परसों टीवी पर और कल सुबह अखबार में जो कुछ देखा, न कुछ सोचने के लायक रही न कहने के,कितनी देर तो घर में किसी से बात करने के काबिल भी नही रही, ऐसा हौलनाक मंज़र जिसका कभी ख्वाब में भी तसव्वुर नही किया था किसी ने, नैना देवी मन्दिर के रास्ते में पड़ी वो लाशें हमारे ही जैसे इंसानों की थीं, वो भी उस मासूम इंसान की जो अपनी आम जिंदगी गुजारने के लिए दिन रात रोटी रोज़ी के फिराक में जद्दोजहद करता है और जो कुछ मुयस्सर होता है उसके लिए उस पालने वाले का शुक्रिया अदा करने कभी मन्दिर पहुँच जाता है तो कभी मस्जिद. ये वो आम आदमी है जो एहसान फरामोश नही है, जो उसके साथ करम करता है उसका एहसान मरते दम तक नही भूलता तो भला अपने रब का अहसान कैसे भूल सकता है.
पहुँच जाता है उसका शुक्र करने किसी पवित्र स्थान पर, बिना ए सोचे कि ये ऊपर वाला उनको भी तो नवाजता है और ढेरों ढेर नवाजता है जो शायद ही उसे कभी याद करते हों या उस का शुक्र अदा करने के लिए किसी भी तूफानी मौसम या किसी भी दुश्वारी की परवाह किए बिना मंदिरों या मस्जिदों तक चले जाते हैं.
लेकिन वो बेनियाज़ रब......
पता नही उसके सोचने का अंदाज़ कैसा है…
बजाये इसके कि अपने इन भक्तों और मानने वालों को दुनिया की हर आफत से बचा कर बहिफाज़त उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचा दे..उन्हें इस कदर बेबसी की मौत मरते देखता रहता है.
बहाना कभी कोई वजह बनती है कभी कोई, मरते तो ये मासूम इंसान हैं.
जाने क्यों आज एक शिकायत सी है तुझ से,
पहुँच जाता है उसका शुक्र करने किसी पवित्र स्थान पर, बिना ए सोचे कि ये ऊपर वाला उनको भी तो नवाजता है और ढेरों ढेर नवाजता है जो शायद ही उसे कभी याद करते हों या उस का शुक्र अदा करने के लिए किसी भी तूफानी मौसम या किसी भी दुश्वारी की परवाह किए बिना मंदिरों या मस्जिदों तक चले जाते हैं.
लेकिन वो बेनियाज़ रब......
पता नही उसके सोचने का अंदाज़ कैसा है…
बजाये इसके कि अपने इन भक्तों और मानने वालों को दुनिया की हर आफत से बचा कर बहिफाज़त उन्हें उनकी मंजिल तक पहुंचा दे..उन्हें इस कदर बेबसी की मौत मरते देखता रहता है.
बहाना कभी कोई वजह बनती है कभी कोई, मरते तो ये मासूम इंसान हैं.
जाने क्यों आज एक शिकायत सी है तुझ से,
ये दुनिया लाख उनकी परवाह न करें…ऐ खुदा तू तो है ना, तेरे भरोसे ये इंसान तेरे घर पर मेहमान बन कर गए थे, बड़ा विशवास, बड़ा एतमाद था उन्हें तुझ पर, वो हर बात से लापरवाह थे, न उन्हें ख़राब मौसम का डर था न हजारों की भीड़ का, न उन्होंने एक पल को ये सोचा कि वहां उनकी हिफाज़त के क्या एक्दाम किए गए हैं,
सोचते भी क्यों?
वो तो तेरे घर गए थे, तेरे महमान बन कर, इस अंधे विशवास के साथ कि अपने घर आने वालों की हिफाज़त तो तू ख़ुद करता है, कोई करे या ना करे, क्योंकि तेरे लिए तो तेरा हर बन्दा बराबर है चाहे वो बादशाह हो या फकीर, फर्क तो ये दुनिया वाले करते हैं,, तेरे ही घर पर अगर अमिताभ बच्चन, अनिल अम्बानी, अडवाणी या अमर सिंह जैसे ख़ास लोग आते तो तेरे ही घर के चप्पे चप्पे पर हिफाज़त के लिए सैकडों लोग जी जान से लग जाते क्योंकि दुनिया के लिए ये ख़ास लोग हैं जिन्हें कोई नुक्सान नही होना चाहिए, आम आदमी तो कीडे मकोडे हैं उनके लिए, कभी कहीं मर जाते हैं कभी कहीं, कब पैदा होते हैं, कब मर जाते हैं, पता ही नही चलता, क्योंकि ये आम लोग हैं न, इनका जीना क्या, इनका मरना क्या लेकिन मेरे रब, तेरे लिए तो ये फर्क कोई मायने नही रखते न, फिर तूने अपने महमानों को ऐसी बेबसी की मौत मरने से क्यों नही बचाया?
क्यों कहर बन कर उन्हें नेस्त नाबूद नही किया जिन्होंने इन मासूमों की हिफाज़त में कोताही बरती.
क्या हो गया है मेरे मालिक तुझे?
कहीं तू भी तो ख़ास और आम का फर्क नही करने लगा है?
कहीं…कहीं तू भी अपने बन्दों को उन की हैसियत के हिसाब से…..नही ..नही , ये मैं क्या सोचने लगी, पागल हूँ न, क्या करूँ, अखबारों में आंधी तूफ़ान के बाद टूटे पत्तों की तरह बिछी लाशें दिख कर जाने दिल कैसी कैसी बहकी बातें सोच रहा है,
तू माबूद है, हर फर्क से बेनियाज़, शायद इस में भी तेरी कोई मस्लहेत रही होगी.
ऐ खुदा, बस तुझ से मेरी इतनी सी इल्तेजा है, अपने घर की और अपने महमानों की हिफाज़त ख़ुद किया कर कि ये दुनिया इस काबिल नही रही जो तेरे महमानों कि हिफाज़त कर सके, ऐ मेरे रब, जो चले गए, उनकी रूह को पुरसुकून रख और उनके अपनों को इस दुःख को बर्दाश्त करने की ताकत अता फरमा…(आमीन)
सोचते भी क्यों?
वो तो तेरे घर गए थे, तेरे महमान बन कर, इस अंधे विशवास के साथ कि अपने घर आने वालों की हिफाज़त तो तू ख़ुद करता है, कोई करे या ना करे, क्योंकि तेरे लिए तो तेरा हर बन्दा बराबर है चाहे वो बादशाह हो या फकीर, फर्क तो ये दुनिया वाले करते हैं,, तेरे ही घर पर अगर अमिताभ बच्चन, अनिल अम्बानी, अडवाणी या अमर सिंह जैसे ख़ास लोग आते तो तेरे ही घर के चप्पे चप्पे पर हिफाज़त के लिए सैकडों लोग जी जान से लग जाते क्योंकि दुनिया के लिए ये ख़ास लोग हैं जिन्हें कोई नुक्सान नही होना चाहिए, आम आदमी तो कीडे मकोडे हैं उनके लिए, कभी कहीं मर जाते हैं कभी कहीं, कब पैदा होते हैं, कब मर जाते हैं, पता ही नही चलता, क्योंकि ये आम लोग हैं न, इनका जीना क्या, इनका मरना क्या लेकिन मेरे रब, तेरे लिए तो ये फर्क कोई मायने नही रखते न, फिर तूने अपने महमानों को ऐसी बेबसी की मौत मरने से क्यों नही बचाया?
क्यों कहर बन कर उन्हें नेस्त नाबूद नही किया जिन्होंने इन मासूमों की हिफाज़त में कोताही बरती.
क्या हो गया है मेरे मालिक तुझे?
कहीं तू भी तो ख़ास और आम का फर्क नही करने लगा है?
कहीं…कहीं तू भी अपने बन्दों को उन की हैसियत के हिसाब से…..नही ..नही , ये मैं क्या सोचने लगी, पागल हूँ न, क्या करूँ, अखबारों में आंधी तूफ़ान के बाद टूटे पत्तों की तरह बिछी लाशें दिख कर जाने दिल कैसी कैसी बहकी बातें सोच रहा है,
तू माबूद है, हर फर्क से बेनियाज़, शायद इस में भी तेरी कोई मस्लहेत रही होगी.
ऐ खुदा, बस तुझ से मेरी इतनी सी इल्तेजा है, अपने घर की और अपने महमानों की हिफाज़त ख़ुद किया कर कि ये दुनिया इस काबिल नही रही जो तेरे महमानों कि हिफाज़त कर सके, ऐ मेरे रब, जो चले गए, उनकी रूह को पुरसुकून रख और उनके अपनों को इस दुःख को बर्दाश्त करने की ताकत अता फरमा…(आमीन)
30 comments:
यह सब देख कर शिकवा तो हमें भी है उस रब्ब से ..पता नही क्या सोचता होगा वह भी
शिकवा तो है मगर दर्द भी वही देता है मरहम भी वही देता है.
विपिन ने सही कहा दर्द वही देता है और मरहम भी बावजूद इसके अफ़सोस बहुत है...
bahut hi sanvedansheel lekh.. is baar to kuch sochne par vivash kar diya aapne..
सच बड़ा ही हौलनाक मंजर था, हम भी केवल सवेदना जताने के अलावा कुछ नही कर सकते.
बहुत ही दुखद है यह।अब प्रभू की प्रभू ही जाने..
दुखद. मृत आत्माओं को शांति मिले.बस यही प्रार्थना है.
अरे सभी उस खुदा को, उस ईशबर को कोस रहे हे लेकिन क्यो क्या उसने कहा था, बिना सोचे समझे इधर उधर भागो,ओर अगर आगे वाला गिर गया हे तो उसे रोंध दो अपनी जान को बाचओ, नही उस ऊपर वाले की कोई गलती नही, बेवकुफ़ी हम´करे नाम उस का बदनाम,हमे इन सब बातो से सवक लेना चहिये,अफ़्गाहो को सुन कर भाग दोड नही मचानी चाहिये,या फ़िर जाओ ही मत भीड भाड वाली जगह पर,
मुझे भी दुख हे जो मरे हे वो भी किसी के कुछ थे, लेकिन वो सब मरे हे हमारी अपनी गलती से, मे अपने ईश्बर से यही प्राथना करता हु कि दुखद. मृत आत्माओं को शांति मिले, ओर उन सब के परिवार वालो को सब सहने की शक्त्ति दे, ओर हम सब को ऎसे समय मे आगे से अक्ल दे, ताकि आईन्दा फ़िर ऎसा ना हॊ.मेरे शव्दो से किसी को ठेस लगे तो माफ़ी का हक दार हू
धन्यवाद
इस में खुदा का कोई दोष नहीं। आदमी ऐसी जगह खुदा से मिलने नहीं जाता। वह कुछ लेने जाता है। जब बहुत लोग इसी लिए जाते हैं और लाइन की जगह भीड़ लगा कर धक्का मुक्की करते हैं तो एक दूसरे का नुकसान ही करते हैं। उन्हें भरोसा ही नहीं खुदा पर।
खुदा से मिलना हो तो जहाँ आप हैं वहीं मिल सकते हैं। वहीं सुन भी लेगा और मिल भी जाएगा। और खुदा मिल जाए तो क्या उस से कुछ मांगने की हिम्मत होगी किसी की।
बहुत पहले लिखा था ..
सोचता हूँ क्या पा लिया तुझसे खुदा
अब तजुर्बा ये करूँ काफिर हो जायूं
लेकिन सच बतायुं ....द्रिवेदी जी ठीक कहते है...इसमे खुदा का नही खुदा के बन्दों का दोष है......
पता नही अनुराग जी, बन्दों का दोष ही है शायद की अब उसे भी सिर्फ़ खुदा या भगवान् के नाम पर कहीं भी नही चले जाना चाहिए...ठीक ही है, शायद अब एत्काद का दौर ही नही रहा....वरना भगवान् के यहाँ जाते हुए किस बात का डर...लेकिन अब करना होगा....
खुदा तो खुदा ही है...उसका कहाँ दोष होता है...
are is bewkuf(penny gold) ko kya replay kar rahi ho spyware walen hai mita do.
agree towards your argue
इधर से गुज़रा था
...सोचा सलाम करता चलूँ...
अंगूठा छाप
khuda ka kya dosh ! mujhe to nahin dikhta. ham har apani galati usi par kyon thopate hain ? Bas dwiwediji waali hi baat hai thoda ghuma ke :-)
i think there is some problem in my comment box...confusing...
Thanks Lovely, yes i should not reply him, actually i did not know about them...thanks for u Amar ji.
Hi, lovely..mere comment box mein kuchh problem hai, pata nahi kyon, comments show ho hi nahi rahe...pls help
abhishek, wt do u mean?
क्या हमें मन्दिर या मस्जिद नही जाना चाहिए?
अगर हम sab यही सोच कर बैठ जाएँ कि खुदा तो हर जगह है तो सारे मन्दिर मस्जिद गुरुद्वारा तो सुनसान हो जायेंगे?
वो innocent लोग आप जैसे इतने काबिल नही थे, कि इतना सोच पाते तो क्या उनका नसीब यही था?
u know, लिख लीजिये...अगर यही कुछ किसी बोम्ब अटैक में हुआ होता तो believe me, सारे देश में हलचल मच जाती...लेकिन जब अपनी गलती होती है तो कितनी खामोशी छ जाती है, बल्कि उल्टे मरने वालों को ही दोष दिया जाता है...वाह
ab thik huyi samsaya ya nhai?
bb
thh
ee
th
rr
eee
nahi yaar, abhi bhi vaise hi hai...wt should i do?
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