खूबसूरत
सुर्ख और मखमली
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मौसम-ऐ-बहार यानी बसंत ऋतू ,बस रुखसत होने ही वाली है. रंग बिरंगे खूबसूरत फूल अभी खिले हुए हैं पर धुप की बढ़ती तपिश उन्हें हम से अलविदा कहने पर मजबूर कर रही है.मैदानी इलाकों में तो ये मौसम रुखसत हो भी चुका है लेकिन पहाडी इलाकों में इनकी विदाई थोडी देर से होती है . पर यहाँ भी धुप की शिद्दत जल्दी ही इसे आखिरी सलाम कहने पर मजबूर कर देगी.
कितना अजीब होता है ये बहार का मौसम . कहते हैं ये शायेरों का मौसम है.शायेरों ने इसकी खूबसूरती पर दीवान के दीवान लिख डाले हैं.ये जब आता है तो कितने चेहरों को फूल की मानिन्द खिला देता है तो जाते हुए हमेशा कितनी आँखें नम कर जाता है ठीक आते हुए यौवन और जाती हुयी जवानी की तरह .
इस साल भी बहार अपनी पूरी खूबसूरती के साथ आई ,बाग़ बगीचे यहाँ तक कि रास्ते तक फूलों से ढक गए.देहरादून में वैसे भी फूल कुछ ज़्यादा ही खिलते हैं ,ये और बात है कि राजधानी बनने के बाद यहाँ जाने कितने बाग़ उजाड़ कर multiplex इमारतें ,शोप्पिंग कॉम्प्लेक्स या कोठियाँ बना ली गई.ज़ाहिर सी बात है कि फूलों के ठिकानों में तेज़ी से कमी आई है.दिन प्रतिदिन बढ़ती वाहनों की संख्या ने भी पर्यावरण को खूब नुकसान पहुँचाया और आगे भी पहुंचाएंगे ,लेकिन फूलों के करीब रहना यहाँ के लोगों की फितरत में है इसलिए बाग़ बगीचों में न सही ,घरों की छोटी बड़ी लान की क्यारियों में ही सही,फूल इस बार भी खिले और इंशाल्लाह खिलते रहेंगे लेकिन फिर भी ,एक अजीब सा दर्द दे के जारही है ये बहार.अपने जाने का नही क्योंकि आना और जाना तो मौसम की फितरत है.ज़िंदगी रही तो ये लौट कर फिर आएगी ही. दुःख तो उन खोती जारही चीजों का है जो हम से रूठ गई तो शायेद हम दोबारा उन्हें वापस न पा सकें.
वह चीज़ें जिनके बिना मौसम-ऐ-बाहर की कल्पना भी नही की जासकती थी .
क्या खुशबुओं ,तितलियों और भंवरों के बिना भी मौसम-ऐ-बहार का तसव्वुर किया होगा किसी शाएर ने?
पर ऐसा हो सकता है.
फूल इस बार भी खिले पर इन फूलों से खुशबुएँ जैसे रूठ गई थीं,मौसमी फूलों की तो बात छोडिये, गुलाब के फूल जिनकी भीनी भीनी महक रग-रग में ताजगी सी भर दिया करती थी,धीरे धीरे अपनी खुशबू खो रहे हैं.
रात की रानी चमेली ,बेला ,मोतिया,चांदनी या मोंगरा जैसे कुछ फूलों को छोड़ बाकी फूल जैसे कागज़ के खूबसूरत फूल बनते जारहे हैं .
एक ज़माना था जब घाटियों की तो बात छोडिये,गांवों और शहरों में भी मौसम-ऐ-बाहर में जब हवाएं चलती थीं तो खुशबुओं से लड़ी दूर दूर तक सब के तन मन को महका दिया करती थीं.
जंगली फूल भी अपने अन्दर एक ख़ास सुगंध लिए होते थे.
लेकिन धीरे धीरे बढ़ते प्रदुषण ,मिटटी और खाद में मिले रासायनिक तत्व कब ये अनमोल शै हम से छीनते चले गए ,हम ख़ुद ही न जान सके.
मुझे याद है,जब मैं छोटी थी और छुट्टियों में परिवार सहित लखनऊ के पास गाँव में स्थित दादा जान की हवेली में आया करती थी.दादा जान की तरह फूलों से इश्क मुझे वरसे में मिला है.
उनका मुहब्बत से लगाया गया बगीचा हमेशा फूलों से महका करता था. चाचा जान के बच्चे ,हम भाई बहन सारा दिन बस वहीं खेला करते थे और हमारे साथ खेला करती थीं रंग बिरंगी सुंदर तितलियाँ.कली कली को चूमती ये नाज़ुक तितलियाँ अगर डरती थीं तो स्याह गुन-गुन करते भंवरों से,और उनका खेल ध्यान से देखते हुए मेरा मासूम जेहन बेचारे भंवरों को खलनायक के रूप में देखा करता था.
मुझे अच्छी तरह याद है उन दिनों इतने रंगों की तितलियां फूलों से अठखेलियाँ करने आती थीं कि मैं हैरान रह जाती थी कि कुदरत ने कितने रंग इनके पंखों में समो दिए हैं.
आज फूलों कि वही सहेलियां लगभग गायब सी हो गई हैं बगीचों से.लान में रंग बिरंगे हसीन फूल हसरत से अपने उन पुराने दोस्तों की राह तकते- तकते मुरझा जाते हैं लेकिन उनका ये इंतज़ार ,इंतज़ार ही रह जाता है .भूली भटकी कोई तितली या भंवरा कभी आ भी जाते हैं तो चंद ही लम्हों में जाने कहाँ गायब हो जाते हैं.फूलों से खुशबुओं का, खुशबुओं से तितलियों का और तितलियों से भंवरों का वो अटूट रिश्ता जाने कब और कैसे टूट सा गया है और हम हैं कि अपनी तेज़ रफ्तार में सरपट भागती जिंदगी में मग्न इतनी सारी अनमोल चीजों को हमेशा के लिए खोते हुए देखे जारहे हैं पर उन्हें बचाने और समेटने की हमें फुरसत नही है.
बचाने की कौन कहे,इनके बारे में सोचने का भी समय नही है हमारे पास.
पर ये सब कुछ हमारे आने वाले कल के लिए खतरे की घंटी है.हमें कुदरत के दिए हुए इन अनमोल तोहफों को बचाने के बारे में संजीदगी से सोचना होगा.उन्हें बचाने के कारगर उपाय करने होंगे.अभी इतनी भी देर नही हुयी है.खुशबुएँ फिर से हमें मदहोश करने वापस आसकती हैं,तितलियां फिर से कलियों और फूलों को चूमती हुयी इठला सकती हैं,भँवरे फिर से गुनगुना सकते हैं.
लेकिन जल्दी ही कुछ करना होगा,ऐसा न हो कि कल हमारी आने वाली पीढ़ी खुशबुओं,तितलियों और भंवरों को किताबों के पन्नों पर पढ़ते हुए हसरत से सोचा करें कि क्या ये सब भी कभी हमारी दुनिया का हिस्सा थे?
30 comments:
"क्या कोई नई बात नज़र आती है हम में.. आईना हमें देख के हैरान सा क्यों है?
"
shyad sochta hai ki waqt ne to hume bhi nahin bakhsa jane tum he in kharochon se mahfuz kasie ho
nice post fool sunder hain
आपके चित्र भी फूलों की तरह ही खूबसूरत आए हैं... और प्रदुषण की समस्या तो हर जगह है... पर वैसे शहरों में ज्यादा खलता है जो अभी तक छोटे थे और अब विकास के नाम पर बरबाद हो रहे हैं...
आपके इस पोस्ट में भी कई छोटी गलतियाँ है उनको सुधार दीजिये... जैसे कि लेख का शीर्षक ही... गुज्र की जगह गुज़र.
अगर तस्वीर से उनकी हम खोये होश बैठे हैं
मिले गर वो हकीकत मे तो जाने क्या क्यामत हो
बहुत खूबसूरत तस्वीरें आप प्रशंसा की पात्र है ऐसी सुन्दार सैलेक्शन के लिये।
रक्षंदा बहुत ही खूबसूरत फोटो और पोस्ट। और कैप्शन भी अच्छे लगे।
प्रदुषण और विकास के चलते अब ना तो तितलियाँ और ना ही भंवरें दिखते है।
मजमून पढा तो लगा कि गजल होगी
झांक कर देखा तो गुलिस्तान निकला
वाह, क्या वाटिका है!! बहुत बढ़िया-चित्रों की भी और शब्दों की भी. बधाई.
कांटों की चुभन का अब अहसास नहीं होता.
फूलों की महक पर भी विश्वास नहीं होता.
मिलने को तो मिलते हैं यों हाथ तो आपस में,
जाने क्यों दिलों में अब उल्लास नहीं होता.
डॉ.सुभाष भदौरिया
वरसों पहले डॉ.सागर आजमी एक मुशायरा पढ़ने अहमदाबाद आये थे उनकी ग़ज़ल का मतला आज भी
जहन में गूंजता है-
कांटों से गुज़र जाना शोलों से निकल जाना.
फूलों की वस्ती में जाना तो सँभल जाना.
पर क्या करें फूल जब सामने आते हैं तो नसीहतें एक तरफ धरी रह जाती हैं.
खूबसूरत .....इतने सुदर फूल ओर आपका कैमरा ......देहरादून मे हमने भी अपना बचपन गुजारा है अब तो वाकई बहुत कुछ बदल गया है......
फ़ूल बडे सुंदर लगते हैं.
आप सभी का दिल की गहराइयों से शुक्रिया,जिन्होंने मुझे समझने की कोशिश की,,वैसे एक बात बताऊँ ?ये सारे फूल मेरे अपने बगीचे के हैं,और फोटोग्राफी भी मेरी ही है...
वैसे अभिषेक ,आपकी नज़र हमेशा मेरी गलतियों पर ही क्यों जाती है?
लगता है आपकी निगाहें बहुत तेज़ हैं,,पर प्लीज़ कभी बख्श भी दिया करें ना..dont mind...just kidding
अरे अगर आपको बुरा लगा तो पहले बोलना चाहिए था न, नज़र कितनी तेज़ है ये तो नहीं पता... पर मुझे लगता है कि टिपण्णी का मतलब समीक्षा ही तो है और जो गलतियाँ निकाल रहा है इसका मतलब कम से कम ये तो है कि उसने पूरी पोस्ट पढी है,
बस झूठ मूठ के ... सुंदर, बढ़िया इत्यादी करने का क्या लाभ?
वैसे गलतियाँ निकालने वाला ही सबसे अच्छा होता है आपने सुना नहीं है:
निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छवाय। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाय॥
खैर जो भी हो, आगे भी गलतियाँ निकालते रहूंगा :-) बस जो गलतियाँ मैं निकलता हूँ उनका सुधार करते जाइये तो मेरी गलतियाँ निकलने का कुछ फायदा भी हो :-)
very nice ... too good ...very well !!
जहां आपके ब्लाग पर फोटो देखकर खुशी हुई तो वहीं उनसे गायब होती खुशबू पर आपकी चिंता से भी सहमत हूं। पर्यावरण प्रदूषण से सभी जगह यह धरती स्वर्ग से नरक में बदल रही है। इस पर मैं भी बहुत लिख चुका हूं पर आपने जो लिखा है उसके आधार पर आगे भी जरूर लिखूंगा ताकि लोगों का इस पर ध्यान जाये। आपके प्रयास प्रशंसनीय हैं।
दीपक भारतदीप
वाह बहुत सुंदर आलेख चित्रण बधाई
वाह बहुत सुंदर आलेख चित्रण बधाई
lovely expression.
एक बार फिर से आप सभी का शुक्रिया जिन्होंने इस पोस्ट को पढ़ा और मेरी चिंता को समझा..दीपक भारतीय जी ,मेरा निवेदन है कि आप इसे और आगे बढाएं,जिस से कुदरत की नवाजी गई ये अनमोल चीज़ें हम से पूरी तरह रूठ न जाएं .हम फिर से कोशिश कर के इन्हें वापस लासकें.
और अभिषेक ,,मैंने आपकी कमेंट का बिल्कुल बुरा नही माना ,मान भी कैसे सकती हूँ,गलती सचमुच वही निकाल सकता है जिसने धयान से हमें पढ़ा हो,और सब से बड़ी बात ये की आपकी बताई गई गलतियां ही मुझे आगे और अच्छा करने की प्रेरणा देती है.
आपसे निवेदन है की इसी तरह गलतियाँ निकालते रहिये,ज़रा भी माफ़ मत करियेगा.मैं भी आपकी तेज़ निगाहों के लिए तैयार हो कर आउंगी. ठीक है ना?
जी हाँ बिल्कुल तैयार होकर आइये... इंतज़ार रहेगा अगली पोस्ट का, वैसे मुझे अब लग रहा है की गलतियाँ शायद ही मिलें... पर लक्ष्य भी तो वही है :-)
अरे मे तो रह ही गया था, बहुत ही सुन्दर फ़ोटो लिये हे आप ने ओर लेख भी न फ़ुलो जेसा सुन्दर हे,बहुत बहुत धन्यवाद
आप का लेख भी आप के फ़ुलो जेसा सुन्दर हे, पहली टिपण्णी मे *न * शव्द गल्ती से लग गया
रकक्षन्दा जी,
फूल बहुत ही सुन्दर हैं, हम सभी विकास की फल भोग रहे है, आप सभी सहमत होगे, अगर अभी भी नही सुधरे तो आगे क्या होगा पता नही.
आप का नाम रक्षंदा है या रकक्षन्दा कृपया स्पष्ट करें।
@पुष्पेन्द्र श्रीवासव-थैंक्स पुष्पेन्द्र जी,मेरा नाम रख्शंदा रिज़वी है.
रुखसाना जी,
क्या मैं आपका ईमेल पा सकता हूं?
धन्यवाद।
राज
मैं तो बस टहलते हुए आया था पर यहाँ तो उलझ गया हूँ |फूलों की खूबसूरती को भाषाई खूबसूरती ने दुगुना कर दिया है.आपकी चिंता जायज है.
रख्शंदा जी,
उम्मीद है आप के नाम को हिन्दी मै लिख्नने वाले लोग अब गलत नही लिखेगे. आप हर सब्जेक्ट पर लिख्नती हैं, यह देख कर अच्छा लगा।
जब रुड़की में कुछ साल पढ़ाई की वज़ह से रहना हुआ था तो देहरादून भी जाना होता था। तब भी चूना भट्टी वाले इलाके से गुजरते वक़्त नाक बंद करनी पड़ती थी। फिर भी बाकी शहरों से तो अभी भी कम प्रदूषित होगा आपका शहर।
आपकी वाटिका शानदार है , हमें इसमें घुमाने का शुक्रिया।
बहुत ही सुंदर फोटोग्राफ्स है.. वाकई लाजवाब..
इन फूलो की महक जयपुर तक आ रही है..
U seems a nature n flowers lover.very nice pics....seems like from my own garden....
Rakshoo vat r u doin' among all these gyaani hindi valaaz?
ye bahaar ka zamana,
ye hasin gulon ke saye !
mujhe dar hai bagban ko,
kahin need aa na jaye !!
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