by my fav shaayer Vasi Shah
जब भी पढ़ती हूँ,,मेरे दिल को छू जाती है....
अपने अहसास से छू कर मुझे संदल कर दो
मैं कि सदियों से अधूरा हूँ मुकम्मल कर दो
ना तुम्हें होश रहे ओर न मुझे होश रहे,
इस कदर टूट के चाहो, मुझे पागल कर दो
तुम हथेली को मेरे प्यार की मेहँदी से रंगो
अपनी आंखो में मेरे नाम का काजल कर दो
उसके साए में मेरे ख्वाब दहेक उठेंगे
मेरे चेहरे पे चमकता हुआ आँचल कर दो
धुप ही धुप हूँ मैं टूट के बरसों मुझ पर
इस कदर बरसों मेरी रूह में जल्थल कर दो
जैसे सहराओं में सरे शाम हवा चलती है
इस तरह मुझ में चलो की मुझे जल्थल कर दो
तुम छुपा मेरा दिल ओट में अपने दिल के
ओर मुझे मेरी निगाहों से भी ओझल कर दो
मसला(problem) हूँ तो निगाहें न चुराओ मुझसे
अपनी चाहत से तवाज्जाह से मुझे हल कर दो
अपने गम से कहो हर वक़्त मेरे साथ रहें
एक अहसान करो उसको मुसलसल(continue)कर दो
मुझ पे छा जाओ किसी आग की सूरत तुम
ओर मेरी जात को सूखा हुआ जंगल कर दो
5 comments:
अच्छी लिखी है आपने लेकिन कुछ पंक्तियां ऐसी हैं जो कि आसानी से समझ नहीं आती। हां... अगर थोड़ा सोचकर इसे पढा जाता है तो समझ आती है।
sir,its not my ghazal..its written by famous shayer Vasi Shah,,n u know..ye ghazal mere dil ke bahut kareeb hai...
अरे बहना,चक्करघिन्नी नर नहीं मादा है शायद वरना चक्करघिन्ना होता न ???
हा हा हा
ही ही ही
हू हू हू
बुरा न मानो होली आने वाली है और हम सब को अभी से खुमार चढ़ने लगा है । ग़ज़ल बहुत ही सुन्दर है समझने के लिये उर्दू की मिठास जानना जरूरी है...
...@Rupeshji...अरे रूपेशजी। क्या बात है। भईया हम नर ही हैं... बस नारायण नहीं बन पा रहे हैं। वैसे एक बात बताये देते हैं कि हम भी भैय्ये लाला ही हैं। कुलश्रेष्ठ... सबों में श्रेष्ठ....
हा हा हा हा हा हा हा
आप भी बुरा मत मानियेगा।
Bahut khoob bahut hi achi, sach mein dil ko chu jati hai
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