Sunday, June 29, 2008

Some memories of my journey.....वो सफर ....और एक दोस्त का मिलना.. . ..


मेरे सभी पढने वालों की ये पुरजोर ख्वाहिश थी कि इस सफर के बारे में तफसील (डिटेल) से लिखूं. ख़ुद जाने से पहले मैं भी ये सोच कर बड़ी excited थी कि ब्लोगिंग की दुनिया में क़दम रखने के बाद ये मेरा पहला सफर था और अपने इस सफर का हर दिलकश लम्हा मैं उन लोगों के साथ बांटना चाहती थी जो मुझे इतनी दिलचस्पी के साथ पढ़ते हैं और कदम कदम पर मुझे रास्ता दिखाते हैं लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है ना कि हालात हमारी सोचों के बिल्कुल बरअक्स होते हैं और कभी कभी सब कुछ होते हुए भी दिल में वो ख्वाहिश ही नही रह जाती.
लेकिन ईमानदारी का तकाज़ा यही है कि हालात हमारी सोचों के मुताबिक हों या ना हों, हमारे हिस्से में खुशियों के सितारे हों या मायूसियों की घनघोर घटाएं, जो भी मुयस्सर हो वो अपने चाहने वालों के सामने रख दें. शिमला और मनाली का सफर भी कुछ ऐसा ही रहा. खुशियों ने कभी खुशबू बन कर तन मन को महका दिया लेकिन यही सफर ख़त्म होते होते अहसास हुआ कि खुशियों के महकते फूलों को अपने आँचल में समेटना इतना आसन भी नही होता, अकसर इन्हें लेने के लिए हाथ बढ़ाओ तो दुखों और अंदेशों के बेशुमार कांटे आपके हाथों को ज़ख्मी कर देते हैं.
जिंदगी क़दम-क़दम पर हैरान करती है.
मुझे तो इस जिंदगी ने इस कदर हैरान किया है कि अब तो आने वाले हर लम्हे से डर लगने लगा है. बचपन में एक गाना जब भी सुनती थी ,दिल को छू जाता था.लेकिन उसके अशआर समझ में नही आते थे…..
तुझ से नाराज़ नही जिंदगी , हैरान हूँ मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं…
लेकिन अब बहुत अच्छी तरह समझ में आगये हैं….
अजीब होते हैं ये शायर हजरात भी, जो हम दिल में सोचते हुए डरते हैं उसे इतनी आसानी से लफ्जों में ढाल लेते हैं कि हैरानी होती है. कभी कभी गुस्सा भी आता है…काम ही क्या है इनके पास…..दूसरों के चेहरों को पढ़ते हुए , आंखों के रास्ते सीधे दिल में उतर जाना, सारे राज़ जानना और लफ्जों की जादूगरी के सहारे दुनिया के सामने ले आना और खूब तारीफें बटोरना.
फिर ख़याल आता है,’अरे…वो भी तो इंसान ही होते हैं. जिंदगी उन्हें भी तो इम्तेहान में डालती होगी, उन्हें भी तो आजमाती होगी, ज़रूरी थोडी है की वो दूसरों के अहसासात को ही जुबां देते हों, ये भी तो हो सकता है ये उनके अपने दिलों के जज़्बात हों.
लेकिन फिर भी----लिखना ही है तो लिखने के लिए टॉपिक्स की कोई कमी थोड़े ही है, नेचर पर लिखें…समंदर की गहराइयाँ, पहाडों की बलंदियाँ, बदलते मौसम, खिलते मुरझाते फूल और कलियाँ….ये दिलों के अहसासात को लफ्जों में ढालना क्या ज़रूरी है?
बहरहाल बात शिमला की करूँ तो शिमला की बदहाली मैं पहले ही ब्यान कर चुकी हूँ. वहाँ जिस गेस्ट हाउस में हम ठहरे थे. वहां तो सारी सहूलतें मुयस्सर थीं लेकिन उन लोगों के लाख चाहने पर भी पानी की कमी की पोल बार बार खुल ही जाती थी.शिमला आते हुए जिन धुएँ और गुबार भरे मंज़र ने परेशान किया था, सुबह नमाज़ के बाद उसी शिमला के मंज़र इतने हसीं और दिलकश दिखायी दे रहे थे की बे अख्तियार बाहर सैर पर जाने को दिल मचल उठा था. ऐसे में बाबा की शिद्दत से याद आई थी, जिनके साथ सैर पर जाना मेरी हमेशा की आदत रही है. अब बाबा तो यहाँ मौजूद थे नही तो बहन की मिन्नत की, जिसके लिए सुबह जल्दी उठाना दुनिया सब से मुश्किल काम रहा है, सारे दिन की थकान के बाद इतनी खूबसूरत नींद की कुर्बानी मेरे लिए देना उसके लिए कितना मुश्किल था , इसका अहसास मुझे भी था, लेकिन क्या करती, ख़ुद मैं भी आदत से मजबूर थी. जाने को तो मैं अकेले भी जासकती थी लेकिन हम लड़कियों के हिस्से में जो ये अज़्ली पाबंदियां हैं, वो हमें क़दम क़दम पर दूसरों का मुहताज ही बनाती हैं और कुछ नही. बहरहाल बड़ी मिन्नतों के बाद एक दो दिन तो वो मेरे साथ सैर पर आगई. लेकिन तीसरे रोज़ उसने साफ़ इनकार कर दिया, जब कोई रास्ता नही मिला तो मैंने मामा की इजाज़त बड़ी मुश्किल से नींद में ही हासिल की और अकेले ही निकल पड़ी….
शिमला की खूबसूरती को महसूस करना हो तो सुबह को ही महसूस किया जा सकता है,ये मेरी निजी राय है, बस एक प्रॉब्लम जो सिर्फ़ शिमला की नही बल्कि हर जगह सुबह की सैर में सामने आती है, वो है कुत्तों का डर, मुझे तो वैसे भी कुत्तों से खौफ आता है.
दिल में दुआ करते हुए चली जारही थी की कहीं कोई कुत्ता सामने न आजाये लेकिन कभी कभी पता नही क्यों, खुदा से जो मांगो, वो देते उसका उल्टा ही हैं…उस रोज़ भी यही हुआ, मैं माल रोड पर walk करने के बजाये एक अलग रास्ते पर चल रही थी…क्यों कि यहाँ लोग बहुत कम आजा रहे थे…पता नही यही मेरी गलती थी या कुछ और…एकदम अचानक दो पहाडी कुत्ते गुर्राते हुए मेरे सामने आगये…मेरे मुंह से चीख निकल गई थी, तभी वो बस फ़रिश्ता बन कर मेरे सामने आ गया था.
पता नही उसने कैसे और किस तरह दो मिनट में उन कुत्तों को वहां से भगा दिया था और हँसते हुए मेरी तरफ़ देखा था, मुझे अपनी खौफज़दा शकल सोचकर बड़ी शर्मिंदगी हुयी थी. शायद उसे भी इस बात का अहसास हो गया था तभी मेरी शर्मिंदगी मिटाने के लिए उसने दूसरी बातें पूछना शुरू कर दी थीं.
मैं इस वाकये से इतना खौफज़दा थी की फौरन वापस जाना चाहती थी लेकिन उसने इतनी अच्छी तरह मुझे हिम्मत दी कि मैं कुछ देर के डर को भूल कर काफी देर तक walk करती रही थी.
वो कितना अच्छा था, इस बात का अहसास मुझे उसी रोज़ हो गया था. गेस्ट हाउस वापस जाते हुए मैं ना चाहते हुए भी उसके बारे में सोच रही थी…दिल में बस एक ही ख्याल आरहा था की एक दोस्त को ऐसा ही होना चाहिए……. To be continued..

Friday, June 27, 2008

Look .......I m back in my beautiful world

मिलना और बिछड़ जाना.....
जिंदगी के यही तो रंग हैं....























ये दिल भी कितनी अजीब शै है.रिश्ते बनाना और रिश्तों को सीने से लगा कर इतने करीब कर लेना कि थोडी सी जुदाई भी सूहान -ऐ-रूह लगने लगे,आस पास चाहे कितने ही खूबसूरत मनाजिर क्यों न बिखरे हों,कितने ही दिलचस्प लोगों से आप घिरे क्यों न हों, दिल बस उन्हें ही तलाश करता है जिन्हें वो अपने पास देखना चाहता है. है न एकदम पागल…

वैसे जुदाई का दौर शायद कुछ लंबा हो गया था. पता नही आप सब ने ऐसा महसूस किया या नही, कर भी नही सकते क्योंकि आप सब अपने और दोस्तों के साथ जो थे, तन्हाई मेरे हिस्से में आई थी. बहरहाल शुक्र है कि ये दौर बीत गया और मैं आप सब के बीच वापस आगई हूँ .

मनाली का सफर काफी यादगार रहा, शिमला में जिस कोफ्त का सामना करना पड़ा था ,मनाली ने उसको मिटा दिया.

खूबसूरती के जो रंग यहाँ बिखरे पड़े हैं, उन्हें इतनी आसानी से मिटाया नही जासकता.तरक्की की हवा यहाँ भी चली है लेकिन वो मनाली की दिलकश रंगों को धुंधला नही कर सकी है. लगातार होती बारिश ने ज़रूर परेशान किया लेकिन दूर तक बिखरे पहाडों के मंज़र में बरसती बारिशों ने धुंआ धुंआ मौसम को इतना ख्वाबनाक बना दिया था कि जी चाहता था कि बस मैं ख़ुद भी इसी मंज़र का एक हिस्सा बन जाऊं. आँखें बंद हों, बरसती बारिशें हों और बस….लम्हे यहीं ठहर जाएँ….न कोई आरजू रहे ना कोई जुस्तुजू…न कुछ पाने की ख्वाहिश हो न कुछ खो जाने का खौफ…

कई बार ख्याल आया ..काश मैं भी शायर होती तो शयद उन हसीन मनाजिर को लफ्जों के ज़रिये अपने साथ ले आती….सोचती हूँ अनुराग जी होते तो मनाली की सरी खूबसूरती अपनी नज्मों में समेट कर बड़ी आसानी से अपने साथ ले आते…मेरी ऐसी किस्मत कहाँ…

फिर भी इस सफर ने बहुत कुछ दिया है जो मेरी जिंदगी के साथ रहेगा. एक दोस्त का मिलना और फिर यूँ बिछड़ जाना कि चाहूँ भी तो जिंदगी में दोबारा उसकी रफाकत(साथ) हासिल नही कर सकती.

शायद कुछ रिश्ते होते ही ऐसे हैं कि उन्हें एक मोड़ पर ख़त्म कर देना ही बेहतर होता है…इस से पहले की वो बेतहाशा दर्द देने के बाएस(वजह) बन जायें.

फिर भी बिछड़ जाने का दर्द हर दर्द से ज़्यादा तकलीफ देह होता है. ये शायद वही समझ सकता है जो इस दर्द से गुज़रा हो.

कभी कभी अजीब सी झुंझलाहट होती है, रिश्ते ऐसे क्यों होते हैं? जब उनका अंजाम बिछड़ना हो तो वो रिश्ते बनते क्यों हैं? छोडिये…पता नही मैं कहाँ आगई…

ये तो जिंदगी है न, जाने ऐसे कितने मोड़ इस जिंदगी में आते हैं और आते रहेंगे.

खुशी तो बस ये है की एक रिश्ता बिछड़ भी गया तो इतने सारे खूबसूरत रिश्ते मेरी राह भी तो देख रहे थे…जनाब आप और कौन?

बहुत बहुत अच्छा लग रहा है आप सब के दरमियाँ फिर से आकर….दुआ यही है खुदा से की इन रिश्तों से बिछड़ने का करब जिंदगी में कभी न दे...(अमीन)

Saturday, June 14, 2008

meeeeeee........in Shimla



ये है शिमला मेरी जान.....



शिमला आये हुए लगभग एक हफ्ता हो चुका है , यहाँ आते हुए खुशी का जो अहसास था , यहाँ आकार मायूसी में बदल चुका ही. सच कहूँ तो शिमला आकर एक अजीब सा दुख और घुटन सी हो रही है.
कितनी अजीब बात है कि जो शहर कभी अपनी खूबसूरती में अपनी मिस्सल आप था वो आज विकास की बदसूरती की जीती जगती मिसाल बन चुका है.लोग यहाँ मौसम की दिलकशी , माहौल की ताजगी और सुकून की तलाश में दूर दूर से आते हैं लेकिन सर्द धुंध की जगह प्रदूषण का कसैला धुआं, सड़कों पर गाड़ियों का कभी खत्म न होने वाला सिलसिला और जगह जगह जमा ट्रैफिक आपको पल भर में और ज्यादा घुटन का शिकार बना देती ही.
मैं पहले भी दो बार यहाँ आचुकी हूँ लेकिन जितनी मायूसी इस बार हुयी, कभी नही हुयी थी.
माल रोड तो मछली बाज़ार से भी बुरी हालत पेश करता है, बाकी की खूबसूरत जगहें भी भीड़ का बुरी तरह शिकार नज़र आती हैं. लेकिन यहीं बस होता तब भी गनीमत था. सब से बड़ा शाप जो इस शहर को मिला है वो है पानी की बेहद कमी , बड़े बड़े होटल भी पानी की कमी से बुरी तरह जूझ रहे हैं, बाकी की बात ही छोडिये.

कितनी अजीब बात है ना कि जिस विकास कि बदसूरती शिमला में हर तरफ़ बिखरी पड़ी है, वाही विकास उसकी पानी जैसी बेसिक ज़रूरत तक पूरा नही कर पाया है. हम बड़े फख्र से ख़ुद के महा शक्ति बनने के ख्वाब देखते हैं. अरे भई, पहले अपनी बुनियादी ज़रूरतें तो पूरी कर लें , शक्ति महा शक्ति बनने की बातें बाद में करते रहेंगे.
एक प्रदेश की राजधानी कि ये हालत है तो सोचिये बाकी जगह क्या सूरत-ऐ-हाल होगी .आज़ादी के इतने सालों के बाद भी हम अपने नागरिकों को पीने का पानी तक मुहैय्या न कर सके,बड़े शर्म की बात है.
बहरहाल ये तो हाल हुआ शिमला शहर का, अपनी बात करूँ तो आप सभी मुझे शिद्दत से याद आते हैं, अपना शहर अपना घर बहुत बहुत याद आता है.
हाँ , याद आया, इस शहर में मुझे एक दोस्त मिला है.एक बात जो यहाँ अच्छी हुयी वो बस यही है. एक अजनबी शहर में इतने प्यारे दोस्त का मिलना बड़ा खुशगवार अहसास है. हम कैसे मिले ,ये भी बड़ी दिलचस्प घटना है. अगली पोस्ट में लिखूंगी. लेकिन सच कहूँ तो वो बहुत अच्छा इंसान है..........

Wednesday, June 4, 2008

WILL MISS MY FRIENDS....TAKE CARE


एक छोटी सी खुशी आप सभी के नाम -




अभी कुछ महीनों पहले, कहीं भी जाते हुए बस दो चार दोस्तों को इत्तेला देना ज़रूरी समझती थी. और आज लगता है एक पूरी दुनिया है जो मेरी अपनी है. छुट्टियां हैं, फमिली के साथ शिमला और मनाली जारही हूँ , लेकिन पता नही क्यों खुशी के साथ एक अजीब सा दुःख भी शामिल हो गया है, इतने दिनों तक अपने दोस्तों से दूर रहने का. इतनी जल्दी आप सब मेरी जिंदगी का इतना खूबसूरत हिस्सा बन जायेंगे , कभी सोचा भी नही था, अब जारही हूँ तो अपनी इस दुनिया के लोगों को बताना भी ज़रूरी था सो सारी मसरूफियत के बीच बस ये चंद लाईनें लिख रही हूँ. मुझे उम्मीद है आप सभी अपना पूरा ख्याल रखेंगे और मेरा इंतज़ार भी.... एक छोटी सी खुशी आप सभी से बांटना चाहती हूँ. इस महीने की सखी मग्जीन में मेरी एक कहानी 'ठहरी शाम की थकन' प्रकाशित हुयी है. ये नेट पर भी उपलब्ध है. इस मग्जीन का लिंक है..http://in.jagran.yahoo.com/sakhi/ और कहानी का लिंक पेज है-http://in.jagran.yahoo.com/sakhi/?page=article&articleid=4343&category=5&edition=२००८०६ उम्मीद यही है की आप सब इसे पढ़ कर मुझे ज़रूर बताएँगे की मेरी कहानी कैसी लगी...आप का हौसला ही मेरे लिए सब कुछ है. प्लीज़ अपना ख्याल रखियेगा और इसी तरह अच्छा बहुत अच्छा लिखते रहिएगा. वापसी पर आप सब की बहुत सारी पोस्ट पढने को मिले...
मेरी बहुत सारी दुआएं आप सभी के साथ है. आमीन.

Sunday, June 1, 2008

a good news here.... I.P.L is over. एक खुशखबरी सुनो.....आई.पी.एल खत्म हो गया.


अपनी पिछली कई पोस्टों पर पढ़ने वालों के ज्यादा तर कमेंटएक संजीदा पोस्टपढ़ने को मिलीं.अच्छा लगा कि हम भी संजीदा लोगों की कतार (लाइन ) में शामिल थोडे से इंटेललैक्चुअल हैं.
लेकिन आज मूड काफी अच्छा है.सुबह से क्या, कल शाम से ही मूड बडा हल्का हल्का सा महसूस हो रहा था.काफी देर तक समझ में ही नही आया कि माजरा क्या है, मतलब कि फजाएं इतनी खूबसूरत क्यों महसूस हो रही हैं. गर्मी में भी फरहत बख्श सी ठंडक क्यों महसूस हो रही है? तब अचानक याद आयाओह्ह अभी रात ही तो इतना रिलैक्स हो कर सोये थे.
पर
क्यों? अरे भाई , कल आई.पी.एल खत्म हो गया…॥
यस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स
ये
क्या----आप मे से कोई अपनी जगह से खुशी के मारे उछला ही नही. अजीब हैं आप सब भी.
अच्छा
अच्छा, अब समझ में आया. उछलने का प्रोग्राम आप सब पहले ही निपटा चुके हैं.
ठीक
है , कोई बात नही. उछलने के लिए हम अकेले ही काफी हैं.
चलिए मौका भी है, दस्तूर भी तो क्यों अपनी खुशियाँ आप लोगों के साथ बाँट ली जाएं
महीनों से क्रिकेट के इस मुरब्बे ने दिमाग का जैसे अचार बना डाला. सारा देश सारा मीडिया सारे लोग बस इसी मुरब्बे में जी जान से घुल मिल गए, बड़े फख्र से बताया जारहा था कि इस मुरब्बे की सफलता ने टीवी की टी आर पी में सास बहु सीरियल को भी पीछे छोड़ दिया ही. अब हम जैसे लोग सिर्फ़ बगलें झांकते रह जायेंगे, क्योंकि हम कुएँ के मेंढक सास बहु सीरियल के दीवाने हुए ना ही क्रिकेट के इस मुरब्बे के. अब हम तो पिछडे ही कहलायेंगे ना.
आई.पी.एल खत्म हो गया, शेन वॉर्न की टीम ने धोनी की टीम को हरा कर करोड़ ८० लाख का इनाम और सोने हीरे जड़ी अब तक की सब से मंहगी ट्राफी जीत ली, रनर अप रही टीम को करोड़ ४० लाख मिले
सुबह काम करने वाला लड़का हम से इस बारे में जानकारी लेने लगा, हम ने भी अपनी जानकारियाँ उस पर उंडेल डालीं. इनामी रशी सुनकर उस बेचारे की तो आँखें ऐसे फैलीं कि हम तो डर गए कि अब ये वापस अपनी जगह भी पायेंगी या नही. लेकिन शुक्र है, ही गयीं. आंखों को बड़ी मुश्किल से समेट कर वो बड़े राज्दाराना लहजे में कहने लगा, ‘ दीदी इसका मतलब हमारा देश अब अमीर हो गया है’. मैं हैरत से चार दिन के उस छोकरे को देखने लगी जो इतनी पते की बात मिनट में समझ गया और एक हम हैं कि ख़ुद को इतना काबिल समझने की भूल में मुब्तेला, इतनी बड़ी बात नही समझ पाये
सचमुच, लोग बेकार में मंहगाई , मंहगाई का शोर मचा रहे हैं, बेवकूफ , अहमक किसान खुदकशी कर रहे हैं.
अरे अहमको, सीख इस लड़के से लो, जो मिनट में देश की आर्थिक स्थिति का आंकलन कर के चला गया. अब काहे का रोना.
हमारा
देश एक झटके में करोड़ों ,अरबों रूपये बाँट रहा है, नाम के अमीर देशों के खिलाडी राल टपकाते हुए भागे भागे हमारी शरण में रहे हैं. अब ये हमारी मरजी की किस को कितने में खरीदते हैं.
रूपयों
की बरसात हो चुकी है. सोने के मुकुट बांटे जा चुके हैं, सारे खिलाडी माला माल हो चुके हैं. देश के भी , विदेशों के भी. माल बाँट चुके हैं. दर्शकों का मनोरंजन हो चुका है, दिन रात चौके छक्के की इतनी बारिश देखने को मिली है कि अब किसी चौके और छक्के की ख्वाहिश दिल में नही रही.
अर्रे
हाँ क्रिकेट का भी तो भला हुआ हैक्या
रुकिए
, थोड़ा सोचने दीजिये, हाँ हुआ है भला. कई नए खिलाडी मिले हैं देश को,
कौन?
अरे
भाई, यूसुफ पठान और……औरशेन वाटसनसॉरी, ये तो आस्ट्रेलियन है. और भी हैं
सोच
कर अगली बार लिखेंगे.
कुछ बेचारे खिलाडियों को इस महा कुम्भ ने नाकारा घोषित कर दिया, क्या हुआ जो वो कल तक महान थे, क्या हुआ जो उन्होंने दसियों साल से देश के लिए दिन रात एक कर डाला, इस मुरब्बे में वो घुल ही नही पाये तो काहे के महान.
जनाब गांगुली , द्रविड़ और सचिन जी, पहले आप लोग ख़ुद को मुरब्बे में मिक्स होने के काबिल बनाइये तभी आप महान कहलायेंगे. क्योंकि ज़माना तो इसी मुरब्बे का होने वाला है.
हम
जैसे लोग लाख खुशी मनाएं. क्या फर्क पड़ता है.
चलिए
, कोई बात नही , कुछ दिन खुश होने में क्या बुराई हैएक शेर जिसके शायर….सॉरी शायरा हम ख़ुद हैंमुलाहजा फरमाइये……..... हमको मालूम है कि अगले साल
लौट
कर आओगे दुबारा तुम
फिर
भी फ़र्याद है हमारी यही,
लौट
के आओ तुम, खुदा करे




ताली
प्लीज़ .............