Monday, June 7, 2010

लिखना मुझे भी अच्छा लगता है लेकिन......


जवाब तो मुझे देना था इसलिए सोचा जिस तरह उसे पसंद है वैसे ही जवाब दूं।


किसी के ख़त या आजकी जुबान में कहूँ तो मेल इतना परेशां भी कर सकते हैं या यूं कहूँ कि उन में इतनी ताकत हो कि वो परेशान कर सकें, किसी को वाकई सोचने पर मजबूर कर सकें इस हद तक कि उसे अपना फैसला बदलने पर मजबूर कर दें


समझने में मुश्किल हो रही है ...


बस इतना बता दूँ कि उसे मेरे लिखने का अंदाज़ अच्छा लगता है वो कौन है , मैं उसका नाम नहीं लेना चाहती


मुझे याद है उसकी पहली मेल मेरी एक पोस्ट 'सैया मोहे रंग दे आज ऐसे' के बाद आई थी ईमानदारी से कहूँ तो पढने के बाद काफी इम्प्रेस हुई थी मैं उसके बाद तो जैसे ये सिलसिला ही चल पड़ा मेरी हर पोस्ट के बाद उसकी मेल मुझे मिलती थी


उसने कभी मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट नहीं दी मैंने एक बार उसे जवाब में लिखा था कि आप मेरे ब्लॉग पर कमेन्ट दें  तो मुझे अच्छा लगेगा लेकिन उसके बाद भी जब उसने कमेन्ट के बजाय मेल ही लिखा तो मैंने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया


उसका मेरी एक एक लाइन को इतने अछे तरीके से पढना और फिर लिखना मुझे अच्छा लगता था.(क्या करूँ, इंसान हूँ जो अपनी तारीफ़ का अजल से भूखा होता है)


उसके बाद हमेशा मुझे अपनी हर पोस्ट के बाद उसकी मेल मिलती रही मैं नहीं जानती उसे मेरी इमेल आईडी  कहाँ से मिली, बहरहाल उसने कभी मुझ से बात करने की कोशिश नहीं की मुझे उसकी ये बात भी अच्छी लगी.


लिखने का ये सफ़र बहुत खूबसूरत रहा।
   मुझे इतने सारे दोस्त मिले, पापा, भैया, बहनें और सहेलियां मिलीं .मैंने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा , कभी किसी की निजता को निशाना बनाने के बारे में नहीं सोचा , अगर किसी को मेरी इस बात पर यकीन न हो तो वो मेरे ब्लॉग के पन्ने पलट सकता है. 
हाँ, मैंने सच लिखा और बिना किसी डर  के लिखा, शायद यही मेरी गलती थी. इसकी सजा मुझे मिली, और इस कदर मिली की मुझे खुद को रोकना पड़ा, कभी न लिखने पर मजबूर होना पड़ा क्योंकि मेरी जिंदगी सिर्फ मेरी नहीं मेरे आस पास रहने वालों की भी है इसलिए मुझे ये करना ही पड़ा.
बहुत मुश्किल था ये फैसला, अपने आप को मेरी जगह रख कर देखिये, आप को जवाब मिल जायेगा.
खैर ये सब तो पुरानी बात है, मैं जानती हूँ बहुत सारे लोगों को मेरे इस फैसले से तकलीफ हुई थी, मैंने आप सबके कॉमेंट्स देखे हैं, सबने मुझे कितना याद किया, मैं जानती हूँ. लेकिन मैं उन चाहने वालों को क्या बताती , कैसे कहती की क्यों मैंने अचानक लिखना बंद कर दिया.इसीलिए मैंने सबको नज़र अंदाज़ करना शुरू कर दिया.
मैं इसके लिए माफ़ी चाहती हूँ.  फिर सभी को शायद अहसास हो गया होगा की मेरी कोई मजबूरी होगी. नहीं हुआ तो बस उन जनाब को, जिन्होंने मुझे मेल लिखना जारी रखा. 
उसका बार बार मुझसे लिखने की जिद करना जारी रहा, कभी कभी ख़ुशी होती थी की कोई मेरे लिखने को इस कदर पसंद करता है.
कितने महीने बीत गए, फिर मैंने उसकी मेल को पढना भी छोड़ दिया, लेकिन उसने मुझे लिखना नहीं छोड़ा, मुझे फुर्सत मिली और फिर से कुछ लिखने को बेचैन होने लगी. सबने मुझे दूसरा ब्लॉग लिखने की राय दी. इस बीच मैंने बहुत मजबूर होकर एक दो पोस्ट लिखी थी. जिसे सबने पसंद किया लेकिन मुझे फिर से सबने मना  किया, और मैंने दूसरा ब्लॉग शुरू किया. मुझे ख़ुशी थी की मेरा ये ब्लॉग भी सब को अच्छा लगा लेकिन पता नहीं क्यों,एक प्यास थी जो बुझती ही नहीं थी, फिर खुदको पीने से रोकने की कोशिश करती रही लेकिन...एक हफ्ता पहले की एक मेल मैंने पढ़ी, जिस में उसने बस इतन ही लिखा था...'लगता है रख्शंदा जी के लिखने की कपैसिटी ख़त्म हो चुकी है' ...पढ़कर अजीब सा लगा बहुत गुस्सा आया, बिना जाने , बिना किसी की मजबूरी समझे आप कैसे किसी को जान सकते हैं? कैसे किसी के बारे में राय बना सकते हैं?
जवाब लिखने को कई बार दिल चाहा लेकिन सोचती ही रह गयी, कोई न कोई मसरूफियत या यूं कहें की अपनी लापरवाही रास्ता रोक लेती थी.
लेकिन आज मैं आप से कहना चा्हती हूँ, आप जो कोई भी हैं, मुझे पढ़ते हैं, मुझे पसंद करते हैं, इस बात का बहुत बहुत शुक्रिया, लेकिन किसी को इतना भी पसंद मत करिए की उसकी मजबूरियां समझे बिना उस पर अपना गुस्सा ज़ाहिर कर दीजिये, लिखना मुझे भी अच्छा लगता है, इस बात का फख्र भी है की आप जैसे कई काबिल लोग मुझे इतना पसंद करते हैं, मेरा हौसला बढाते हैं लेकिन मैंने ख़ुशी से लिखना बंद नहीं किया, यकीन मानिए, गुस्सा, दुःख, अफ़सोस मुझे भी हुआ लेकिन इंसान कभी कभी बहुत मजबूर हो जाता है, उसके आस पास के लोग उसके पैरों की ज़ंजीर बन जाते हैं और वो उनको नज़र अंदाज़ नहीं कर सकता.
मैं वादा तो नहीं करती, लेकिन कोशिश करुँगी की कभी कभी आपकी ख्वाहिश पूरी कर सकूँ.
लेकिन, आपको भी ये वादा करना होगा की मेरी मजबूरी को समझेंगे.