Thursday, April 17, 2008

सारे इम्तेहान हमारे लिए क्यों?


"आज कालेज मत जाना",


माँ जब भी ये बात मुझ से कहती है,दिल एक अनजाने डर से लरज़ जाताहै,कई बार सोचती हूँ,साफ मना कर दूँ पर माँ के आंसू देखे नही जाते सोखामोशी से एक और इम्तेहान के लिए खुद को तैयार करने लगती हूँ, वोइम्तेहान,जिसका नतीजा मुझे पहले से मालूम है

घर की सफ़ाई कर के उसे आईने कि तरह चमका देना है,फिर नहा करअपना सब से अच्छा ड्रेस पहेनकर चेहरे पर लीपापोती करके ख़ुद को नही ,आने वालों को ये दिखाना है कि मैं सुन्दर हूँ,हो सके तो मुझे स्वीकार कर लो लड़के वाले आते हैं, माँ ने चाय के साथ ढेर सारी चीज़ें तैयार कर के रखी हैं,माँ पापा आने वालों का आगे बिछ बिछ जाते हैं,थोडी देर बाद माँ मेरे पास आती हैं,ये इस बात का इशारा है कि अब मुझे उनके सामने पेश होना है,चाय की ट्राली लिए में ड्राइंग रूम में ऐसे आती हूँ जैसे कुर्बानी की बकरी कुर्बान्गाह में लायी जातीहै।

आने वालों की नज़र बस मुझ पर है,लड़के की माँ और बहनें उठ कर मेरे पास आती हैं,उनके लहजे तो मीठे होते हैं पर निगाहें एक दुसरे से बड़ी खामोशी से बातें करती हैं,निगाहों से बातें करना भी तो एक आर्ट है,ये आर्ट में पहले हैरानी से देखती थी,पर समझ नही पाती थी पर अब बड़ी आसानी से ये खामोश बातचीत मेरी समझ में आजाती है,जैसे लड़के की बहन आँख के इशारे से कहेगी,मामा ,रंग गोरा नही है,लड़का पहले आंखों से postmortam करेगा और करने के बाद इस नतीजे पर पहुंचेगा है कि इसकी तो height कम है।

,माँ पापा लपक लपक कर प्लेटें भर भर कर उन्हें पेश करते हैं,माँ बताती है कि हमारी स्नेहा गुणों की खानहै,M.S.C कर के कालेज में पढाती है,खाना स्वादिष्ट बनती है आदि , आदि,, मुझे हंसी आती है,हर बार बेचारी माँ मेरे गुणों का बखान करती है पर कभी इनका फायेदा नही होता ,पर माँ को कौन समझाए,,.कभी तो लड़का अकेले में मुझ से बात करना चाहता है कभी वो भी नही,अकेले में भी वो जो चाहे,जैसे चाहे सवाल पूछ सकता है,लड़की काकाम है सुनना और जवाब देना,सवाल करने की उसको इजाज़त नही है।

ड्रामा खत्म होता है,लड़के वाले गले तक खा पीकर रटा रटाया जवाब दे कर विदा लेते हैं’.बहेन जी आप लोगों से मिल कर बड़ा अच्छा लगा,माँ और पापा बड़ी हसरत से वो जवाब सुनना चाहते हैं जो उनके मन में तूफान मचाये हुए है पर मुंह से कैसे कहें,,लड़के वाले भी समझ जाते हैं सो बड़ी चालाकी से जवाब दे जाते हैंबाकी फैसला तो भाईसाहब हम घर पर सलाह मशवरे के बाद जैसा होगा, आपको फोन कर के बता देंगे,माँ पापा के मुंह लटक जाते हैं ,,जानते हैं वो फोन कभी नही आएगाफिर भी गेट तक बड़ी उम्मीद से रुखसत करने जाते हैं ,

एक ज़हरीली हंसी मेरे लबों पर ठहर जाती है और मैं कपडे बदलने अपने कमरे में वापस चली आती हूँ. बहुतकोशिश करती हूँ कि तनाव मुझे छू सके,ये सब तो अब आदत बन गयी है पर पता नही क्यों,कभी सफल नही होपाती. अभी तो जाने ऐसे कितने इम्तेहान और देने हैं,सफलता के इंतज़ार में,पता नही कब, किस दिन वो कोईतो होगा जो मुझे क़बूल कर के माँ पापा के घर का एक बोझ काम कर दे क्योंकि अभी दो भारी सिलें और हैं उनकेसीने पर.तब तक मुझे सब्र का कड़वा घूँट पीते जाना है।

माँ मेरी मानसिक हालत अच्छी तरह तो नही, पर कुछ हद तक समझती है.इसीलिए कभी कभी बडे मुजरिमाना अंदाज़ में कहती हैबेटी ओरत को हर कदम पर इम्तेहान देने पड़ते हैं,खुदको मज़बूत बनाना पड़ता है।

ठीक ही तो कहती है माँजिसकी जिंदगी का हर लम्हा इम्तेहान हो उसे मज़बूत तो होना चाहिए ना

कभी कभी सोचती हूँ,क्यों सारे इम्तेहान हमारे लिए हैं,मर्दों के लिए क्यों नही?

लड़का कैसी भी शकल का क्यों हो,ये कह कर नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है कि लड़के की सूरत थोडी देखी जाती है,उसकी तो काबलियत,तनख्वाह,घर बार देखा जाता है मतलब साफ है कि वो खरीदी हुयी दासी को कैसे रखेगा.

लेकिन लड़की सुन्दर हो तो उसकी कीमत उसे मेरी तरह चुकानी पड़ती है क्योंकि उपभोग की वस्तु का सुंदर होना बेहद ज़रूरी है.

सोचो तो जिंदगी का हर पल इम्तेहान जैसा ही तो हैघर से निकलो तो हजारों गन्दी हवस भरी निगाहों से खुद कोबचाते हुए सुरक्षित घर पहुँचना भी तो एक इम्तेहान हैलड़की का चरित्र ही उसका गहना है,खानदान की इज्ज़त तुम्हारे हाथ है,इसे संभाल कर रखना...........कितना बडा बोझ एक लड़की के कंधों पर ये कह कर लाद दिया जाता है.लड़का कुछ भी करता फीरेअरे उसका क्या,वो तो लड़का है,उसका कुछ नही बिगडेगा,,,,,,छीकैसा दोगला समाज है ये। वो तो लड़का है,कहकर कितनी बड़ी छूट दे दी जाती है लड़कों को,और किरदार एक लड़की का जेवर है,कह कर कितनी भारी ज़ंजीर डाल दी जाती है एक लड़की पैरों में,मतलब ये कि एक को खुली छूट तो दूसरे की जिंदगी का मकसद है उस तथा कथित इज्ज़त की पहरेदारी.तभी तो जब एक परुष किसी ओरत का बलात्कार करता है तो कानून की निगाहों में भले ही वो दोषी हो,समाज उसे गुनाहगार नही मानता।

गुनाहगार तो वो लड़की है जिसको समाज ने इज्ज़त की गठरी देकर उसकी हिफाज़त की ज़िम्मेदारी सौंपी थी पर वो उसकी रक्षा नही कर सकी.अब इस गुनाह की कीमत तो उसे चुकानी पड़ेगी

24 comments:

Abhishek Ojha said...

काफ़ी अच्छा और विचलित करने वाला पोस्ट है ... मैं ऐसे हर पोस्ट में यही कहता हूँ कि ... मानसिकता बदल रही है... और जब मानसिकता इतनी जटिल हो, पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलती आई हो तो इतनी आसानी से नहीं बदलती... जरुरत है गलतियों से लड़ने की... माता-पिता को मना करने पर दुःख होता है तो उन्हें समझाया भी तो जा सकता है... खैर कहना बहुत आसन होता है, जैसा की आपने कहा है उस हिसाब से लड़को के लिए तो सब कुछ आसान है.

फिलहाल कुछ सुझाव और... कई सारी छोटी-छोटी गलतियाँ हैं... एक बार पोस्ट करने से पहले चेक कर लिया कीजिये... जैसे गुड कि जगह गुण होना चाहिए और फयेदा कि जगह फायदा... इत्यादी.

Rajesh Roshan said...

अच्छा लिखा है लेकिन आप थोडी भावुक हो गई. रही बात लड़कियों के बोझ की तो आप अपने को बोझ मत समझिये, आपके माता पिता भी आपको नही समझेंगे समाज भी नही समझेगा. और अगर समाज समझता है तो समझने दीजिये इससे आपकी सेहत पर फर्क नही पड़ना चाहिये

rakhshanda said...

thanks Abhishek,main aapki baato ko yaad rakhungi

rakhshanda said...

@rajesh...Rajesh ji...yahi baat maine apni dost ko samjhane ki koshish ki thi par shayad uski peeda(pain)mere aor aapke samjhne se badi hai.

Anonymous said...

बिल्कुल सही आपने लिखा है पर आज हर क्षेत्र में लडकियां आगे निकल रहीं हैं आप अपने को बोझ मत समझिए

सुजाता said...

आपकी यह चिंतन मनन की प्रक्रिया जारी रहे !अपनी बात प्रभावी ढंग से कह पा रही हैं आप !

Pushpendra Srivastava said...

aap kuch logo ke liye sare males ko galat kese keh sakti hai, kya aap ke papa ki soch bhi yesee hi hai jasi ki aap ne males ke liye liki hai, mai samjta hu nahi,,,, ye jo bhi aap likhti hai aap ki soch hai ya lekhnee? mai samj nahi paya,, muche lagta hai aap ladki ka jam paa ker kuch jayda hi naraj hai, apne khuda se,, but yesa hai nahii,, aap kisse paresaan hai, khud se ya system se, muche lagta hai aap khud se paresaan hai,

Sanjeet Tripathi said...

सही!!

इसे देखें

बाहर न निकले बेटियां लेकिन बेटे?

स्वप्नदर्शी said...

ये लडकी जो भी है, अगर पढी-लिखी है तो, अपना इस तरह का अपमान क्यो सहती है?
नही पढी-लिखी है, तब भी अगर दो हाथ सलामत है, तो क्यो इतना अपमान झेलती है?

क़ह दो अपने मा-बाप से कि इस तरह का तमाशा करेंगे तो घर छोड दोगी.

और विवाह जीवन का मकसद और अंतिम परिणीती नही है, तभी करना चाहिये, जब वाकई लगे कि कोई ऐसा इंसान मिल गया है, जिसके साथ जीवन रचनात्मक तरीके से, सम्मान से, और प्यार से बांटा जा सकता है.

स्वप्नदर्शी said...

"लड़का कैसी भी शकल का क्यों न हो,ये कह कर नज़र अंदाज़ कर दिया जाता है कि लड़के की सूरत थोडी देखी जाती है,उसकी तो काबलियत,तनख्वाह,घर बार देखा जाता है मतलब साफ है कि वो खरीदी हुयी दासी को कैसे रखेगा".

खुद वस्तु न बने, लडको की ही तरह अपनी शिक्षा पर ध्यान दे, मेहनत करें और काबिलियत कमाये. और दासी न बने, दोस्त बने, सह्भागीनी बने पति की, और खुश नुमा जीवन जिये. कम से कम दासी न बनने की आज़ादी आपको है.
और ज़रूर सवाल करे, डेट करे, अपनी पसन्द न पसन्द से वाकिफ कराये, दूसरे की जाने. आपको अपने मन-माफिक जीवन साथी चुनने का अधिकार है, उतना ही जितना किसी पुरुष को.
विवाह का निर्नय लेने से पहले, व्यक्ति को अचछी तरह से पहचाने.

डॉ.रूपेश श्रीवास्तव(Dr.Rupesh Shrivastava) said...

आपा,आपने सही कह दिया कि शायद आपकी दोस्त की पीड़ा हमारे आपके समझ पाने से ज्यादा बड़ी है ऐसे में बस इतना ही कि अगर हम बदलाव नहीं ला पा रहे हैं तो सब ईश्वर के ऊपर छोड़ कर मूकदर्शक बने रहना ही सही है,उसकी मर्जी जैसा चाहे रखे हमें......
अभिषेक जी से निवेदन कि अगर वर्तनियों की गलतियां नज़रअंदाज़ करके भाव को देखें तो उत्तम होगा वैसे उनका कहना भी आपके हित में ही है।

रवि रावत "ऋषि" said...

Rakshanda ji, maine aapka blog padha or is baat ka bahut dukh hai ki hum 21 century main bhi nahin badle hain. bhale hi metro citis main kuch tathakathit badlav aaya ho lekin villages main ab bhi haalaat nazuk hain. ye baat bhi sahi hai ki article likhne se parivartan nahin aa sakte, humen apne gharon se parivartan ki mshaal jalani hogi. haan, lekin article se hum ek dusre ke dilon main zaroor chingari bhadka sakte hain... ummid hai ki aap yun hi likhti rahengin...
Rishi Rawat, Mumbai.
my blog is : http://yejeevanhai.blogspot.com

राज भाटिय़ा said...

जब एक परुष किसी ओरत का बलात्कार करता है तो कानून की निगाहों में भले ही वो दोषी हो,समाज उसे गुनाहगार नही मानता।
कोन कहता हे समाज उसे दोषी नही मानता ? मानता ही नहीं उस पर थुकता भी हे,ओर मेने लडकियो का इतना बुरा हाल तो कही नही देखा,मेरे दादा की ,मेरे पिता जी की, ओर मेरी शादी भी भारतिया ढग से हुई, कही कोई मुश्किल नही,हा अगर कही ऎसा एक आध जगह पर होता होगा तो सारी कोम , या सारे मर्द, या फ़िर सारा जमाना खराब नही, आप लोग इतना भी आगे मत निकलो की वपिस आना मुस्किल हो,ओर वपसि का कोई रास्ता भी ना हो,मेने स्र्त्रियो की आजादी को बहुत नजदीक से देखा ही,हम जेसे हे वेसे ही ठीक हे,

ghughutibasuti said...

स्वप्नदर्शी जी से बहुत सीमा तक सहमत हूँ । यह शर्मनाक प्रकरण रोकने के लिए किसी ना किसी को कुछ आँसू तो बहाने ही पड़ेंगे । यदि माँ के आँसू नहीं देख सकतीं , खुद को बोझ मानती हो तो यदि विवाह हो भी गया तो कल सास के आँसू, ससुर के आँसू, पति के आँसू, बच्चों के आँसू , ये सब आपको जीने नहीं देंगे । समाज व परिवार हर समय कोई ना कोई दबाव डालता ही रहेगा । यह दबाव उस ही पर पड़ेगा जो दब जाने को तैयार बैठा हो । किसी अन्य को खुशी देना बहुत अच्छा है परन्तु तब तक ही जब वह आपके निज को मार कर न दी जाए ।
आप नेट पर लिख सकती हैं तो नेट पर विवाह विग्यापन भी दे सकती हैं । यदि इस तरह से लड़के वालों को दिखाकर विवाह ही करना है तो इसे ही एक चुनौति मान अपने आप को, अपने व्यक्तित्व, अपने रूप को निखारें । जब तरह तरह के पकवान बनाकर उन्हें व स्वयं को यूँ दिखाने परखने को रखना ही है तो किसी ब्यूटी पार्लर, किसी पर्सनेलिटी डेवेलपमेंट कक्षा आदि की सहायता लें । बहुत कम लोग बदसूरत होते हैं । अधिकतर लोग थोड़े से बदलाव से आकर्षक लग सकते हैं । कद तो छोटा मेरा भी है । बच्चियों का भी है । यदि पौने पाँच फुट की भी हैं तो इसे महत्व मत दीजिये । मुझे लगता है , यह जो आपमें व आपके माता पिता में दीन हीनता का भाव आ गया है वही समस्या की जड़ है । यदि कोई कारण है जो सामान्य पुरुष आपसे बेहतर दिखने वाली स्त्री चाहता है और आप व आपका परिवार किसी भी हाल में विवाह, तो सीधे सीधे विग्यापन देकर अपनी कमियाँ बता दीजिये व इन कमियों के अनुरूप ही वर माँगिये। भारत के कितने राज्यों में स्त्रियों की संख्या में इतनी कमी आ गई है कि युवक कुँवारे रह जा रहे हैं । जाति व प्रदेश का बन्धन छोड़कर विग्यापन दीजिये । जो भी हो, जो हो रहा है वह सरासर गलत है। वैसे आप मुझसे अधिक पढ़ी लिखी हैं । जो कर रही हैं कुछ सोच समझ कर ही कर रही होंगी ।
घुघूती बासूती

Krishan lal "krishan" said...

नारी को कहेंगें देवी है मानेगे उसे इन्सान नही
उपभोग की वस्तु से ज्यादा देते उसको सम्मान नहीं
हैं मापदण्ड दोहरे इनके इन्साफ कहाँ से मिलना है
ये इक पलडे की तराजू है काहे को इस में तुलना है
जो हक है तेरा उसे लड के ले रोने धोने से क्या होगा
लडने की हर मुश्किल को हिम्मत से तुझे सहना होगा
इस युद्ध को लड कर जीतने के तुझमें जो जज्बात है
मै दावे से कह सकता हूँ तुम मे कुछ तो बात है

bhuvnesh sharma said...

आपकी पोस्‍ट कुछ कहने को उकसा रही है

जल्‍द ही एक पोस्‍ट लिखता हूं....

rakhshanda said...

to respected Ghughti basooti ji,shayed aapne mera article theek se nahi padha,kai logo ko ye confusion ho gayi ki ye problem meri hai,actually ye dard meri ek dost sneha ka hai,aap sab yakeen nahi manenge ki uski shakal mujhe bahot achhi lagti hai...height bhi uski 5.2 hai,high educated hai..system se ladna bhi chahti hai par pata nahi kahan majboor ho jati hai...aap sab ke keemti mashvare main usey dene ki koshish karungi..aor mujhe poora yakeen hai kuchh na kuchh change to uski soch mein zaroor aayega...shaadi zindgi ka maqsad nahi hai..pata nahi ye bat hamaare parents ko samajh kyon nahi aati..nahi hoti hai na ho...kya fark padta hai...lekin pachpan se ek hi bat ladki ke mind mein dal di jati hai...shaadi,,nafrat hai mujhe is system se...agar main kahin galat hun to pls aap sabhi mujhe galat kah sakte hain...really ye blog ki duniya bahot khoobsoorat hai...thanks

Ashish Pandey said...
This comment has been removed by the author.
Ashish Pandey said...

I am tired of reading same stuff in every blog... and you disappointed too...

Come on, will be ever have girls who talk of courage, fire and power...

I know its not your story, but bring the stories which shows the real mattle of Indian girls...

But then, you atleast are doing an effort and which shall be praised...

Keep it up

Congratulations

मुनीश ( munish ) said...

KAASH AAPKE JITNE COMMENTS HAME BHI MILTE! maykhaana.blogspot.com par kabhi inaayat kijiye!

KAMLABHANDARI said...

rakhshanda ji aapki post kabile taarif hai .ye kewal ek ladki ki kahani nahi hai balki har ladki ki kahani hai.
jaisha ki swapandarshiji ne kaha ki maa-baap se kah do ki ye tamasha dubara kiya to ghar chhod dungi se me katai sahmat nahi hun .ye sirf picture ke dialogs haai kyuki koi bhi ladki apne maa-baap ko kabhi yu hi nahi chhodna chhahegi.aur waishe bhi har koi apna ghar basana chhata hai ,jindagi ke har roop ko jeena chhata hai ,jimmedari nibhana chhata hai .jaruri nahi ki ghar hi chhoda jaaye balki hume apni sooch ko badalna hoga aur dushro ko bhi samjhana hoga.

Anonymous said...

पक-पक-पकाऊ पक-पक-पकाऊ बस इससे ज्यादा और क्या कहा जाए?

डॉ .अनुराग said...

लड़के की बहन भी लड़की ,ओर लड़के की माँ भी एक स्त्री ....यानि की इस दृष्टि से देखे तो वे भी इस गुनाह मी बराबर की साझेदार ,पर अब शायद वातावरण बदल रहा है ,परिवर्तन तेजी से तो नही पर धीरे- धीरे आ रहा है .लड़किया बरात वापस भेजने लगी है ओर पढ़ लिख कर बहुत आगे जाने लगी है ....बस इतना करना है की यही लड़किया जब कभी माँ बने अपनी बेटियों को स्वलाम्बी ओर मजबूत बनाये ओर उनके लिए ढाल बनकर खड़ी हो..शिक्षा .......तालीम ........इल्म.........सबसे बड़ी दवा यही है इस समाज की.......

Anurag said...

didi
aap ne bahut sahi samjha aur likha hai.
i favour you.
please dont fear. main hoon na.
we must do something to correct this dirty system.
i am the greatest fan of taslima nasrin. she also writes like you.
please dont dont stop.
an anonymouse brother wishes are with you.