सब से पहले माफ़ी चाहूंगी अपने पढने वालों और दोस्तों से जिन से इतने दिन दूर रही, याद बहुत आई, दोस्तों के घरों(ब्लॉग) में जाने का दिल भी बहुत किया लेकिन कभी कभी मस्रूफियतें इंसान को कहीं का नहीं छोड़तीं.
अब देखिये न, ब्लोगिंग की ये दुनिया भी बडी अजीब सी है, ब्लोगिंग ही क्या कोई भी महफ़िल हो, जब तक साथ रहता है, कभी ये अहसास छू कर नहीं गुज़रता कि इन महफिलों से दूर हो कर कैसे जियेंगे. लेकिन जब कोई छोटी सी मजबूरी भी एक दुसरे से दूर होने पर मजबूर कर दे तो अहसास होता है कि पल दो पल जो साथ आज है, वो कितना कीमती है.
वो तो हम ही हैं जिसे लगता है कि जो आज है वो कल भी होगा लेकिन हर लम्हे से खुशियों को कशीद कर लेना ही अकलमंदी है.
अब मैं बताऊँ कि ye छोटी सी मजबूरी क्या थी?
मजबूरी अगर प्यारी सी हो तो बुरी नहीं लगती. ठीक समझा आपने, हमारे त्यौहार मसरूफ तो कर देते हैं लेकिन खूबसूरत भी तो बहुत होते हैं ना?
रजब महीने के इख्तेताम(लास्ट वीक) के दिनों से ही त्योहारों का सिलसिला शुरू होजाता है.
२२ रजब, २७ रजब के बाद ३ शाबान यानी ६ अगस्त को इमाम हुसैन अलाहिस्सलाम की विलादत(बर्थडे) का मुबारक दिन होता है. हमारे यहाँ यानी शिया लोगों में ये दिन किसी ईद से कम नहीं होता. होना भी चाहिए, ये उनके जन्म का दिन है जिसने इस्लाम को अपने खून से जिंदा रखा, वो कुर्बानियां दीं जो आज तक तारीख में किसी ने नहीं दी.
३ शाबान की शब् को नज्र की तय्यारियां शुरू हो जाती हैं.
नजर के लिए मीठी टिकियाँ और खीर बनायी जाती है.
ये मीठी टिकियाँ बहुत ही लज़ीज़ होती हैं. इन्हें मैदे, सूजी, नारियल के बुरादे, चीनी घी और ढेर सारे मेवे के साथ बनाया जाता है.
खीर के साथ शामी कबाब, पूरियां छोले, दही बडे और मिठाईयां होती हैं.
कालीन पर छोटे पायों वाली मेज़ पर सफ़ेद चादर पर खूबसूरत सफ़ेद नेट के कवर से ढक कर बडे एहतेमाम से सुबह नजर दी जाती है.
लोग आते हैं, हाथ धोकर एहतेराम से कालीन पर बैठ कर नजर चखते हैं. आने वालों को खिलाना, उन्हें एक एक डिश पेश करना और मेहमान नवाजी करते हुए बहुत अच्छा लगता है.
एक लम्हे को दिल चाहता है कि हम अपने इमाम के जन्म के इस मुबारक दिन क्या क्या न कर दें.
रात गए तक मेहमानों के आने का सिलसिला चलता है.
थकान तो हो जाती है लेकिन सच कहूँ तो बहुत बहुत खूबसूरत होता है ये दिन.
शाबान में ही शब-ऐ-बारात का खूबसूरत त्यौहार होता है.
शाबान से ही बहुत से लोग रोजे शुरू कर देते हैं. शाबान के बाद ही रमजान-उल-मुबारक की शुरुआत हो जायेगी.फिर ईद मतलब ये कि मसरुफियतें ही मसरुफियतें…लेकिन बहुत हसीन.
अब समझ गए होंगे कि आप सब से दूर क्यों रही.
दूर ज़रूर रही लेकिन मेरे दिल में आप हमेशा थे और रहेंगे. जनाब जो जिंदगी में शामिल हों, वो दूर हो कर भी बहुत करीब होते हैं.
वो दिलों में और दुआओं में भी तो शामिल होते हैं…यकीन कीजिये, आप मेरे साथ मेरी दुआओं में भी साथ रहे और रहेंगे.
कोशिश तो यही रहेगी कि मसरूफ रह कर भी आप सब के करीब रहूँ. देखिये कितना रह पाती हूँ.
खुदा करे, आप सभी अपनी अपनी जगह बखैरियत और बहुत खुश हों(अमीन)
अब देखिये न, ब्लोगिंग की ये दुनिया भी बडी अजीब सी है, ब्लोगिंग ही क्या कोई भी महफ़िल हो, जब तक साथ रहता है, कभी ये अहसास छू कर नहीं गुज़रता कि इन महफिलों से दूर हो कर कैसे जियेंगे. लेकिन जब कोई छोटी सी मजबूरी भी एक दुसरे से दूर होने पर मजबूर कर दे तो अहसास होता है कि पल दो पल जो साथ आज है, वो कितना कीमती है.
वो तो हम ही हैं जिसे लगता है कि जो आज है वो कल भी होगा लेकिन हर लम्हे से खुशियों को कशीद कर लेना ही अकलमंदी है.
अब मैं बताऊँ कि ye छोटी सी मजबूरी क्या थी?
मजबूरी अगर प्यारी सी हो तो बुरी नहीं लगती. ठीक समझा आपने, हमारे त्यौहार मसरूफ तो कर देते हैं लेकिन खूबसूरत भी तो बहुत होते हैं ना?
रजब महीने के इख्तेताम(लास्ट वीक) के दिनों से ही त्योहारों का सिलसिला शुरू होजाता है.
२२ रजब, २७ रजब के बाद ३ शाबान यानी ६ अगस्त को इमाम हुसैन अलाहिस्सलाम की विलादत(बर्थडे) का मुबारक दिन होता है. हमारे यहाँ यानी शिया लोगों में ये दिन किसी ईद से कम नहीं होता. होना भी चाहिए, ये उनके जन्म का दिन है जिसने इस्लाम को अपने खून से जिंदा रखा, वो कुर्बानियां दीं जो आज तक तारीख में किसी ने नहीं दी.
३ शाबान की शब् को नज्र की तय्यारियां शुरू हो जाती हैं.
नजर के लिए मीठी टिकियाँ और खीर बनायी जाती है.
ये मीठी टिकियाँ बहुत ही लज़ीज़ होती हैं. इन्हें मैदे, सूजी, नारियल के बुरादे, चीनी घी और ढेर सारे मेवे के साथ बनाया जाता है.
खीर के साथ शामी कबाब, पूरियां छोले, दही बडे और मिठाईयां होती हैं.
कालीन पर छोटे पायों वाली मेज़ पर सफ़ेद चादर पर खूबसूरत सफ़ेद नेट के कवर से ढक कर बडे एहतेमाम से सुबह नजर दी जाती है.
लोग आते हैं, हाथ धोकर एहतेराम से कालीन पर बैठ कर नजर चखते हैं. आने वालों को खिलाना, उन्हें एक एक डिश पेश करना और मेहमान नवाजी करते हुए बहुत अच्छा लगता है.
एक लम्हे को दिल चाहता है कि हम अपने इमाम के जन्म के इस मुबारक दिन क्या क्या न कर दें.
रात गए तक मेहमानों के आने का सिलसिला चलता है.
थकान तो हो जाती है लेकिन सच कहूँ तो बहुत बहुत खूबसूरत होता है ये दिन.
शाबान में ही शब-ऐ-बारात का खूबसूरत त्यौहार होता है.
शाबान से ही बहुत से लोग रोजे शुरू कर देते हैं. शाबान के बाद ही रमजान-उल-मुबारक की शुरुआत हो जायेगी.फिर ईद मतलब ये कि मसरुफियतें ही मसरुफियतें…लेकिन बहुत हसीन.
अब समझ गए होंगे कि आप सब से दूर क्यों रही.
दूर ज़रूर रही लेकिन मेरे दिल में आप हमेशा थे और रहेंगे. जनाब जो जिंदगी में शामिल हों, वो दूर हो कर भी बहुत करीब होते हैं.
वो दिलों में और दुआओं में भी तो शामिल होते हैं…यकीन कीजिये, आप मेरे साथ मेरी दुआओं में भी साथ रहे और रहेंगे.
कोशिश तो यही रहेगी कि मसरूफ रह कर भी आप सब के करीब रहूँ. देखिये कितना रह पाती हूँ.
खुदा करे, आप सभी अपनी अपनी जगह बखैरियत और बहुत खुश हों(अमीन)
21 comments:
खुदा इतनी हसीन मशरूफियत सबको अता फरमाएं....नजर का एक टुकड़ा इधर भी नजर करदिया होता तो हम भी खुश हो लेते...चलिए अगली बार सही...
नीरज
नीरज जी से सहमत हू.. ऐसे मुश्रूफियतो से खुदा आपको हमेशा नवाज़े.. और सिर्फ़ आप ही को नही हर इक को.. सब मिलकर बस यूही मशरूफ रहे.. इन त्योहारो में..
अच्छी जानकारी मिली।आभार।
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...wellcome!
दिल और दुआ में शामिल रहने वाले हम ब्लॉगर भी आपको मिस करते हैं और रहेंगे... आपका अंदाज जुदा होते हुए भी अपनापन लिए रहता है....
शब-ऐ-बारात की आप को बहुत बहुत मुबारक वाद, ओर खुदा करे, आप भी बखैरियत और बहुत खुश हों(अमीन),
आमीन .....बस यही दुआ है...
जनाब जो जिंदगी में शामिल हों, वो दूर हो कर भी बहुत करीब होते हैं,
वो दिलों में और दुआओं में भी तो शामिल होते हैं…
इतना कह दिया ये ही काफी है, इंतजार रहेगा।
पावन पर्व की बहुत बधाई एवं शुभकामनाऐं! बस, पकवानों का नाम सुनकर थोडा़ भूख लग आई. :)
हम आप की मसरूफियत समझे। अच्छा लगा कि आप भले काम में लगी थीं। पर इधऱ हम आप को तलाशने के लिए आप का घर तलाशते रहे। जो सिरे से गायब था। आज नजर आया। समझ आया कि ईद कैसी भी हो वह लोगों को ईद का चांद भी कर देती है।
तो आप दावतें दे और उड़ा रही थीं। हमारे यहाँ खाने पीने का ऐसा ही माहौल होली के समय रहता है जब घर में गुजिया, दही बड़े, खुरमा, पूआ आदि की बहार लगी रहती है।
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मुबारिक़ हो रख्शंदा..
तुमने इस मौके के ख़ाने-पीने और रश्मो-तहज़ीब से
ब्लागर बिरादरान को वाक़िफ़ कराया ।
अब रमज़ान शरीफ़ में रसूल के हिदायतों से ग़ाफ़िल लोगों तक उनका नज़रिया सामने रखने की कोशिश कर सको, तो बेहतर ।
इस मुबारिक़ मौके पर फ़क़त इतनी ही दुआ करूँगा कि .... ' अत-तारिक़ ' वा ' अल फ़लक़ ' की सारी नेमतें तुम्हें नसीब हों । आमीन ।
कभी विस्तार से बतायेँ आपकी रस्मो और त्याहारोँ के बारे मेँ भी ,
परिवार के साथ, खूब सारी खुशियाँ मनाइयेगा -
- लावण्या
आमीन.
रीस्वगातम.
डाक्टर अमर बाबू की बात पर नजरे इनायत की जाएँ.
kamaal hai , जब मजबूरियां खूबसूरत हों"
kaya baat hai ji...
माफ़ी वोफ़ी कुछ नही … फ़िर न टरक जाइयेगा
और मुँह में पानी भर गया है इन्तजाम कीजिये .…:)
आप सभी का बहुत शुक्रिया,आपका प्यार आपकी मुहब्बतें ही मेरे लिए जिंदगी का सरमाया हैं, ये आपका प्यार ही तो है जो जिंदगी की हर मसरूफियत में भी मेरे साथ रहता है.
जज्बे एक तरफा कभी नही होते,बहुत बहुत शुक्रिया.
अमर जी, आपका बहुत शुक्रिया, रसूल से गाफिल लोगों को भला मैं क्या रास्ता दिखा सकती हूँ की पता नही उनके बताये हुए रास्तों पर मैं ही सही तरह चल रही हूँ या नही, लेकिन फिर भी जहाँ तक हो सकता है, अपने लिए कोशिश करती हूँ, जहाँ तक सही हूँ, वहां तक अपनी बात रखने की कोशिश ज़रूर करुँगी.बहुत शुक्रिया.अपना ख्याल रखियेगा.
नीरज जी, काश मैं ऐसा कर पाती, सच बहुत अफ़सोस होता है जब दिल के इतने करीब रहने वाले, ख़ुद से इतनी दूर होते हैं...
आपकी खूबसूरत पोस्ट पढ़कर रियाद में गुज़ारे 20 साल याद आ गए...और सभी दोस्त जिनके साथ फज़र की नमाज़ तक बैठकर खूब गपबाज़ी किया करते...दस्तखान बिछाकर लज़ीज़ पकवानों का लुत्फ अभी तक याद है. रोज़ों के पाक महीने की मुबारकबाद....
gayab to main bhi hoon idhar, lekin aap aise mat gayab ho jaaya kijiye.. hamaari baat aur hai, hamaara koi intazaar nahin karta :-)
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