदा हो जायेगा.
बस इस ईद का चाँद देख कर कुछ दुआएं ज़रूर मांगूंगी कि ‘’ऐ मेरे रब, इस ईद जैसी ईद फिर कभी ना हो, अगली ईद जब आए तो खुशियाँ रग-रग में समायीं हों, मुल्क खुश हाल हो, किसी भी तरह की दहशत गर्दी से पाक, मुस्लिम हों या ईसाई, हिंदू हों या सिख, हर मज़हब के लोग महफूज़ हों, हर तरफ़ सुकून और अमन हो, तब हमारी असली ईद होगी. अगली बार मेरे रब बस ऐसा ही चाँद देखना नसीब हो(आमीन)
40 comments:
देश बहुत ही कटिनाईयां झेल रहा है कहीं दगें तो कहीं आतंकवाद ।आपने अच्छा लिखा है
मैं तो रख्शंदा को इस देश की बहादुर बच्चियों में से एक मानता हूँ, शान से इस पाक त्यौहार को मनाओ और परिवार के दूसरे सदस्यों के साथ शरीक हों ! मेरे जैसे लाखो हिन्दू भाई तुम्हारे साथ हैं !
आज हम सब जानते हैं की यह निर्दोष भीड़ पर बम क्यों फोडे जा रहे हैं, इसलिए कि कहीं से कोई जाहिल नफरत की चिंगारी लगा दे और आग भर जाए दो कौमों में एक दूसरे के खिलाफ ! कुछ लोग नही चाहते कि हम साथ साथ हँसना सीखे !
मगर तुम्हारे जैसे कुछ बच्चों को अपनी शक्तिशाली आवाज़ के साथ आगे आना चाहिए, अपने देश के नागरिकों को असलियत समझाने को, सो उदास न होकर कमर कसो बच्चे !
अभी बहुत काम बाकी है, पर शुरुआत तो करें .....
परिवार को मेरी ओर से ईद की अग्रिम शुभकामनाएं !
आमीन !
वो सुबह कभी तो आयेगी
हमें भी पूर्ण विशवास है की
हर तरफ़ सुकून और अमन हो ऐसी सुबह जरूर आएगी .
मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हमारे बुजुर्गों की इस सिखावनी को मतलबपरस्त लोग भूल गये हैं और सियासतदारों का इसमें सबसे ज्यादा दोष है। उनकी इच्छा शक्ति नफरत घटाने में कम बढ़ाने में ज़्यादा होती हैं। फिर भी अच्छे दिनों की आशा है।
aapki chinta jayaj hai, aapki samwedanshilta ki kadra karti hu.
जब हम समाज के आम लोग दरारें भरने में नाकामयाब होते हैं तो फिरकापरस्तों को मौका मिलता है
हम आम लोगों की, सभी कौमों के लोगों की जिम्मेदारी है की एक-दुसरे को दोष देने की जगह आगे बढ़ कर चीजें सुधारें.
दंगों में जो गर्भ चीरते हैं वो भी हमी होते हैं और जिनके गर्भ चीरे जाते हैं वो भी हमी होते हैं.
हमी धमाके करते हैं और हमी मारे जाते हैं. इस बात को समझना होगा
एक अच्छी सोच! जिसकी बहुत ज़रूरत है अभी.. पहली बार अनुराग जी से असहमति है... वो सुबह आएगी नही.. हमे लानी होगी.. और हम लाकर रहेंगे..
ऐ मेरे रब, इस ईद जैसी ईद फिर कभी ना हो, अगली ईद जब आए तो खुशियाँ रग-रग में समायीं हों, मुल्क खुश हाल हो, किसी भी तरह की दहशत गर्दी से पाक, मुस्लिम हों या ईसाई, हिंदू हों या सिख, हर मज़हब के लोग महफूज़ हों, हर तरफ़ सुकून और अमन हो, तब हमारी असली ईद होगी. अगली बार मेरे रब बस ऐसा ही चाँद देखना नसीब हो(आमीन)
आमीन !
इस आतंकवाद के खिलाफ सारी दुनिया को एक होना होगा और सारे धर्मों को भी। यह धर्मों का भी शत्रु है।
bahut sahi baat kahi hai rakshanda aapn,en dhaako ke bich koi khushi achhi nahi lag rahi,a khuda sach min agli idd khushiyon aur aman se bhari ho aamen,aur aapko idd ki mubarak baat bhi hamari aur se.
jis mulk me hitler ke kartuton ko jayaz maan liya jaye.
beqasooron ka khoon paani ho.
phir kaisi ied-diwali!
lekin vo subah ham hi laayenge
vo subah ham hi se aayegi
आमीन !
मैं भला ईद की क्या तय्यारी करूँ फायज़ा, मुझे धमाकों में मारे गए मासूम लोगों की लाशें दिखायी देती हैं, उन मासूम बच्चों के आंसू दिखायी देते हैं,जो इन धमाकों में अपने माँ या बाप को खो चुके हैं, मुझे उन बेगुनाह नौजवानों के चेहरे दिखायी देते हैं जो बेगुनाह होकर भी पुलिस के जालिमाना तशद्दुद सहने पर मजबूर हैं,
अच्छा लिखा है......
ईद की अग्रिम शुभकामनाएं...
रात भर जागा किया, अब सुबह होने को है
आमीन !
ईद की अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं !
रख्शंदा जी !
तुम्हारे इस पोस्ट से प्रेरित होकर एक पोस्ट लिखी है " मेरे गीत " पर ! आकर अवश्य पढ़ना !
आमीन !
काश हम सब ऎसा सोचते !
बेहतरीन सोच...वो ईद जल्द आए जब हम सब हँसते खेलते एक दूसरे के गले मिलें...जब ये दुनिया मुस्कुराते हुए इंसानों से भर जाए...हम सब इंतज़ार में हैं...अनुराग भाई के साथ आवाज मिला कर कहता हूँ: वो सुबह जरूर आएगी...बहुत संजीदा हो कर आप ने ये पोस्ट लिखी है..आप के जज्बात की मैं कद्र करता हूँ, अगर ये सोच हम सब की हो जाए तो शायद ये दौर जिसमें हम रहने को बेबस हैं शायद आए ही ना...
नीरज
रख्शंदा , ईद मुबारक़ ।
ईद मुबारक...दुखी न होइए, आपके लिखे बग़ैर मेरे जैसे कुछ लोग जानते हैं कि संवेदना धर्म की बंदिश से परे है...जो नहीं जानते, अब जान जाएँगे शायद, जो ख़ून बहाने की ज़िद पर अड़े हैं, उनकी सदबुद्धि के लिए दिल से दुआ करिएगा, नवरात्रि के दौरान कूढ़मगज़ लोगों के लिए प्रार्थना करने वाले भी जुटें तो अच्छा रहेगा.
सुंदर पोस्ट.
.
हमदर्दी की ऎसी खूबसूरत ग़ुज़ारिश पर,
देख कितने तमाशबीन इकट्ठे हुये हैं,
" सुनि अठिलईहें लोग सब, बाँट लेहें न कोय "
एक तू ही अकेली नहीं, पूरी दुनिया ही
इस वक़्त बेचैनी के दौर से ग़ुज़र रही है..
जो भी बचा-खुचा अमन है, उसी से अपनी ईद मना,
हम कभी तुमको दूसरी अच्छी वाली ईद ला देंगे !
sab thik ho jayega ..dhiraj rakho...bura wqt hamesa nahi rahata
लंबी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है। इतनी मायूसी की तो कोई वजह समझ में नहीं आती। :-
हमेशा यूं ही उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क,
न उनकी रस्म नई है न अपनी रीत नई।
हमेशा यूं ही खिलाये हैं हमने आग में फूल,
न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई।
मेरी तरफ़ से ईद मुबारक।
त्योहार पास हैं इसलिए इन चिंताओं को छोड़िए और नज़ीर अकबराबादी की इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए
रोज़े की खुश्कियों से जो हैं ज़र्द ज़र्द गाल
खुश हो गए वो देखते ही ईद का हिलाल
पोशाकें तन में हैं ज़र्द, सुनहरी, सफेद, लाल
दिल क्या कि हँस रहा है पड़ा तन का बाल बाल
ऐसी न शब बारात, न बकरीद की खुशी
जैसी है हर एक दिल में है इस ईद की खुशी
आने वाली ईद की हार्दिक शुभकामनाएँ !
ईद मुबारक!!
नवरात्रि की हार्दिक मंगलकामनाऐं.
Hi Rakhshanda,
Pahli baar aapke blog per ek friend ke kahne per aai hun. Aapki post dil ko chu gayi. Dil dahal jata hai in sab ke bare mein sochkar. Desh ke her hisse aur her kone mein kuch na kuch aisa ho raha hai jo nahi hona chahiye. Kabhi-2 to bachchon ko kahin badh or kahin blast mein marte dekh bus do bund aanshu tapak jate hein aur dimag kuch bhi nahi soch pata hai. Na jane aage kya hoga dil mein yahi dar liye, na jane subah ka aalam kya hoga. Meri or se bhi aapko eid mubaraka.
www.rewa.wordpress.com
कल इस लेख को अमर उजाला के ब्लॉग कोना में भी पढ़ा था ..बदलाव की उम्मीद तो हम सब रख ही सकते हैं ..कहते हैं न कि एक दिन बुराई का अंत होता ही है और वह हम सबके साथ मिल कर चलने से हो होगा .जागरूक होने से होगा ..सब शुभ हो यही दुआ है ...ईद मुबारक हो आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को .बस आप लिखती रहे यही दुआ है
ईद और नवरात्रि की बहुत बहुत शुभकामनाएं और बधाईयाँ .
हम आपकी चिंता से इत्तफाक रखते हैं.
इन त्योहारों के मौसम में आज इतनी चिंताएँ और इतने अविश्वास माहौल को खुशनुमा बनने के बजाय दुःख भरा बना रहे हैं.
ऐसा माहौल हम अपने जीवन में पहली बार देख रहे हैं और हमें लगता है की इन समस्याओं को हमारी पीढी को ढंग से समझना होगा और हमारी जिम्मेदारी बनती है कि खोयी हुयी आस्थाओं की बहाली के लिए मिल कर काम करें.
जिससे फ़िर कभी साझी खुशियों के ये मौसम फ़िर कभी चिंताओं के साए में न बीतें
वाह.. वाह..
सामयिक चिंतन...
साधुवाद..
ईद मुबारक..
اید موبارک
हमेशा एक सा दुनियां में ये मौसम नहीं रहता.
लड़ो गर ग़मसे तो फिरएक दिन ये ग़म नहीं रहता.
आपके ख़यालात काफ़ी नेक हैं अल्लाह ये तौफ़ीक हर किसी को दे इसकी दुआ तो मांग ही सकता हूँ.
रक्षन्दाजी स्वर्गीय हरजीतसिंह की ग़ज़ल का ये मतला मौज़ूदा हालात का बयान कर रहा है.
क्या सुनायें कहानियाँ अपनी.
पेड़ अपने हैं आंधियां अपनी.
जो हो रहा है वह ठीक नहीं है पर ईद तो ईद है. आपको ईद की बहुत बहुत मुबारकवाद.
समय मिले तो मेरे ब्लाग (सब-का-मालिक एक है) पर आइये और हमारी मुबारकवाद कबूल कीजिए.
عید مُبارک
आमीन !
bas vo subah aane ko hai......
wo id jald hi aaye hamari bhi yahi dua hai.
aameen
Bahut badiya likha hai.
मेरी इस पोस्ट को किस कदर पसंद किया गया, इसका अंदाजा 'अमर उजाला ' के ब्लॉग कोने मिली जगह से लगाया जा सकता है, मतलब साफ़ है कि आज हर किसी को सुकून चाहिए, पुरसुकून माहौल में जीने की आज़ादी चाहिए, तभी किसी त्यौहार या खुशी का कोई मतलब है, जहाँ डर हो दहशत हो, वहाँ कैसी खुशी कैसा जज्बा...आने वाले दूसरे त्यौहार, दशहरा और दीवाली भी इसी तरह सुकून से बीतें...खुदा से बस यही दुआ है...त्यौहार की उमंग और खुशी तभी तो होगी...
मैं इसके लिए 'अमर उजाला' और उस से जुड़े सभी लोगों का तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ. थैंक्स.
मेरे तमाम पढने वालों का शुक्रिया और फिर से ईद की मुबारकबाद.
ऐ मेरे रब, इस ईद जैसी ईद फिर कभी ना हो, अगली ईद जब आए तो खुशियाँ रग-रग में समायीं हों...
उम्मीद है ऐसा ही हो...
खुदा से हमारी भी दुआ है, की रकशंदा अगली ईद ख़ुशी से मनाये.......
Post a Comment