Pretty woman
Monday, June 14, 2010
Monday, June 7, 2010
लिखना मुझे भी अच्छा लगता है लेकिन......
Saturday, February 13, 2010
सिर्फ अहसास है ये रूह से महसूस करो.......
एक बार कहीं पढ़ा था, 'मुहब्बत दुनिया के सारे मसलों का हल है'
ईमानदारी से सोचिये क्या ये सच नहीं है
मैं कहती हूँ अगर ये सच नहीं है तो इस दुनिया में कुछ भी सच नहीं है।
मुहब्बत और सिर्फ मुहब्बत दुनिया के हर मसले का हल है.
जब जब इंसान इस जज्बे से दूर हुआ है उस ने दुनिया और समाज को सिर्फ और सिर्फ नफरत दी है. कभी इंसानियत का खून कर के कभी दिलों में नफरतों का ज़हर भर के.
क्यों ? क्यों करते हैं हम ऐसा ? क्यों नहीं हम मुहब्बत कर पाते.
जब एक जज्बा दुनिया की सारी बदसूरती समेट कर माहौल को दिलकश बना सकता है तो क्यों हम इस जज्बे को ज़बरदस्ती कुचल कर अपनी और दूसरों की जिन्दगियां मुश्किल कर देने पर तुल जाते हैं.
हमें कुछ नहीं करना...एक बार ...सिर्फ एक बार अपने दिल के शफ्फाफ (साफ) आईने में ईमानदारी से झांकना है, ये खूबसूरत जज्बा अपने सारे हुस्न के साथ हमारे दिल की इन्तहाई गहराइयों में दमकते हुए मोती की तरह मौजूद मिलेगा, क्योंकि ये जज्बा तो खुदा अपने बन्दों के दिलों में उतार कर ही इस दुनिया में भेजता है.
एक बार गौर से देखें तो, इसी जज्बे में हमें खुदा की मौजूदगी का पूरा अहसास मिलेगा.
मुहब्बत ही तो खुदा है, क्यों भूल जाते हैं हम ?
अपने जाती मुफाद और खुद को बरतर दिखाने में हम खुदा की मौजूदगी को भुला कर कितना खून बहाते आये हैं, कितना ज़हर फैलाते आये हैं.
तो फिर क्या ख़याल है, क्यों न हम मुहब्बत कर लें..
सुना है आज तो हवाएं भी मुहब्बतों के नगमे सुना रही हैं,,हमारे आस पास, इर्द गिर्द, हर तरफ सिर्फ एक ही लफ्ज़ के चर्चे हैं…मुआहब्बत, लेकिन सवाल ये है कि आखिर क्या है मुहब्बत?
कभी इमानदारी से सोचा है आपने?
क्या यही है मुहब्बत जो आज बाज़ार,बाज़ार गली ,गली अपनी पूरी चमक दमक के साथ हमारे सामने पेश की जा रही है ?
क्या इतनी ही अर्जां (सस्ती) हो चुकी है मुहब्बत ?
आपकी जेब में पैसे हैं, तो जाइए, बाज़ार में सब कुछ आपके लिए मौजूद है, दिल, जज़्बात, अहसास, सब कुछ तो मौजूद है यहाँ.अपनी पूरी खूबसूरती के साथ दिलकश पैकिंग में झिलमिलाती हुयी, बस एक खूबसूरत सा पार्टनर ढूंढिए और कर लीजिये मुहब्बत...
लेकिन क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं?
आज कई लोगों ने मुझ से आज के दिन के लिए कुछ लिखने की फरमाइश की है ,सिर्फ अपने दोस्तों से इतना कहना चाहती हूँ कि मुहब्बत वो कतई नहीं है जिसका इश्तहार आज हमारे सामने किया जारहा है.
मुहब्बत किसी भी इश्तहार,किसी भी ख़ास दिन से परे एक ऐसा अलोही (आसमानी) जज्बा है जो किसी आबदार मोती कि तरह हमारे दिल की सीप के अन्दर ही पलता है.
जैसे कोई पाकीज़ा आयत, ये लफ़्ज़ों की मुहताज नहीं होती , ये वो जज्बा है जो अपना आप बिन कहे ही मनवा कर रहता है, इसे लफ़्ज़ों के लिबास के ज़रुरत ही नहीं है.
इसे किसी 'डे ' की जरूरत है न फूलों , चाकलेट्स और कार्ड्स की..
जिंदगी की धुप छाँव में कोई भी शख्स...एक अहसास..एक कैफियत...एक जज्बा जिसे मुहब्बत कहते हैं उसके बगैर जिंदा नहीं रह सकता.
मुहब्बत एक शजर है...एक सितारा है..एक यकीन है ... एक ऐतबार है...आसमानों की जानिब सर बुलंदी का जिंदा अहसास है...एक बुलावा है बिछड़े हुवों को मिलाने का, एक आवाज़ है तारीकी से रौशनी की तरफ...एक मौसम है अपने बातिन से ज़ाहिर तक पूरी कूवत और इन्तहाई शिद्दत से फूटता हुआ...वो जज्बा जिसकी बांहों में लोग रोज़ मरते हैं और रोज़ जीते हैं.
मुहब्बत के आलावा जो गम हैं वो मुहब्बत के ना होने के सबब हैं.
मुहब्बत कीजिये कि मुहब्बत से ही नफरतों का वजूद मिटाया जासकता है.
सोचिये, आज हम किस दौर में जी रहे हैं जहाँ दिलों में खौफ पलते हैं और खौफ पाले जाते हैं, कभी सरहदों के नाम पर, कभी ज़ात के नाम पर तो कभी मज़हब के नाम पर.
आज वैलेंटाइन डे के इस ख़ास मौके पर हम ये अहद क्यों नहीं कर लेते कि ऐसी हर ज़हरीली और फर्सूदा सोच जिस में से अब बू उठने लगी है, जो हमें आगे बढाने के बजाये पीछे की और ले जाने पर मजबूर करती हैं…बदल डालेंगे.
चलिए सिर्फ इतना करते हैं….आज के दिन हम सब मिल कर एक साथ किसी से मुहब्बत कर लेते हैं.
एक साथ?
हैरान हैं ना? कहीं मुहब्बत किसी से एक साथ की जाती है…क्यों नहीं?
क्यों न हम इंसानियत से मुहब्बत कर लें…क्या ख़याल है?
Sunday, January 17, 2010
ज्योति बाबू.....यू आर इन माई हार्ट.....
दिल तो सुबह से उदास था, तबियत भी कई दिन से ख़राब थी, नींद को बुलाते बुलाते आँखें तो पहले ही थक जाती थी लेकिन आज इस खबर ने जैसे आँखों को भीगने का एक बहाना दे दिया.
ज्योति बासु नहीं रहे, लिखते हुए उंगलियाँ जाने क्यों काँप सी रही हैं.
यही दुनिया है, हर इंसान को दुनिया के इस स्टेज पर अपना किरदार निभा कर चले जाना है पर क्यों किसी का जाना इतना रुला देता है?
आज जब उन्हें सोचती हूँ तो साथ अपना बचपन दिखाई देने लगा है. ज्योति बाबु के कोल्कता में बीता था मेरा बचपन, ये वो वक्त था जब कोल्कता का नाम लेते ही ज्योति बाबु याद आते थे तो उनका नाम लेते ही कोल्कता शहर याद आता था. ऐसा इसलिए नहीं था की वो इतने लम्बे अरसे तक बंगाल के चीफ मिनिस्टर रहे, नहीं...जो लोग उन्हें जानते होंगे, वही बता सकते हैं कि ज्योति बाबु बंगाल में रहने वाले हर इंसान के दिल में बसते थे.
मैं कोई जर्नलिस्ट नहीं हूँ, न ही किसी सियासत से मुझे मतलब है, मैं जो कुछ लिख रही हूँ आज एक आम इंसान की आवाज़ के रूप में लिख रही हूँ...वो सियासी पहलु से क्या थे ये सियासतदान जानें, उनकी पोलिटिकल पोलिसीज़ कैसी थीं ये जर्नलिस्ट बताएं , लेकिन एक आम शहरी की निगाहों से उन्हें देखना है तो मेरी आँखों से देखें.
ज्योति बाबु का कोल्कता......सेकुलरिज्म का जीता जागता नमूना , किसी को किसी से शिकायत नहीं, अपनाइयत, मुहब्बत और सादगी जहाँ के लोगों के दिलों में बसती थी.
हम शहर के जिस हिस्से में रहते थे, उसे कोलकता का दिल कहा जाए तो गलत नहीं होगा, अरे जनाब आचार्य जगदीश चन्द्र बोस रोड , जहाँ हमारा फ्लैट था. दो बिल्डिंग छोड़ कर मिशनरी ऑफिस और दो मिनट की दूरी पर कम्निस्ट ऑफिस...हुआ न कोल्कता का दिल...
दूर से तो उन्हें कई बार देखा लेकिन करीब से देखने का एक बार मौका मिला , वो मौका और वो लम्हा जो मेरी बिसारतों में मुन्जमिद होकर रह गया है.
२६ जनवरी की तैयारियां वैसे तो हमेशा खूब जोर शोर से हमारे स्कूल में हुआ करती थीं लेकिन उस बार तैयारी में एक गैर मामूली जोश का अहसास था, बच्चों को तो खैर कुछ पता नहीं था. वो तो हमेशा की तरह पूरे जोश खरोश से अपनी अपनी तैयारी कर रहे थे...
मुझे अपनी दोस्त और बहन के साथ एक नज़्म (poem)पढनी थी...खैर हम ने जी जान से मेंहनत की...
२६ जनवरी का दिन आगया, और उसी दिन हमें पता चला की हमारे स्कूल में आज ज्योति बासु आने वाले हैं....बच्चों की हालत क्या थी ना पूछिए..मैं क्या बताऊँ, हमेशा की शर्मीली दब्बू सी लड़की अन्दर से और डर गयी...लेकिन दिल में कहीं दबा दबा सा जोश भी मुस्कुरा रहा था...दिल था की धड़कता ही जारहा था...
और फिर किसी ख़्वाब की मानिंद वो आगये....मैं बस उन्हें देखती रह गयी...उनका वो खूबसूरत चेहरा, कुशादा पेशानी , सादगी में बसा उनका वजीह सरापा...लेकिन सबसे ज्यादा जिस ने मुझे हैरान किया वो थीं उनकी आँखें...ज़हानत से लबरेज़ उन आँखों में क्या था , ये मैं शायद कोशिश भी करूँ तो लिख नहीं पाउंगी...
हमारी बारी आई, और हम ने वो नज़्म बिना किसी झिझक के अपनी उम्मीदों से बढ़ कर बेहतर सुनाया, मैं आज भी हैरान हूँ, मेरी आवाज़ हमेशा अपनी दोस्तों और बहन के बीच दब सी जाती थी, उस दिन पहली बार मैंने खुद को नुमायाँ पाया..सोचती हूँ, ये उनकी मौजूदगी का ही तो एजाज़ था
प्रोग्राम ख़तम हुआ , तालियों के शोर के थमते ही ज्योति बाबु उठे और सारे बच्चों को तोहफा देने लगे, अचानक ही न जाने दिल में क्या आया , आज जब उन लम्हों को याद कर रही हूँ तो हैरानी से सोचती ही रह जाती हूँ की शर्मीली सी उस बच्ची को इतनी हिम्मत कहाँ से आगई थी...यकीन तो मुझे आज भी नहीं आरहा है...
जाने दिल में क्या समाया कि कापी से पेज फाड़ा और कांपते हाथों से जो दिल में उस वक्त आया लिख कर धीरे से उनके सामने जाकर खड़ी हो गयी, जब वो मेरी तरफ मत्वज्जा हुए तो कांपते हाथों से वो पेज उनकी तरफ बढ़ा दिया था मैंने...उन्होंने बड़ी दिलचस्पी और थोड़ी हैरानी से उसे पढ़ा और फिर उसे जोर से दोहराया 'ज्योति बाबु ...यू आर इन माई हार्ट '' वो मुस्कुराए और मेरा हाथ थाम कर अपने पास बुलाया...मैं निगाहें झुकाए उनके करीब चली आई, सब मुझे दिलचस्पी से देख रहे थे...उन्होंने बड़े प्यार से मेरा नाम पूछा और पता नहीं मैंने इतनी आहिस्तगी से अपना नाम बताया था या मेरा नाम ही इतना मुश्किल था, बहरहाल उन्होंने दोबारा पूछा तब मैंने कोशिश कर के जोर से उन्हें अपना नाम बताया, उन्होंने जो नाम दोहराया , उसे सोचकर आज भी लबों पर मुस्कराहट आजाती है...'रोक्शंदा '
हमारी टीचर जो मेरे मिज़ाज के बारे जानती थी, उनसे मेरा ताआरुफ़ कराते हुए कहा था कि she is the best student of our class .............
ज्योति बाबु ने मेरे सर पर हाथ रखा और जो कुछ कहा वो उनके दिए हुए तोहफे से कहीं ज्यादा कीमती था मेरे लिए . मैं कभी उसे भुला नहीं पाउंगी.
उन्होंने कहा ''you r the sweetest girl, i have ever seen''
बस उस एक जुमले ने जैसे उस दिन मुझे दुनिया की सब से ख़ास लड़की बना दिया था, अचानक सब की निगाहों में मैं कुछ और बन गयी थी...कुछ शर्मीलेपन का अहसास कुछ फख्र का सुनहरा रंग....मैं वो लम्हा कभी भूल नहीं सकी.
वो चले गए लेकिन हमेशा मेरे दिल में रहे...कई बार दिल शिद्दत से उनसे एक बार और मिलने की तमन्ना करता रहा लेकिन सारी तमन्नाएं कहाँ पूरी हुआ करती हैं...
पहले वो शहर छूटा, फिर ज्योति बाबु ने खामोशी से अपनी कुर्सी छोड़ दी.
आम आदमी के दिल में बसने वाले उस लीडर को किसी ओहदे का लालच कभी था ही नहीं, पार्टी के लिए पी.एम्. का ओहदा ठुकराने वाले,हिदू मुस्लिम, सिख ईसाई हर मज़हब को अपने दिल में बसाने वाले, गरीब अमीर सब को मुहब्बत बांटने वाले उस इंसान की शान में मैं भला क्या लिख सकती हूँ.
उन्होंने इतने लम्बे अरसे बंगाल के चीफ मिनिस्टर रहते हुए पूरे बंगाल के लोगों में मुहब्बतों को जो पैगाम बांटा वो आज भी जिंदा है और नस्लों तक जिंदा रहेगा.
कई लोगों ने मुझ से कहा की उनकी economical policies ने कोल्कता को मुंबई और दिल्ली से काफी पीछे कर दिया, मैं उनकी policies पर कोई कमेन्ट नहीं करना चाहती, लेकिन इतना ज़रूर कहूँगी कि हो सकता है कि तरक्की में कोल्कता , मुंबई और दिल्ली की बराबरी नहीं कर पाया हो लेकिन क्या सेकुलरिज्म के मामले में मुंबई और दिल्ली उसके आस पास भी ठहर सकते हैं?
हमें ऐसी तरक्की नहीं चाहिए जिस में से बेगुनाह इंसानों के खून की बू आती हो...हमें ऐसा शहर और माहौल चाहिए जहां अपनेपन और मुहब्बतों की खुशबू आती हो...जहाँ न हिन्दू रहता हो न मुस्लिम..न सिख न ईसाई...जहाँ सिर्फ और सिर्फ इंसान रहते हों ...
हाँ,,ऐसा ही था ज्योति बाबु का कोल्कता और बंगाल...
क्या हुआ जो आज वो जिस्मानी तोर पर हमारे बीच नहीं हैं...वो तो मेरे जैसे हर इंसानों के दिल में रहते हैं और हमेशा रहेंगे...
जहाँ तक मेरा सवाल है, हर इंसान की तरह मेरा बचपन भी मेरे दिल के एक खूबसूरत कोने में मौजूद है, फुर्सत के किसी भी प्यारे लम्हे में जब भी यादों के उस अल्बम को खोलूंगी...ज्योति बाबु तो उसमें मौजूद ही रहेंगे...शायद आखिरी साँसों तक...
Thursday, December 31, 2009
ऐ नए साल बता , तुझ में नयापन क्या है ?
Thursday, October 9, 2008
दुर्गा पूजा की वो सुनहरी शाम, जब मैंने पहली बार साड़ी पहनी थी......
यादें जालिम भी होती हैं, तो हसीन भी होती हैं. दिल को जितना तड़पाती हैं, उतना ही सुकून भी दिया करती हैं.
कभी कभी तो ये यादें इंसान के अन्दर एक दुनिया सी आबाद कर देती हैं. यादों का मेरी जिंदगी में बड़ा अहम् रोल है. यादों में मैं जीती तो नही, लेकिन कुछ यादें जीने का बहुत बड़ा जरिया भी हैं मेरे लिए.
खैर आज तो खुशी का दिन है तो क्यों ना कुछ खुश गवार यादों की बस्ती में डेरा डाला जाए.
त्योहारों का मौसम है. हर तरफ़ खुशियाँ अंगडाइयां ले रही हैं. ये त्यौहार होते ही ऐसे हैं. गम के हर बादल को हटा कर अपनी जगह बना लेते हैं. एक दिन के लिए इंसान हर गम, हर अंदेशे भुला कर बस इन्हीं का हो जाता है.
दशहरा जब भी आता है, मुझे कोलकाता की याद आती है. मेरा वो शहर जहाँ मेरा बचपन बीता.जिंदगी के एक एक पल को जहाँ बड़ी शिद्दत से जिया मैंने. जवानी की नाज़ुक सी कोंपल ने धीरे से इसी शहर में छुआ था मुझे.
कोलकाता याद आता है तो दुर्गा पूजा की याद अपने आप दिल के झरोखे में अपनी झलक दिखला जाती है.
कोलकाता की दुर्गा पूजा, जब भी याद आती है दिल बड़े खूबसूरत अंदाज़ में धड़कने लगता है. इस मौके की जाने कितनी हसीन यादें मेरे साथ जुड़ी हुयी हैं.जिन्हें मैं चाहूँ भी तो भूल नही पाती.
त्यौहार आने की आहट ही दिलों को उमंगों से भर देती थी. चारों तरफ़ जैसे एक अलग सा नशा छा जाता था. पता नही क्यों, पर ईद की ही तरह ये त्यौहार मुझे अपना त्यौहार महसूस हुआ करता था. वैसी ही तैयारी हम इसके लिए करते थे, नए कपड़े, ज्वेलरी दोस्तों के लिए तोहफे…ओह .आज सोचती हूँ तो बड़ा अजीब सा लगता है. आख़िर क्यों, आज हम पहले की तरह इस त्यौहार से अपने आप को जुडा महसूस क्यों नही कर पाते ? सोचती हूँ तो वजहें बड़ी साफ़ साफ़ दिखायी देने लगती हैं.
दरअसल कोलकाता ही असली मायनों में वो शहर है जहाँ असली सेकुलरिज्म दिखायी देता है. एक अकेला शहर जहाँ ईद जब आती थी तो लगता था हम किसी मुस्लिम शहर में चले आए हैं. सारा शहर सज उठता था. हर तरफ़ रौनक और खुशियाँ. हर मज़हब के लोग इस त्यौहार से जुड़े दिखायी देते थे. बंगाली हों या ईसाई, सबको सेवईयां खरीदते देख सकते हैं आप,दुर्गा पूजा में सारा शहर दुल्हन की तरह सज जाता था तो वैसी ही सजावट और खूबसूरती क्रिसमस पर दिखायी देती थी. शायद किसी को यकीन ना आए लेकिन हम बच्चे ही नही हमारी सारी फैमिली क्रिसमस पर चर्च जाती थी. वहां जाकर बड़ा ही सुकून और खुशी का अहसास होता था.
इसे वहां के लोगों के दिलों की खूबसूरती से ज़्यादा वहां की कम्निस्ट सरकार जादू कहा जाए तो ग़लत नही होगा.
मैं नही जानती कि अब बुद्धदेव भट्टाचार्य का कोलकाता भी वैसा ही है या नही लेकिन मैंने ज्योति बासु का कोलकाता देखा था और मैं पूरे यकीन से कहती हूँ की अगर ज्योति बासु इतने लंबे अरसे तक बंगाल में राज करते रहे तो इस में कोई हैरानी की बात नही थी. वैसा मुख्यमंत्री पता नही हम दुबारा कभी देख पायें या नही .
वजह साफ़ है, जहाँ हर मज़हब का एहतराम होगा, जहाँ किसी के साथ नाइंसाफी नही होगी , कोई कोम अपने आप को दूसरे से कमतर नही महसूस करेगी, वहाँ प्यार और मुहब्बतों के जज्बे अपने आप ही जग जाते हैं.
दुर्गा पूजा की एक यादगार शाम आज भी मेरे दिल में मुस्कुरा उठी है.
मेरी एक दोस्त थी, मोह चटर्जी. उसके बेपनाह इसरार पर मैं उसके घर गई थी. काफी धनवान फैमिली थी उनकी, इसी लिए हर साल दुर्गा पूजा का शानदार इंतजाम उनके यहाँ किया जाता था. बेहद खूबसूरत पंडाल जिसे देखकर किसी किले का सा अहसास होता था, में शानदार स्टेज पर संगमरमर की दुर्गा जी, जिनकी खूबसूरती देखते ही बनती थी. सफ़ेद सुर्ख और सुनहरे ज़रदोजी के काम वाली साड़ी और गोल्ड की भारी ज्वेलरी में वो इतनी हसीन नज़र आती थीं की बस नज़रें उन पर से हटती ही नही थीं.
बहरहाल उस शाम ममा की तबियत ठीक नही थी इसलिए मुझे बहन के साथ जाना पड़ा था.हमें देख कर मोह बहुत खुश थी. हमेशा की तरह वो बड़ी खूबसूरत साड़ी में ज्वेलरी पहने बड़ी प्यारी लग रही थी.
मुझे देख कर उसने जिद करनी शुरू कर दी की तुमने साड़ी क्यों नही पहनी. मैंने लाख बहाने बनाए लेकिन उसने मेरी एक नही सुनी और अपनी मम्मी की साड़ी पहनाने की फरमाइश करने लगी. सच कहूँ तो इस से पहले मैंने कभी साड़ी न पहनी थी ना ही पहनने की सोची थी. हालांकि मम्मी हमेशा साड़ी ही पहनती थीं लेकिन हमारे यहाँ शादी से पहले साड़ी पहनने का कोई रिवाज नही था. कुछ ख़ुद मुझे भी साड़ी बड़ी झंझट का लिबास लगा करता था(सच कहूँ तो आज भी…) लडकियां फेयरवेल पार्टी में बड़े शौक से साड़ी पहनती हैं, लेकिन मैंने उस मौके पर भी लहंगे से काम चलाया था.
लेकिन उसने कुछ इतने मान से मुझ से ये फरमाइश की कि मैं चाह कर भी उसे ‘ना’ नही कह पायी. मुझे पहननी पड़ी, इतनी हँसी आरही थी, वो पहना रही थी और मुझे गुदगुदी हो रही थी. थोडी देर में ही उसने बड़ी महारत से मुझे साड़ी पहना दी और सच पूछिए तो जब मैंने खुदको आईने में देखा तो एक पल को लगा जैसे मैं किसी और को देख रही हूँ. एकदम से काफी बड़ी सी लगने लगी थी, हमेशा से एकदम अलग. अपना आप अच्छा तो लग रहा था लेकिन साथ शर्म भी आरही थी कि ऐसे लिबास में बाहर सब के दरमियान कैसे जाउंगी?
आँचल से खुको ढकती, कभी आँचल तो कभी चुन्नट और कभी ज्वेलरी संभालती कभी इधर उधर देखती मैं आज भी अपनी उस कैफियत को भूल नही पाती. मेक -अप से चिढ़ने वाली लड़की को आज उसने ज़बरदस्ती से मेक -अप भी कर डाला था. इस में मोह का साथ मेरी बहन ने भी भरपूर तरीके से दिया था. जी भर के दोनों को कोसती हुयी मैं हिम्मत कर के बाहर आई थी. पंडाल में पहुँची तो एकदम जी चाहा, भाग जाऊं, ओह मेरे खुदा, इतनी नज़रें, सारी की सारी जैसे मुझ पर जम सी गई थीं, ऐसा लग रहा था, जैसे सबको पता हो कि इस लड़की ने पहली बार साड़ी पहनी है.
बड़ी मुश्किल से पसीना पोंछती खुदको संभालती, मैं स्टेज तक पहुँची थी. पूजा अपने शबाब पर थी, भक्ति में डूबे सब नाच रहे थे, मोह की फैमिली के कई लोग आए हुए थे, कुछ विदेश से भी ख़ास तौर से इसी मौके पर आते थे. मोह ने बड़ा प्यारा डांस किया. उसका डांस देखते देखते मैं अपनी सारी घबराहट भूल गई थी. हम सब जैसे एक रंग में डूब गए थे, मुहब्बत का रंग, भक्ति और विशवास का रंग. लेकिन तभी एक अजीब बात हुयी, मोह का एक कजिन, जो विदेश से आया था, उसने अचानक मेरे पास आकर मुझे भी डांस करने को कहा, मेरी सारी बौखलाहट फिर से वापस आगई, डांस और मैं?
वो भी इतने सारे लोगों के बीच?
लाख मना किया लेकिन वो बन्दा भी अपने आप में एक था, इस से पहले कि मैं रोना शुरू कर देती, मोह की मम्मी ने आकर उसे समझाया. वो उसे किसी काम के बहने ले गयीं तब मेरी जान में जान आई, मैंने मोह को कड़ी नज़रों से देखा जो हँसे जारही थी. उसके बाद मैं वहां नही रुकी, उसकी जिद से इस कदर घबरा गई कि मामा की तबियत का बहाना बनाकर जल्दी वहां से निकल आई. यहाँ तक की साड़ी पहने पहने ही घर आगई. मम्मी सो रही थीं. जल्दी जल्दी कपड़े बदले और तब जान में जान आई.
बाद में मोह ने बताया था कि उसका वो कजिन वापस आकर काफी देर मुझे पूछता रहा. मुझे बहुत हँसी आई.
आज भी वो दुर्गा पूजा याद आती है तो मुस्कुराए बिना नही रहती. पहली बार साड़ी पहना और फिर उस लड़के की जिद……मेरा बौखलाना, इतने लोग...उफ़
आज बड़ी शिद्दत से कोलकाता, अपनी दोस्त और दुर्गा पूजा को मिस कर रही हूँ. सोचती हूँ, काश मुहब्बतों और अपनाइयत की वो खुशबू हमारे हर शहर को वैसे ही अपनी आगोश में ले ले, जैसे मेरे उस शहर को लिए थी.जिसकी खुशबू में मेरा आज भी तं मन महका हुआ है....काश..