मेरे सभी पढने वालों की ये पुरजोर ख्वाहिश थी कि इस सफर के बारे में तफसील (डिटेल) से लिखूं. ख़ुद जाने से पहले मैं भी ये सोच कर बड़ी excited थी कि ब्लोगिंग की दुनिया में क़दम रखने के बाद ये मेरा पहला सफर था और अपने इस सफर का हर दिलकश लम्हा मैं उन लोगों के साथ बांटना चाहती थी जो मुझे इतनी दिलचस्पी के साथ पढ़ते हैं और कदम कदम पर मुझे रास्ता दिखाते हैं लेकिन कभी कभी ऐसा हो जाता है ना कि हालात हमारी सोचों के बिल्कुल बरअक्स होते हैं और कभी कभी सब कुछ होते हुए भी दिल में वो ख्वाहिश ही नही रह जाती.
लेकिन ईमानदारी का तकाज़ा यही है कि हालात हमारी सोचों के मुताबिक हों या ना हों, हमारे हिस्से में खुशियों के सितारे हों या मायूसियों की घनघोर घटाएं, जो भी मुयस्सर हो वो अपने चाहने वालों के सामने रख दें. शिमला और मनाली का सफर भी कुछ ऐसा ही रहा. खुशियों ने कभी खुशबू बन कर तन मन को महका दिया लेकिन यही सफर ख़त्म होते होते अहसास हुआ कि खुशियों के महकते फूलों को अपने आँचल में समेटना इतना आसन भी नही होता, अकसर इन्हें लेने के लिए हाथ बढ़ाओ तो दुखों और अंदेशों के बेशुमार कांटे आपके हाथों को ज़ख्मी कर देते हैं.
जिंदगी क़दम-क़दम पर हैरान करती है.
मुझे तो इस जिंदगी ने इस कदर हैरान किया है कि अब तो आने वाले हर लम्हे से डर लगने लगा है. बचपन में एक गाना जब भी सुनती थी ,दिल को छू जाता था.लेकिन उसके अशआर समझ में नही आते थे…..
तुझ से नाराज़ नही जिंदगी , हैरान हूँ मैं
तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं…
लेकिन अब बहुत अच्छी तरह समझ में आगये हैं….तेरे मासूम सवालों से परेशान हूँ मैं…
अजीब होते हैं ये शायर हजरात भी, जो हम दिल में सोचते हुए डरते हैं उसे इतनी आसानी से लफ्जों में ढाल लेते हैं कि हैरानी होती है. कभी कभी गुस्सा भी आता है…काम ही क्या है इनके पास…..दूसरों के चेहरों को पढ़ते हुए , आंखों के रास्ते सीधे दिल में उतर जाना, सारे राज़ जानना और लफ्जों की जादूगरी के सहारे दुनिया के सामने ले आना और खूब तारीफें बटोरना.
फिर ख़याल आता है,’अरे…वो भी तो इंसान ही होते हैं. जिंदगी उन्हें भी तो इम्तेहान में डालती होगी, उन्हें भी तो आजमाती होगी, ज़रूरी थोडी है की वो दूसरों के अहसासात को ही जुबां देते हों, ये भी तो हो सकता है ये उनके अपने दिलों के जज़्बात हों.
लेकिन फिर भी----लिखना ही है तो लिखने के लिए टॉपिक्स की कोई कमी थोड़े ही है, नेचर पर लिखें…समंदर की गहराइयाँ, पहाडों की बलंदियाँ, बदलते मौसम, खिलते मुरझाते फूल और कलियाँ….ये दिलों के अहसासात को लफ्जों में ढालना क्या ज़रूरी है?
बहरहाल बात शिमला की करूँ तो शिमला की बदहाली मैं पहले ही ब्यान कर चुकी हूँ. वहाँ जिस गेस्ट हाउस में हम ठहरे थे. वहां तो सारी सहूलतें मुयस्सर थीं लेकिन उन लोगों के लाख चाहने पर भी पानी की कमी की पोल बार बार खुल ही जाती थी.शिमला आते हुए जिन धुएँ और गुबार भरे मंज़र ने परेशान किया था, सुबह नमाज़ के बाद उसी शिमला के मंज़र इतने हसीं और दिलकश दिखायी दे रहे थे की बे अख्तियार बाहर सैर पर जाने को दिल मचल उठा था. ऐसे में बाबा की शिद्दत से याद आई थी, जिनके साथ सैर पर जाना मेरी हमेशा की आदत रही है. अब बाबा तो यहाँ मौजूद थे नही तो बहन की मिन्नत की, जिसके लिए सुबह जल्दी उठाना दुनिया सब से मुश्किल काम रहा है, सारे दिन की थकान के बाद इतनी खूबसूरत नींद की कुर्बानी मेरे लिए देना उसके लिए कितना मुश्किल था , इसका अहसास मुझे भी था, लेकिन क्या करती, ख़ुद मैं भी आदत से मजबूर थी. जाने को तो मैं अकेले भी जासकती थी लेकिन हम लड़कियों के हिस्से में जो ये अज़्ली पाबंदियां हैं, वो हमें क़दम क़दम पर दूसरों का मुहताज ही बनाती हैं और कुछ नही. बहरहाल बड़ी मिन्नतों के बाद एक दो दिन तो वो मेरे साथ सैर पर आगई. लेकिन तीसरे रोज़ उसने साफ़ इनकार कर दिया, जब कोई रास्ता नही मिला तो मैंने मामा की इजाज़त बड़ी मुश्किल से नींद में ही हासिल की और अकेले ही निकल पड़ी….
शिमला की खूबसूरती को महसूस करना हो तो सुबह को ही महसूस किया जा सकता है,ये मेरी निजी राय है, बस एक प्रॉब्लम जो सिर्फ़ शिमला की नही बल्कि हर जगह सुबह की सैर में सामने आती है, वो है कुत्तों का डर, मुझे तो वैसे भी कुत्तों से खौफ आता है. दिल में दुआ करते हुए चली जारही थी की कहीं कोई कुत्ता सामने न आजाये लेकिन कभी कभी पता नही क्यों, खुदा से जो मांगो, वो देते उसका उल्टा ही हैं…उस रोज़ भी यही हुआ, मैं माल रोड पर walk करने के बजाये एक अलग रास्ते पर चल रही थी…क्यों कि यहाँ लोग बहुत कम आजा रहे थे…पता नही यही मेरी गलती थी या कुछ और…एकदम अचानक दो पहाडी कुत्ते गुर्राते हुए मेरे सामने आगये…मेरे मुंह से चीख निकल गई थी, तभी वो बस फ़रिश्ता बन कर मेरे सामने आ गया था.
पता नही उसने कैसे और किस तरह दो मिनट में उन कुत्तों को वहां से भगा दिया था और हँसते हुए मेरी तरफ़ देखा था, मुझे अपनी खौफज़दा शकल सोचकर बड़ी शर्मिंदगी हुयी थी. शायद उसे भी इस बात का अहसास हो गया था तभी मेरी शर्मिंदगी मिटाने के लिए उसने दूसरी बातें पूछना शुरू कर दी थीं.
मैं इस वाकये से इतना खौफज़दा थी की फौरन वापस जाना चाहती थी लेकिन उसने इतनी अच्छी तरह मुझे हिम्मत दी कि मैं कुछ देर के डर को भूल कर काफी देर तक walk करती रही थी.
वो कितना अच्छा था, इस बात का अहसास मुझे उसी रोज़ हो गया था. गेस्ट हाउस वापस जाते हुए मैं ना चाहते हुए भी उसके बारे में सोच रही थी…दिल में बस एक ही ख्याल आरहा था की एक दोस्त को ऐसा ही होना चाहिए……. To be continued..