Sunday, May 11, 2008
बगावत के बीज.....{माँ तुझे सलाम}
एक दृश्य -- लंबा सा बरामदा ,बरामदे का आगे बडा सा सेहन (आँगन) ,आँगन में एक आम का पुराना पेड़ , सेहन के चारों तरफ बनी हुयी टेढी मेढ़ी क्यारियाँ जिन में खुद्रू(जंगली) झाडियाँ और पौधे उग आये हैं.
बरामदे में बैठी एक बच्ची, उम्र यही कोई छ सात साल के करीब , बालों की दो छोटी- छोटी चोटियां बनाये , लाल रंग का लंबा सा ढीला ढाला फराक पहने , गले में छोटा सा दुपट्टा डाले, करीब पड़ी गुडिया के गले में मोतियों की छोटी सी माला पहनाने की कोशिश कर रही है. माला पहना कर उसकी साडी ठीक करती है लेकिन फिर जल्दी ही उकता कर गुडिया परे सरका देती है और फराक की जेब से नन्हे – नन्हे बीज निकालती है और उठ कर सेहन की क्यारियों के पास बैठ जाती है . पास पड़ी लकडी से मिटटी खोदती है और वह नन्हे बीज उस में बोने की कोशिश करने लगती है.
दूर बरामदे के करीब कमरे की चौखट पर बैठी उसकी माँ बड़ी देर से बेटी के मासूम से खेल को दिलचस्पी से दिख रही है. नीले और पीले प्रिंट का कुछ बदरंग हो चुका सूट पहने , सर पर बडा सा गहरा नीला सूती दुपट्टा लपेटे जिसे गर्मी की शिद्दत भी सिर से खिसकाने में नाकाम साबित हुयी है , कलाईयों में लाल रंग की मोटी मोटी चूड़ियाँ पहने , जो हंडिया भूनते भूनते गरम हो कर अभी तक तपिश (जलन) का अहसास दे रही हैं. एकदम से बेटी को देखते-देखते जैसे कुछ याद अजाता है उसे, उजलत (जल्दी) में अन्दर जाती है और मुठ्ठी में कुछ दबाये सेहन में बेटी के पास आकर बैठ जाती है.
माँ—(प्यार से बेटी के बालों पर हाथ फेरते हुए) क्या कर रही हो बिटिया?
बेटी—(कुछ परेशान सी)ओफ्फोह अम्मा , ये बीज ठीक से बोये ही नही जारहे , बार बार ऊपर आजाते हैं.
माँ—(उसके माथे पर उभर आई पसीने की नन्ही नन्ही बूंदों को अपने दुपट्टे से पोंछती है) इन को छोडो , ये देखो , मैं तुम्हारे लिए कुछ बीज लायी हूँ, इन्हें बो कर देखो, ये आगे चल कर तुम्हें ही नही, बहुतों को छाँव और फल देंगे.
बेटी अपने बीजों को भूल भाल कर इश्तियाक(उत्सुकता) से माँ की तरफ मत्वज्जो हो जाती है।
बेटी—दिखाओ अम्मा
माँ अपनी बंद मुठ्ठी खोल देती है, कुछ छोटे छोटे बीज उसकी पसीने से भीगी हथेली में चिपके पड़े हैं. बच्ची बड़े इश्तियाक और हैरानी से इन बीजों को छूती है.
बेटी—अम्मा , ये कैसे बीज हैं ?
माँ—ये बगावत के बीज हैं , इन्हें बो कर देखो , ये तुम्हारे मन से हर डर हर खौफ मिटा देंगे, ये बड़े हो कर तुम्हें इस दुनिया से लड़ना सिखायेंगे. जब जब समाज और यहाँ के लोग तुम्हें दबाने की या तुम्हारे हुकूक छीनने की कोशिश करेंगे, ये तुम्हारे अन्दर एक अनोखी ताक़त जगा देंगे, अपना हक छीन कर लेने की ताक़त.
बच्ची बड़े ध्यान से उन बीजों को देखती है.
बेटी—अम्मा एक बात पूछूं?
माँ—पूछो बिटिया
बेटी—अम्मा क्या तुम ने ख़ुद ये बीज नही बोये?
माँ-- ( बड़ी हसरत से बेटी को देखते हुए) नही बिटिया,क्योंकि मेरी माँ ने मुझे ऐसे बीज बोने को कभी नही दिए
बेटी-- क्यों? क्या उनके पास ये बीज नही थे?
माँ--नही , उसके पास दूसरे बीज थे,जो उसने मुझे दिए थे।
बेटी--कौन से बीज अम्मा?
माँ--वहशतों के बीज, मैंने वही बीज बोये,उन्होंने मुझे डरना सिखाया , कभी समाज से कभी खानदान और उसकी इज्ज़तों से ,कभी बाप और भाईयों से , कभी शौहर और उसके खानदान से , ये जितने बड़े होते गए, मुझे और खौफज़दा करते चले गए ,मैं डरती रही और सब मुझे डराते गए.
बच्ची गौर (ध्यान) से माँ की वीरान आंखों में देखती है.
बेटी--अम्मा,तुम वो बीज मुझे नही दोगी?
माँ--(बेटी के गले से पसीने से भीगा दुपट्टा निकालते हुए) नही, कभी नही ,वो बीज मेरे साथ मेरी कब्र में दफन हो जायेंगे.
बच्ची देख रही है, माँ की वीरान बंजर आंखों से आंसू की एक सफ़ेद मोतियों जैसी बूँद उभर कर पहले पलकों की मुंडेर पर अटक जाती है और फिर टूट कर उसके साँवले रुख्सारों(गालों) पर फिसलती चली जाती है.
वो माँ की मुठ्ठी में चिपके बीज अपनी हथेलियों में भर लेती है और लपक कर माँ से लिपट जाती है।
happy mothers day
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24 comments:
very poetic prose Rakshu !!Happy mother's day.
सुंदरतम। शानदार और सटीक रचना।
माँ को प्रणाम। लिखती रहें।
सचमुच एक काव्यात्मक आलेख जो भावुक करने में सक्षम है..
***राजीव रंजन प्रसाद
किसी ने सच कहा है- "साहित्य समाज का दर्पण है".
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!
बधाई...!!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
वंडरफुल एक्सप्रेशन एवं उस से भी बढिया नेरेशन....सचमुच साहित्य समाज का आइना ही तो है। Happy Mothers' Day..
मदर्स डे की सबसे अच्छी पोस्ट
वाह!
बहुत बढ़िया!
सुंदर अभिव्यक्ति!! Happy mother's day.
एक सुन्दर रचना के लिये मुबारकवाद (बधाई)
आज ऐसे ही बगावत के बीजों की जरूरत है बेटियों को। जैसी इस माँ ने अपनी बेटी को दिए हैं। इतनी सुन्दर, साहसी रचना के लिए बधाई। महिलाएं अवश्य ही न केवल बराबरी हासिल करेंगी, मर्दों से भी आगे बढ़ कर दिखाएंगी।
बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति है. सशक्त एवं सधी हुई. माँ को नमन.
वाह ये हुई न पोस्ट ! खूबसूरत !
और पिछली पोस्ट पर आपका जवाब देखा... आपने पूछा की बाहर जाना क्यों जरूरी होता है? कई बातें हैं, इस पर विस्तार से चर्चा हो सकती है.
ऐसे कई संस्थान है जहाँ पर पढने का सबका मन होता है... मान लीजिये मुझे शोध करना है किसी विषय पर और मैं चाहता हूँ की सबसे अच्छे प्रोफेसर के साथ करूं, तो?
आजकल हमारे देश में संभावनाएं है... पर पहले ऐसा नहीं था, हमारे सीनियरों के पास बहुत कम विकल्प थे. कई सारी पढ़इयां है जो या तो यहाँ हो नहीं सकती या फिर यहाँ उअके लिए रोजगार उपलब्ध नहीं है...
एक छोटा सा सवाल: ऐसा क्यों है की सभी १२ वी के बाद डॉक्टर या इंजीनियर बनना चाहते हैं? ऐसा क्यों है की तेज लड़के विज्ञान ही पढेंगे? बाकी विषयों को नीची नज़र से क्यों देखा जाता है..? खैर बहुत लंबा डिस्कसन हो सकता है... अभी थोडी जल्दी है... बाकी फिर कभी.
Thanks के साथ साथ आप सभी से माफ़ी चाहती हूँ कि इस पोस्ट का टाइटल ग़लत प्रिंट हो गया,मैं उसे ठीक करना ही चाह रही थी कि नेट में प्रॉब्लम होने की वजे से नही कर सकी,टाइटल 'बगावत के बीज' की जगह 'वह्शातों के बीज' प्रिंट हो गया,यकीन करें,सारी रात इस गलती की बेचैनी ने सोने नही दिया,लेकिन हैरत हुयी देख कर कि आप में से किसी ने भी इस गलती के लिए मुझे टोका नही,शुक्र है अभिषेक ने नही पढ़ा,वरना उन्हें तो मौका मिल ही गया था.आप सब के प्यार के लिए एक बार फिर शुक्रिया.
my God अभी बस मैंने आपका ज़िक्र ही किया था आपकी कमेंट भी मिल गई,अच्छा हुआ कि मैंने अपनी गलती ठीक कर ली थी.anyway बात तो आपकी ठीक है लेकिन सोचिये अपने भविष्य के लिए हम अपने माँ बाप को क्या दे रहे हैं?वो तो सिर्फ़ हमारे अच्छे भविष्य की कामना करते हैं पर क्या हमारा फ़र्ज़ सिर्फ़ अपनी मजबूरी बयान करना है?
रक्षंदा बहुत ही बढ़िया और जागृत करने वाला लेख लिखने के लिए बहुत-बहुत बधाई ।
बस इसी तरह आप लिखती रहें यही कामना और शुभकामना है।
मेरे ख़्याल से दोनों ही शीर्षक इसमे फिट बैठते है।
बहुत ही खूबसूरत.. इस लेख में आपने अपनी परिपक्व सोच का परिचय दिया है.. बहुत बहुत बधाई
वाह, बहुत खूब मज़ा आ गया...
i got it "Bagahavat ke..." & not "vahshat ke ..." or vaise bhi u can never b wrong come what may 'cos u r so different from the crowd. u r definitely special.
..और हाल-फिलहाल अपने अपने प्रोफाइल पे जो तस्वीर लोड की है वो बहुत ही आकर्षक है लेकिन आपकी उस भूरे teddy -bear वाली तस्वीर के आगे ज़रा उन्नीस ही है।
पिछले तीन लेखो से काफी बदलाव आ रहा है ....शैली परिपक्क्व हो रही है ओर ख्याल बंधने लगे है....मोहतरमा...आप बदल रही है.......जमे रहो........
bahut khoobsurat aur sashakt abhivyakti hai is lekh mein....badhai.
सुंदर अभिव्यक्ति!
awesome...keep writing.
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