Monday, May 19, 2008

abhi to subah ke maathe kaa rang kaalaa hai... अभी तो सुबह के माथे का रंग काला है......


एक माँ जब तकलीफ में होती है तो उसका दर्द, उसकी तड़प उसकी अपनी औलादों में एक बेटे की बनिस्बत सब से ज्यादा उसकी बेटी महसूस करती है. ये बात पूरी तरह सच साबित हो चुकी है. अपवाद हर जगह होते हैं , इस जगह भी होंगे लेकिन एक माँ को जितना बेटी समझ सकती है , शायद बेटा नही.

लेकिन उसी बेटी का वजूद , माँ को बीमारियां देने का बाएस(वजह) बनने लगे तो सोचिये , कैसा महसूस होता है. लेकिन बदकिस्मती से रिपोर्ट यही कहती है..

हाल ही में दून के एम्.के.पी. कॉलेज के सायिकालोजी डिपार्टमेन्ट ने अपनी एक रिसर्च के बाद ये खुलासा किया है कि दो बेटियों के बाद प्रेग्नेंट होने वाली माएं हाई ब्लड प्रेशर,एन्जाईटी , डाईबिटीज़ और डिप्रेशन जैसी बीमारियों में मुब्तेला (ग्रुस्त) हो जाती हैं.

इस में शहर के २५० जोडों (दम्पति) के सैम्पल लिए गए थे जिस में से दो बेटियों वाली माओं में तीसरी बार प्रेग्नेंट होने की सूरत में बीमारियों के निशान उजागर हुए .

इस रिसर्च में तीन तबकों(वर्गों) को शामिल किया गया था.पहला प्रेग्नेंट औरतें ,दूसरा गायनेकोलाजिस्ट और रेडिओलाजिस्ट और तीसरा , समाज और कानून .तीनों तबकों से जो बातचीत की गई उसके नतीजे में ही नक़ल कर सामने आया कि पहली प्रग्नेंसी के दौरान औरत किसी तरह के तनाव या फिक्र (चिंता) में नही होती. उस वक़्त बस सेहतमंद(स्वस्थ) औलाद ही उसकी पहली ख्वाहिश होती है.
पहली बार जब उसके यहाँ बेटी जन्म लेती है तब भी उसकी खुशी में ख़ास कमी नही आती. पहली बेटी निहायत लाड प्यार में परवरिश पाती है. लेकिन --दूसरी बेटी होते ही हालात में एकदम ही काफ़ी बदलाव आजाता है.

ये तब्दीली परवरिश को लेकर नही , बल्कि माँ के मन में पलने वाली फिक्र को लेकर होती है. उनके मुस्तकबल (भविष्य) के बारे में सोचने वाली माँ में पहली बेटी के बाद दूसरी बार बेटी की चाह नही दिखाई दी.और दूसरी के बाद तीसरी बार प्रेग्नेंट होने वाली माएं तो इस बार बेटी ना हो , इस खौफ को लेकर बीमारी का ही शिकार हो गयीं.

रिसर्च में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि दूसरी मर्तबा भी बेटी होने की सूरत में अक्सर मियाँ बीवी(पति पत्नी ) के आपसी रिश्ते भी मुतास्सिर (प्रभावित)हो जाते हैं . रिश्तों में खिंचाव आने लगता है. इसके पीछे उनकी फैमिली का दबाव या परिवार में बच्ची की पैदाईश को लेकर हो रही टेंशन भी एक वजह बन कर उभरी.

सब मिला कर नतीजा साफ तोर से ये निकल कर सामने आया कि बेटी के जन्म पर उदास ना होने वाले लोग भी दूसरी और तीसरी बेटी के हामी नही होते.

एम्.के.पी. कॉलेज की मनोविद डा.गीता बलोदी के मुताबिकदो बेटियों की माओं के ब्लड प्रेशर, डिप्रेशन जैसी बीमारियों में मुब्तेला होने के पीछे वजह सोसिएटी का दबाव भी है. इसके अलावा ससुराल वालों का प्रेशर तो काम करता ही है. कुल मिला कर दो बेटी के बाद माँ के मन में बस यही फिक्र दिखायी दी कि कहीं तीसरी भी बेटी हो……

ये रिसर्च और इसकी रिपोर्ट सिर्फ़ एक शहर की नही है, कम--बेश यही हालात छोटे शहर से लेकर बड़े शहर हर जगह हैं.

हैरत तो तब होती है जब एक अखबारी रिपोर्ट के मुताबिक, एन.आर.आई भारतीयों में एक सर्वे के दौरान पाया गया कि पहली बेटी के जन्म के बाद बेटे की ख्वाहिश उन में इस कदर होती है कि कई बार लिंग परीक्षण के बाद वो बड़ी आसानी से अबार्शन करवा देते हैं. सर्वे के मुताबिक, हैरानी की बात ये है कि अप्रवासी हिन्दुस्तानियों को हाई एजोकेटेड लोगों में शुमार(गिना) किया जाता है.

जब इतने पढे लिखे लोगों की, जिन्होंने अपनी हाई एजोकेशन की बदौलत दूसरे मुल्कों में अपना लोहा मनवाया है, ये मानसिकता है तो ज़रा सोचिये कि गाँव देहात के उजड्ड देहाती लोगों का क्या हाल होगा.

ऐसा नही है कि हालात बिल्कुल नही बदले .औरतों ने अपने हुकूक (अधिकार )मनवाये हैं. लड़कियों की ताक़त उनको तकरीबन(लगभग) हर तरफ़ मिल रही कामयाबी से ज़ाहिर भी हो रही है. लेकिन अभी बहुत कुछ बदला जाना बाकी है.

इन बदतरीन हालात की वजह अगर जेहालत (अशिक्षा) होती तो तब्दीली की उम्मीद आसान थी लेकिन जेहालत अगर पढे लिखे दिमागों में भरी हो तो हालात का बदलना आसान नही होता.

वूमनस डे मनाते हुए अकसर लोग समझते हैं कि हालात बदल चुके हैं . लेकिन सच तो ये है कि अभी अँधेरा बहुत गहरा है.इस घने स्याह अंधेरों में कहीं कहीं रौशनी की किरनों की झिलमिलाहट आने वाली सुबह की झलक ज़रूर दे जाती है, लेकिन ये अंधेरे अभी बहुत देर तक आने वाली सुबह की सफेदी का रास्ता रोकेंगे

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अपने प्रिय पढने वालों से ------- तबियत की खराबी की वजह से मुझे आप सब से इतने दिन दूर रहना पड़ा, चाह कर भी इस बीच कुछ नही लिख सकी, ना ही आप सब को पढ़ सकी, उम्मीद है आप सब का प्यार उसी तरह मेरे साथ रहेगा...खुदा करे आप सब अपनी -अपनी जगह बिल्कुल ठीक हों (आमीन)
रख्शंदा

24 comments:

डॉ .अनुराग said...

इस तरह की रिपोर्ट पे न जाये,क्यूंकि इनका सैम्पल साइज़ बहुत छोटा होता है ,दूसरा इन्हे लिखने से पहले ही बनाने वाला "बायस "होता है ,इस तरह की रिपोर्ट अक्सर अखबारों मे छपती है पर जो भी तथ्य है वे प्रत्येक व्यक्ति पर व्यक्तिगत स्तर पर लागु होते है ,उन परिवारों मे जहाँ बेटे की सख्त आवश्यकता महसूस की जा रही है ,वहां स्वाभाविक है ,परन्तु उन परिवारों मे भी जहाँ गर्भ धारण करने मे देरी आ रही है ....दरअसल किसी भी तरह का तनाव गर्भवती औरत के लिए हानिकारक है चाहे वो सामाजिक ,आर्थिक ,या पारिवारिक कारण हो ,अगर बेटा गर्भ मे हो ओर तनाव के दूसरे कारण हो तो.......हिंदुस्तान की कितनी गरीब ओर अशिक्षित औरते किन हालात मे बच्चे पैदा करती है उन्हें देख कर मुझे कई बार अपनी मेडिकल की किताबो पर शक होने लगता है ,इतनी imuunity कहाँ से लती है औरत ? फिलहाल इससे बड़ा मुद्दा ये है की अब गर्भ मे ही बेटिया मर दी जाती है ....कृपया इन रिपोर्ट को आधार न बनाये ,,क्यूंकि कई रिसर्च के पीछे कुछ खास दवा कम्पनियों का हाथ होता है ओर दूसरे कई कारण होते है.......

एक बात ओर अपनी सेहत का ध्यान रखे....

mamta said...

रक्षंदा उम्मीद है की अब आपकी तबियत पूरी तरह से ठीक होगी।

आपकी पोस्ट मे उर्दू के लफ़्जों का बहुत सुंदर इस्तेमाल होता है।

राजीव रंजन प्रसाद said...

बात मनोवैज्ञानिक है और इस देश में यह अंतर जिस दिन मिट गया समझ लीजिये क्रांति हो गयी..आपने आलेख में अच्छा समायोजन किया है।

***राजीव रंजन प्रसाद

Pramod Kumar Kush 'tanha' said...

........ लेकिन सच तो ये है कि अभी अँधेरा बहुत गहरा है.इस घने स्याह अंधेरों में कहीं कहीं रौशनी की किरनों की झिलमिलाहट आने वाली सुबह की झलक ज़रूर दे जाती है, लेकिन ये अंधेरे अभी बहुत देर तक आने वाली सुबह की सफेदी का रास्ता रोकेंगे।............

Aapke lekhan mein ek 'kahanikaar' ki jhalak saaf nazar aati hai.
baharhaal ! bahut sachchaai se likha hai aapne.
badhaayee sweekar karein.
--- P K Kush ;tanha'

Sanjeet Tripathi said...

स्वस्थ रहें!!

दिनेशराय द्विवेदी said...

रक्षंदा जी, अब आप के दुश्मनों की तबीयत नासाज नहीं है, यह तो आप की पोस्ट से पता लगा। आप दुश्मनों की खोज-खबर लेती रहें।
आप की भाषा के हम मुरीद हो गए हैं। पढ़ते वक्त बिलकुल मौसी की याद आती है, वे उर्दू बिलकुल नहीं जानती थीं लेकिन मुहब्बत बहुत करती थीं, शायद माँ से भी जियादा। कारण यह रहा हो कि वे छह बेटियों की माँ थीं और मेरी माँ दो बेटियों और चार बेटों की।
वास्तव में बेटी का शादी के बाद पराये घर जा कर रहना, उस की शादी पर होने वाला भारी खर्च और बेटे का पास में रहना, उस की शादी का खर्च दहेज से बराबर होने की उम्मीदों ने महिलाओं को दूसरे दर्जे का बना रखा है। ये सिलसिला टूटने लगे तो महिलाएँ पहले नम्बर पर होंगी।

36solutions said...

आशा की किरण अब दिखलाई देने लगी है । पहले तो लोग सात आठ दस लडकियों के बाद भी लडके के लिए महिलाओं का भावनात्मक व अप्रत्यक्षत: स्वास्थ्य शोषण करते रहते थे ।

bhuvnesh sharma said...

फिलहाल तो साहिर के लिखे पर ही सब्र कर सकते हैं कि-

वो सुबह कभी तो आएगी जिसकी खातिर हम सदियों मर-मरकर जीते हैं.


जल्‍दी स्‍वस्‍थ हों यही कामना है.

Abhishek Ojha said...

"एक माँ को जितना बेटी समझ सकती है , शायद बेटा नही" -- असहमत हूँ एक बार फिर आपसे!

और रिपोर्ट्स का क्या है... जो साबित करना होता है वैसा आंकडा मिल जाता है, और अनालिसिस भी वैसी ही की जाती है... खैर चलिए आप ठीक हो जाएँ जल्दी... वही मैं सोच रहा था की मेरा खाना अब तक आपको अच्छा क्यों नहीं लगा... :-)

Udan Tashtari said...

तभी लगा कि आजकल दिख नहीं रही हैं आप.

शीघ्र स्‍वस्‍थ हों -शुभकामनाऐं.

दीपान्शु गोयल said...

सेहत का ध्यान रखिये। लिखना तो चलता ही रहेगा।

Admin said...

फिक्र न करें मोहतरमा, जब तलक आप की आवाज है, कलम है, ब्लोग है ..बेहतरी की और काफिला चलता रहेगा.

Admin said...

फिक्र न करें मोहतरमा, जब तलक आप की आवाज है, कलम है, ब्लोग है ..बेहतरी की और काफिला चलता रहेगा.

मुनीश ( munish ) said...

हलो रक्शु ! पता चला के आपके दुश्मनों की तबीयत नासाज़ थी !बहरहाल आप लौट आई हैं तो जैसे नूर आ गया है और जी को ये तसल्ली भी हासिल हुई की चलिए आज के ज़माने में इतना अदब अभी बाक़ी है कलम नवीसों में के वो अपनी गैर मौजूदगी की वजह अपने पढने वालों से कम से कम shair तो किया करते हैं । हमने कुछ तस्वीरें चस्पां की हैं कश्मीर की अपने यहाँ ,पुरानी हैं साल भर और सादे कैमरे की हैं, मगर देखिये शायद आपका जी बहल जाए ।

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

मैं आपकी भाषा का कायल हूँ.

मुनीश ( munish ) said...

I salute ur photographer. Which camera u use ? I must say all ur fotoz are far superior to the kind of stuff we have here ,specially the latest one is really Devastating!! Pls. keep the gud work going.

समयचक्र said...

सेहत का ध्यान रखिये शीघ्र स्‍वस्‍थ हों शुभकामनाऐं....

rakhshanda said...

आप सब का तहे दिल से शुक्रिया,मैं अब ठीक हूँ...जब इतने सारे दोस्तों की दुआएं मेरे साथ शामिल हैं तो ठीक तो होना ही था,,सच कहूँ तो आप सब दूर हो कर भी मेरे दिल के बहुत बहुत क़रीब रहते हैं,,कुछ दिन दूर रह कर अहसास हुआ कि आप सब क्या हैं मेरे लिए...अब तो चाहूँ भी तो दूर नही रह सकती,,बिस्तर पर लेटे लेटे यही ख्याल सताता रहता था कि जाने किस ने क्या लिखा होगा और मैं मिस कर जाउंगी,,अभी तो आराम से आप सब की कीमती पोस्ट्स पढ़नी हैं,टाइम तो लगेगा पर पढे बिना नही रहूंगी,,अब तो आप सब जिंदगी में शामिल हो गए हैं,,वैसे एक बात पूछनी थी,मैं अपने पसंदीदा ब्लोगर्स की लिस्ट अपने ब्लॉग पर add करना चाहती हूँ,इसके लिए मुझे क्या करना होगा,,,साथ ही ये भी चाहूंगी कि आप में से जो भी मेरे ब्लॉग को पसंद करते हैं कृपया मुझे अपने ब्लॉग पर जगह दे दें... थैंक्स

L.Goswami said...
This comment has been removed by the author.
मुनीश ( munish ) said...

बहिन लवली जी की सलाहियतें आपके लिए ज़ुरूर कारगर होंगी ऐसी उम्मीद है हमको । गुज़र रहा था सोचा पूछता चलूँ के ये कैमरा कौनसा इस्तेमाल किया है आपके तस्वीर-साज़ ने ? दरअस्ल मैं ख़ुद थोडी बहुत दखल रखता हूँ इस फन में और आपकी ये जानकारी कारगर हो सकती है मेरे लिए। वाकई सभी results ला-जवाब हैं।

L.Goswami said...

rakshanda maine tippni hata di hai.asha hai tumhara kam ho gya hoga.

Anonymous said...

भड़ास के मॉडरेटर यशवंत ने जेल में काटी रात
दोस्‍त की बेटी से बलात्‍कार की कोशिश

अपने भीतर की बुराइयों को दिलेरी से सार्वजनिक करने वाले ब्‍लॉग भड़ास में इतनी हिम्‍मत नहीं थी कि वो इस ख़बर को अपने साथियों से बांटता। ऐसा तब भी नहीं हुआ था, जब यशवंत को उनकी कंपनी ने थोड़े दिनों पहले अपने यहां से धक्‍के देकर बाहर निकाल दिया था। जी हां, जागरण के बाद इंडिकस ने उन्‍हें अपने यहां से निकाल बाहर किया है - क्‍योंकि यशवंत की जोड़-तोड़ की आदत से वे परेशान हो चुके थे।

ताज़ा ख़बर ये है कि नौकरी से निकाले जाने के बाद यशवंत नयी कंपनी बनाने में जुटे थे। उन्‍होंने भाकपा माले के एक साथी को इसके लिए अपने घर बुलाया। ग्रामीण कार्यकर्ता का भोला मन - अपनी बेटी के साथ वो दिल्‍ली आ गये। सोचा यशवंत का परिवार है - घर ही तो है। लेकिन यशवंत ने हर बार की तरह नौकरी खोने के बाद अपने परिवार को गांव भेज दिया था। ख़ैर, शाम को वे सज्‍जन वापसी का टिकट लेने रेलवे जंक्‍शन गये, इधर यशवंत ने उनकी बेटी से मज़ाक शुरू किया। मज़ाक धीरे-धीरे अश्‍लील हरक़तों की तरफ़ बढ़ने लगा। दोस्‍त की बेटी डर गयी। उसने यशवंत से गुज़ारिश की कि वे उसे छोड़ दें। लेकिन यशवंत पर जैसे सनक और वासना सवार थी।

यशवंत ने दोस्‍त की बेटी के कपड़े फाड़ डाले और उससे बलात्‍कार की कोशिश की। लेकिन दोस्‍त की बहादुर बेटी यशवंत को धक्‍के देकर सड़क की ओर भागी और रास्‍ते के पीसीओ बूथ से भाकपा माले के दफ़्तर फोन करके मदद की गुहार लगायी। भाकपा माले से कविता कृष्‍णन पहुंची और उसे अपने साथ थाने ले गयी। थाने में मामला दर्ज हुआ और पुलिस ने यशवंत के घर पर छापा मारा।

यशवंत घर से भागने की फिराक में थे, लेकिन धर लिये गये। ख़ैर पत्रकारिता की पहुंच और भड़ास के सामाजिक रूप से ग़ैरज़‍िम्‍मेदार और अपराधी प्रवृत्ति के उनके दोस्‍तों ने भाग-दौड़ करके उनके लिए ज़मानत का इंतज़ाम किया।

अब फिर यशवंत आज़ाद हैं और किसी दूसरे शिकार की तलाश में घात लगाये बैठे हैं।

डा. अमर कुमार said...

जिनसे मिल रही थी ज़िन्दग़ी की रौशनी
वो फ़क़त चिराग की रौ में बुझा दिये गये



अपने लिखे अल्फ़ाज़ों व इन नुक्तों को निहार कर सब्र करती रहें,
ग़र सोच बदल रही है तो इंशा अल्ला इंकलाब भी कभी आयेगा ही


इंतेज़ार करें ।
नुमांया उम्दा है , मुबारक हो

pallavi trivedi said...

आपको पढ़ती रहती हूँ...मुद्दे अच्छे लाती हैं आप लेकिन इन आंकडों पर बहुत ज्यादा मेरा विश्वास नहीं है! शीघ्र स्वस्थ हो...