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{इक छोटी सी इल्तेजा है, इस पोस्ट को पूरी पढने के बाद ही अपनी राय का इज़हार करें }
समाज ने हमेशा अपने उसूलों में औरत और मर्द के लिए वाजेह(स्पष्ट) फर्क रखा. हर मज़हब ने अपने उसूलों में हमेशा मर्दों को रियायत दी है वहीँ ओरतों के मामले में सख्ती से पेश आया है.
समाज चाहे मगरिब(पश्चिम) का रहा हो या मशरिक का, ओरतों के लिए दोनों ने अपने नज़रिए में तास्सुब रखा. मशरिक में ये फर्क कुछ ज्यादा ही रहा है.
ये कोई नयी बात नहीं है, सदियों से औरत ने इस फर्क को देखा और महसूस किया है, खामोशी से झेला भी है और आवाज़ भी उठायी है. आज भी औरत इस फर्क को मिटाने की लडाई लड़ रही है और जाने कब तक लड़ती रहेगी .
समाज चाहे मगरिब(पश्चिम) का रहा हो या मशरिक का, ओरतों के लिए दोनों ने अपने नज़रिए में तास्सुब रखा. मशरिक में ये फर्क कुछ ज्यादा ही रहा है.
ये कोई नयी बात नहीं है, सदियों से औरत ने इस फर्क को देखा और महसूस किया है, खामोशी से झेला भी है और आवाज़ भी उठायी है. आज भी औरत इस फर्क को मिटाने की लडाई लड़ रही है और जाने कब तक लड़ती रहेगी .
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वो मेरे कालेज में ही लेक्चरर हैं. दिलकश चेहरा, लंबा कद, खूबसूरत सरापा, जहीन लेकिन उदास आँखें.
पता नहीं कब मेरी उन से दोस्ती हुयी. शायद उनकी उदास आंखों की कशिश थी जिसने मुझे अपने करीब खींच लिया.
मुझ में एक बड़ी अजीब सी खामी है, पता नहीं क्यों, हर चेहरा मुझे कुछ कहता सा महसूस होता है या शायद ऐसे बोलते और मतवज्जह करते चेहरे ही मेरी कशिश का बायस बनते हैं.
मैं जानती हूँ. दुनिया की इस भीड़ में मौजूद हर चेहरा अपने पीछे एक फ़साना छिपाए फिरता है. हर चेहरे की अलग कहानी, हम कहाँ तक भला इन चेहरों के पीछे पोशीदा फ़साने तलाश करते फिरेंगे.
लेकिन हम अपनी कुछ आदतों के सामने ख़ुद ही बेबस होते हैं. मैं भी बेबस हो जाती हूँ.
वो मेरी दोस्त बनीं तो बाकी सारे रिश्ते पस-ए-पुश्त डालकर हम बे तकल्लुफ होते चले गए.
दिल में मौजूद ख्वाहिश के बावजूद मैंने उनकी आंखों की उदासी की वजह नहीं पूछी. पता नहीं क्यों, शायद ये यकीन सा था कि अगर मैं अपनी दोस्ती में ईमानदार हूँ तो वो एक दिन ख़ुद अपना आप मेरे सामने रख देंगी.
और उस दिन ये यकीन सच्चा साबित हुआ.
वो कहती रहीं और मैं सुनती रही, कई बार दिल में कई सवाल मचले थे लेकिन मैंने उन्हें जुबान नहीं दी. बस उन्हें सुनती रही.
मैं कोशिश के बावजूद उन से कोई सवाल नहीं कर सकी उल्टे उन्होंने मुझ से एक सवाल ज़रूर पूछ लिया. मैं भला उनके सवाल का जवाब कैसे दे सकती थी जब कि जवाब दूर दूर तक मेरे पास भी नहीं था.
लेकिन फिर भी, कहीं कोई जवाब तो होगा इसलिए मैं उनका वही सवाल आपके सामने रखने जारही हूँ.
-------------------------------------------------------------------------------------------------- वो इक सवाल बड़ा ही अजीब था उसका
पता नहीं कब मेरी उन से दोस्ती हुयी. शायद उनकी उदास आंखों की कशिश थी जिसने मुझे अपने करीब खींच लिया.
मुझ में एक बड़ी अजीब सी खामी है, पता नहीं क्यों, हर चेहरा मुझे कुछ कहता सा महसूस होता है या शायद ऐसे बोलते और मतवज्जह करते चेहरे ही मेरी कशिश का बायस बनते हैं.
मैं जानती हूँ. दुनिया की इस भीड़ में मौजूद हर चेहरा अपने पीछे एक फ़साना छिपाए फिरता है. हर चेहरे की अलग कहानी, हम कहाँ तक भला इन चेहरों के पीछे पोशीदा फ़साने तलाश करते फिरेंगे.
लेकिन हम अपनी कुछ आदतों के सामने ख़ुद ही बेबस होते हैं. मैं भी बेबस हो जाती हूँ.
वो मेरी दोस्त बनीं तो बाकी सारे रिश्ते पस-ए-पुश्त डालकर हम बे तकल्लुफ होते चले गए.
दिल में मौजूद ख्वाहिश के बावजूद मैंने उनकी आंखों की उदासी की वजह नहीं पूछी. पता नहीं क्यों, शायद ये यकीन सा था कि अगर मैं अपनी दोस्ती में ईमानदार हूँ तो वो एक दिन ख़ुद अपना आप मेरे सामने रख देंगी.
और उस दिन ये यकीन सच्चा साबित हुआ.
वो कहती रहीं और मैं सुनती रही, कई बार दिल में कई सवाल मचले थे लेकिन मैंने उन्हें जुबान नहीं दी. बस उन्हें सुनती रही.
मैं कोशिश के बावजूद उन से कोई सवाल नहीं कर सकी उल्टे उन्होंने मुझ से एक सवाल ज़रूर पूछ लिया. मैं भला उनके सवाल का जवाब कैसे दे सकती थी जब कि जवाब दूर दूर तक मेरे पास भी नहीं था.
लेकिन फिर भी, कहीं कोई जवाब तो होगा इसलिए मैं उनका वही सवाल आपके सामने रखने जारही हूँ.
-------------------------------------------------------------------------------------------------- वो इक सवाल बड़ा ही अजीब था उसका
कि उसके बाद फजाओं ने ली थी इक सिसकी
मुहब्बत की हसीन वादियों में हमने एक साथ कदम रखे थे. जो ख्वाब मेरी आंखों में उतरे वही ख्वाब उसकी रातों का भी हिस्सा थे. हमने आने वाले लम्हों में हमेशा एक दूसरे को हमकदम ही देखा था. कोई लम्हा , कोई पल हमारे सपने में ऐसा नहीं था जब हम एक दूसरे से लम्हा भर भी दूर रहे हों. हमारे ख्वाब, हमारी खुशियाँ, हमारी मंजिलें एक थीं. हम एक दूसरे के बिना कुछ थे ही नहीं.
और एक दिन हमने बड़ी ईमानदारी से अपने जज्बों की ख़बर अपने घर वालों को दे दी. लेकिन ये हमारी बदकिस्मती थी हम दोनों ही अपने अपने घर वालों को राजी नहीं कर सके, मेरे पापा जो एक कालेज में प्रोफेसर होने के साथ साथ एक अच्छे कवि भी थे. उनकी जिंदगी के कुछ उसूल थे जिसे मेरी माँ और हम बहनों ने हमेशा इज्ज़त दी थी. आस पास के लोगों में भी उनका बड़ा एहतेराम था.
पापा इस रिश्ते पर क्यों राज़ी नहीं थे मैं इसकी तफसील में नहीं जाउंगी, बस इतना था कि उनके नज़रिए से उनके इनकार की वजह सही थी लेकिन काश पापा एक बार मेरे दिल में झाँक कर देखते तो दुनिया की बड़ी से बड़ी वजह भी उन्हें छोटी महसूस होती.
जब हम दोनों अपने अपने घर वालों को राज़ी करने में नाकाम हो गए तो हमने वही रास्ता अपनाया जो किसी भी लिहाज़ से सही नहीं होता. ये बात मैं आज स्वीकार कर रही हूँ, ऐसा बिल्कुल नहीं है. मेरा नजरिया कल भी वही था, आज भी वही है. जो कदम हमने उठाया, वो हमारी गलती थी और मैं हर उन लड़कियों को इस कदम से बाज़ रहने की अपील करती हूँ, जो दिल के हाथों मजबूर होकर ये ग़लत कदम उठाती हैं.
हमने वो शहर छोड़ दिया. मैंने अपनी डिग्रियों के सर्टिफिकेट्स अपने घर वालों की फोटो और दो जोड़े कपडों के अलावा साथ कुछ भी नहीं लिया.लेकिन शायद मैं कुछ ग़लत हूँ. लिया क्यों नहीं, बचपन से लेकर जवानी तक की बेशुमार यादें, ढेरों मुहब्बतें भी तो मैं साथ लेकर आई थी.
एक अनजान शहर में हमने अपनी नयी अरमानों भरी दुनिया बसाई थी. हम ने जो माँगा था, जो चाहा था , सब पा लिया था. हम खुश थे और खुश होना चाहते थे लेकिन कहते हैं ना, कि जिस दुनिया की बुनियाद बहुत सारे लोगों के आंसुओं पर रखी जाए, जो आशियाना अपने चाहने वालों के मान को तोड़ कर बनाया जाए वो कभी आबाद नहीं हो पाता, चाहे उसे आबाद रखने के कितने भी जतन क्यों ना किए जाएँ.
हम दोनों अपनी एक दुनिया छोड़ कर आए थे और वो दुनिया हमारे लिए क्या थी, इसका अहसास हमें उस दुनिया से नाता तोड़ने के बाद हुआ. समाज से कट कर भी कोई कहाँ जी सकता है. हम अकेले थे, न हमारे पास रिश्तों का मान था न बुजुर्गों कि चाहतों का गुरूर.
हम अपनी अपनी सोचों में अकेले थे. सुना था कि जहाँ मुहब्बत हो, वहां बाकी किसी शै की ज़रूरत नहीं रह जाती, ग़लत है ये, एक मुहब्बत के आलावा भी इंसान को जीने के लिए बहुत सारी दूसरी चीज़ों की ज़रूरत होती है.
उन्हीं दिनों उस ने बताया कि उसकी माँ की तबियत बहुत खराब है, वो बेहद परेशान था. मैंने उसे उन से मिलने को कहा तो उसने बताया कि उसके बाप ने शर्त रखी है कि वो मुझ से हर रिश्ता तोड़ कर ही उनके पास आ सकता है.
उसने कहा कि उसने इनकार कर दिया है लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे लगा कि उसके दिल में कहीं, इस ज़ंजीर से आजाद होने की हलकी ख्वाहिश धीरे धीरे आँखें खोल रही है.
मैं डर गई. लेकिन ऐसा होता है ना कि जिस बात से हम डरते हैं, वो अक्सर हो ही जाती है.
मैं देख रही थी कि माँ की मुहब्बतों के सामने हमारी मुहब्बत धीरे धीरे हार सी रही है. वो अन्दर से टूट रहा था.
उसकी माँ को कैंसर था. वो उस से मिलना चाहती थी.लेकिन उसके बाप की जिद उसी तरह कायम थी, पता नहीं दौलतमंदों के दिलों में ऊपर वाला जज़्बात क्यों नहीं शामिल करता.
वो ऊपर से मुस्कुराता था लेकिन अकसर सारी सारी रात जागता रहता था.
कई बार मुझे उसके रोने का भी गुमान हुआ. और इस से पहले कि हमारी वो मुहब्बत जिसके लिए मैंने अपने माँ बाप की इज्ज़तों, बहनों के मुस्तकबल की भी परवाह नहीं थी, अपना भरम खो देती, और मैं अपने आप से शर्मसार हो जाती मैं ने एक फ़ैसला कर लिया, हमेशा के लिए अपनी राहें जुदा कर लेने का फ़ैसला. वो मुझ से नाराज़ था, मैंने उसे अपनी कसम दे दी. और फिर वही हुआ जो होने वाला था.
हम जुदा हो गए, वो मुझ से बहुत नाराज़ था लेकिन मैं जानती थी कि एक दिन उसे भी यही फ़ैसला करना था.
वो चला गया. अपनी सारी जमा पूँजी उसने मेरे नाम कर दी थी, लेकिन मुझे इसे क्या करना था. मैं अपनी बिछडी अनमोल मुहब्बतों के पास लौटना चाहती, उन के पास जिनकी मुहब्बतों को चंद दिनों की मुहब्बत के लिए ठुकरा कर चली आई थी. शायद उसी की सज़ा मुझे मिली थी.
मैं पागलों की तरह लखनऊ पहुँची, अपने उसी घर जहाँ के आँगन में मैंने चलना सीखा था, जहाँ मेरे माँ बाप थे मेरी बहनें थीं, मैंने गलती की थी, बहुत बड़ी, लेकिन वो मेरे माँ बाप थे, भला मुझ से जायदा देर नाराज़ कहाँ रह सकते थे.
पहले भी गलतियाँ करती रही थी, और वो थोडी देर की नाराजगी के बाद मुझे सीने से लगा लेते थे.
लेकिन अपने घर पहुँच कर मुझे अहसास हुआ कि मैं जो गलती कर चुकी थी, वो बहुत बड़ी थी, मैंने क्या किया था इसका अंदाजा तो मुझे अपने घर पहुँच कर हुआ, हमेशा सर उठा कर चलने वाले मेरे पिता जी का सर मेरे जाने के बाद ऐसा झुका की फिर कभी उठ ही नहीं सका, मेरे जाने के सिर्फ़ छ महीने बाद उन्होंने मौत की गोद में मुंह छिपा लिया.
मेरी माँ और बहनों ने नफरत से मुंह मोड़ लिया और मुझे पहचानने से इनकार कर दिया. मेरी माँ ने साफ़ कहा कि इस से पहले कि मेरी वजह से वो अपनी बेटियों को लेकर कहीं और जाने पर मजबूर हो जाएँ , अपनी स्याह परछाईं लेकर मैं यहाँ से दूर चली जाऊं.
मैं वापस आगयी. अब मुझे अकेले जिंदगी के इस बोझ को उठाना था. मेरी डिग्री मेरे साथ थी सो मैंने जॉब कर ली और जीने का बहाना ढूंढ लिया.
वो अपने घर पर खुश है. उसके घर वालों ने उसकी शादी अपने जैसे दौलतमंद घराने में कर दी है. मैं नहीं जानती कि वो खुश होगा या नहीं लेकिन उसके घर वाले अपने खोये बेटे को पाकर बहुत खुश हैं.
गलती तो हम दोनों ने एक सी की थी, अपने अपने घर वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ घर छोड़ने की, फिर सज़ा सिर्फ़ मुझे क्यों मिली?
कहते हैं, सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आजाये तो उसे भूला नहीं कहते, उसे वापस बुला लेते हैं, फिर मेरी भूल को भी मेरी नादानी समझ कर माफ़ क्यों नहीं किया गया?
मुहब्बत की हसीन वादियों में हमने एक साथ कदम रखे थे. जो ख्वाब मेरी आंखों में उतरे वही ख्वाब उसकी रातों का भी हिस्सा थे. हमने आने वाले लम्हों में हमेशा एक दूसरे को हमकदम ही देखा था. कोई लम्हा , कोई पल हमारे सपने में ऐसा नहीं था जब हम एक दूसरे से लम्हा भर भी दूर रहे हों. हमारे ख्वाब, हमारी खुशियाँ, हमारी मंजिलें एक थीं. हम एक दूसरे के बिना कुछ थे ही नहीं.
और एक दिन हमने बड़ी ईमानदारी से अपने जज्बों की ख़बर अपने घर वालों को दे दी. लेकिन ये हमारी बदकिस्मती थी हम दोनों ही अपने अपने घर वालों को राजी नहीं कर सके, मेरे पापा जो एक कालेज में प्रोफेसर होने के साथ साथ एक अच्छे कवि भी थे. उनकी जिंदगी के कुछ उसूल थे जिसे मेरी माँ और हम बहनों ने हमेशा इज्ज़त दी थी. आस पास के लोगों में भी उनका बड़ा एहतेराम था.
पापा इस रिश्ते पर क्यों राज़ी नहीं थे मैं इसकी तफसील में नहीं जाउंगी, बस इतना था कि उनके नज़रिए से उनके इनकार की वजह सही थी लेकिन काश पापा एक बार मेरे दिल में झाँक कर देखते तो दुनिया की बड़ी से बड़ी वजह भी उन्हें छोटी महसूस होती.
जब हम दोनों अपने अपने घर वालों को राज़ी करने में नाकाम हो गए तो हमने वही रास्ता अपनाया जो किसी भी लिहाज़ से सही नहीं होता. ये बात मैं आज स्वीकार कर रही हूँ, ऐसा बिल्कुल नहीं है. मेरा नजरिया कल भी वही था, आज भी वही है. जो कदम हमने उठाया, वो हमारी गलती थी और मैं हर उन लड़कियों को इस कदम से बाज़ रहने की अपील करती हूँ, जो दिल के हाथों मजबूर होकर ये ग़लत कदम उठाती हैं.
हमने वो शहर छोड़ दिया. मैंने अपनी डिग्रियों के सर्टिफिकेट्स अपने घर वालों की फोटो और दो जोड़े कपडों के अलावा साथ कुछ भी नहीं लिया.लेकिन शायद मैं कुछ ग़लत हूँ. लिया क्यों नहीं, बचपन से लेकर जवानी तक की बेशुमार यादें, ढेरों मुहब्बतें भी तो मैं साथ लेकर आई थी.
एक अनजान शहर में हमने अपनी नयी अरमानों भरी दुनिया बसाई थी. हम ने जो माँगा था, जो चाहा था , सब पा लिया था. हम खुश थे और खुश होना चाहते थे लेकिन कहते हैं ना, कि जिस दुनिया की बुनियाद बहुत सारे लोगों के आंसुओं पर रखी जाए, जो आशियाना अपने चाहने वालों के मान को तोड़ कर बनाया जाए वो कभी आबाद नहीं हो पाता, चाहे उसे आबाद रखने के कितने भी जतन क्यों ना किए जाएँ.
हम दोनों अपनी एक दुनिया छोड़ कर आए थे और वो दुनिया हमारे लिए क्या थी, इसका अहसास हमें उस दुनिया से नाता तोड़ने के बाद हुआ. समाज से कट कर भी कोई कहाँ जी सकता है. हम अकेले थे, न हमारे पास रिश्तों का मान था न बुजुर्गों कि चाहतों का गुरूर.
हम अपनी अपनी सोचों में अकेले थे. सुना था कि जहाँ मुहब्बत हो, वहां बाकी किसी शै की ज़रूरत नहीं रह जाती, ग़लत है ये, एक मुहब्बत के आलावा भी इंसान को जीने के लिए बहुत सारी दूसरी चीज़ों की ज़रूरत होती है.
उन्हीं दिनों उस ने बताया कि उसकी माँ की तबियत बहुत खराब है, वो बेहद परेशान था. मैंने उसे उन से मिलने को कहा तो उसने बताया कि उसके बाप ने शर्त रखी है कि वो मुझ से हर रिश्ता तोड़ कर ही उनके पास आ सकता है.
उसने कहा कि उसने इनकार कर दिया है लेकिन पता नहीं क्यों, मुझे लगा कि उसके दिल में कहीं, इस ज़ंजीर से आजाद होने की हलकी ख्वाहिश धीरे धीरे आँखें खोल रही है.
मैं डर गई. लेकिन ऐसा होता है ना कि जिस बात से हम डरते हैं, वो अक्सर हो ही जाती है.
मैं देख रही थी कि माँ की मुहब्बतों के सामने हमारी मुहब्बत धीरे धीरे हार सी रही है. वो अन्दर से टूट रहा था.
उसकी माँ को कैंसर था. वो उस से मिलना चाहती थी.लेकिन उसके बाप की जिद उसी तरह कायम थी, पता नहीं दौलतमंदों के दिलों में ऊपर वाला जज़्बात क्यों नहीं शामिल करता.
वो ऊपर से मुस्कुराता था लेकिन अकसर सारी सारी रात जागता रहता था.
कई बार मुझे उसके रोने का भी गुमान हुआ. और इस से पहले कि हमारी वो मुहब्बत जिसके लिए मैंने अपने माँ बाप की इज्ज़तों, बहनों के मुस्तकबल की भी परवाह नहीं थी, अपना भरम खो देती, और मैं अपने आप से शर्मसार हो जाती मैं ने एक फ़ैसला कर लिया, हमेशा के लिए अपनी राहें जुदा कर लेने का फ़ैसला. वो मुझ से नाराज़ था, मैंने उसे अपनी कसम दे दी. और फिर वही हुआ जो होने वाला था.
हम जुदा हो गए, वो मुझ से बहुत नाराज़ था लेकिन मैं जानती थी कि एक दिन उसे भी यही फ़ैसला करना था.
वो चला गया. अपनी सारी जमा पूँजी उसने मेरे नाम कर दी थी, लेकिन मुझे इसे क्या करना था. मैं अपनी बिछडी अनमोल मुहब्बतों के पास लौटना चाहती, उन के पास जिनकी मुहब्बतों को चंद दिनों की मुहब्बत के लिए ठुकरा कर चली आई थी. शायद उसी की सज़ा मुझे मिली थी.
मैं पागलों की तरह लखनऊ पहुँची, अपने उसी घर जहाँ के आँगन में मैंने चलना सीखा था, जहाँ मेरे माँ बाप थे मेरी बहनें थीं, मैंने गलती की थी, बहुत बड़ी, लेकिन वो मेरे माँ बाप थे, भला मुझ से जायदा देर नाराज़ कहाँ रह सकते थे.
पहले भी गलतियाँ करती रही थी, और वो थोडी देर की नाराजगी के बाद मुझे सीने से लगा लेते थे.
लेकिन अपने घर पहुँच कर मुझे अहसास हुआ कि मैं जो गलती कर चुकी थी, वो बहुत बड़ी थी, मैंने क्या किया था इसका अंदाजा तो मुझे अपने घर पहुँच कर हुआ, हमेशा सर उठा कर चलने वाले मेरे पिता जी का सर मेरे जाने के बाद ऐसा झुका की फिर कभी उठ ही नहीं सका, मेरे जाने के सिर्फ़ छ महीने बाद उन्होंने मौत की गोद में मुंह छिपा लिया.
मेरी माँ और बहनों ने नफरत से मुंह मोड़ लिया और मुझे पहचानने से इनकार कर दिया. मेरी माँ ने साफ़ कहा कि इस से पहले कि मेरी वजह से वो अपनी बेटियों को लेकर कहीं और जाने पर मजबूर हो जाएँ , अपनी स्याह परछाईं लेकर मैं यहाँ से दूर चली जाऊं.
मैं वापस आगयी. अब मुझे अकेले जिंदगी के इस बोझ को उठाना था. मेरी डिग्री मेरे साथ थी सो मैंने जॉब कर ली और जीने का बहाना ढूंढ लिया.
वो अपने घर पर खुश है. उसके घर वालों ने उसकी शादी अपने जैसे दौलतमंद घराने में कर दी है. मैं नहीं जानती कि वो खुश होगा या नहीं लेकिन उसके घर वाले अपने खोये बेटे को पाकर बहुत खुश हैं.
गलती तो हम दोनों ने एक सी की थी, अपने अपने घर वालों की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ घर छोड़ने की, फिर सज़ा सिर्फ़ मुझे क्यों मिली?
कहते हैं, सुबह का भूला अगर शाम को घर वापस आजाये तो उसे भूला नहीं कहते, उसे वापस बुला लेते हैं, फिर मेरी भूल को भी मेरी नादानी समझ कर माफ़ क्यों नहीं किया गया?
{यही वो एक सवाल था जो उन्होंने मुझ से किया, और मैं चाह कर भी उन्हें कोई जवाब नही दे सकी.....}
25 comments:
Rakhshanda ji bahut hi bhawuk post..
Itne gmabhir sawal ka kya jawab de pauga mai.. nishabd hu.. bas itna kah sakta hu ki jab bhagwaan ne dukh banaya to usne use shayad mahilao ke hisse mein jyada de diya
New Post :
मेरी पहली कविता...... अधूरा प्रयास
हिम्मत नही हारी और स्वाभिमान से जी रही है वो अब भी यह सकूँ देता है पर सवाल तो वाजिब है ही और रहेगा यह सवाल तब तक जब तक एक बराबर नही समझा जाता है दोनों को ..
girl boy ke ghar ka sadsya banti hai, sdasyataa girl ki gayi n ki boy ki isilie maa-baap ladkiyon ko
rokte hain.
smaaj ki banaavat aisi hai.
aapne sach me bahut achcha prashan uthya hai.
mere paas iska jwab hai parantu main yahan likh nahi sakta.
bcoz it hurts u.
prantu aapka blog padhkar aurato ke dard ko samajhne ka mauka mila uske liye dhanyavaad
Rakesh Kaushik
यह सब हमारी अब तक चली आ रही सामाजिक व्यवस्थाओं का नतीजा है. अब तो बहुत बदलाव की आँधी चली हुई है, सार्थक परिणाम भी सामने आ रहे हैं.
वैसे भी इसी वजह से, लड़का अगर अकेला रहे और घर वाले तिरिस्कृत कर भी दें तो कहानी नहीं बनती.
अज्ञात जी ने सही कहा है। समाज की बनावट ऐसी ही है। स्त्री-पुरुष की इस गैरबराबरी का मूल समाज की बनावट में ही है। लेकिन समाज की बनावट सदा से ऐसी नहीं थी जैसी आज है और हमेशा ऐसी रहेगी भी नहीं। वह बदल रही है। वक्त आएगा जब स्त्री-पुरुष समानता कायम होगी।
आपकी पोस्ट में कुछ शब्द मेरे लिए अपरिचित हैं। फिर भी मैं आपकी भावनाआें के गंगासागर में गोते लगाकर जो कुछ आत्मसात किया वह कोई कविता नहीं महाकाव्य है। वृहदकथा है। एेसी कथा जिसे हमारे पूर्वज/महापुरुष अपने-अपने शब्दों में, अपनी-अपनी शैली में उकेरते आए हैं। मैं भी उसी समाज का वही चेहरा हूं जिसे पुरुष कहते हैं। हो सकता है कि मेरे पास आपके सवाल का जबाव यदि हो भी तो भी मैं क्या अपनी पुरुषवादी छाप से मुक्त हो पाउंगा।
आपने सही लिखा है-
दुनिया की इस भीड़ में मौजूद हर चेहरा अपने पीछे एक फ़साना छिपाए फिरता है. हर चेहरे की अलग कहानी, हम कहाँ तक भला इन चेहरों के पीछे पोशीदा फ़साने तलाश करते फिरेंगे.
वैसे भी इस मोड़ पर आप इसके अलावा आैर क्या कहेंगी-
ये बात मैं आज स्वीकार कर रही हूँ, ऐसा बिल्कुल नहीं है. मेरा नजरिया कल भी वही था, आज भी वही है. जो कदम हमने उठाया, वो हमारी गलती थी और मैं हर उन लड़कियों को इस कदम से बाज़ रहने की अपील करती हूँ, जो दिल के हाथों मजबूर होकर ये ग़लत कदम उठाती हैं.
देखिए, आप यही मान लीजिए कि मेरे पास भी जबाव नहीं है लेकिन मैं आपके परिचय में लिखी इन पंक्तियों को सलाम करता हूं-
और फैलुंगी जो लौटाओगे आवाज़ मेरी,
इतना गूंजुंगी की सदियों को सुनाई दूंगी।
क्या कहूँ ?आपकी सहेली कुछ ज्यादा ही जज्बाती हो गई ,मोहब्बत में ऐसा होता है पर शायद वो साथ रहकर भी अपने माँ के करीब रह सकता था ...वैसे भी मैंने देखा है जब इंसान को कोई बीमारी जकड लेती है तो वो ओर बेहतर इन्सान बन जाता है दूसरो को मुआफ करने ओर दूसरो की खुशी को तवाज्जो देने लगता है...शायद वे आपकी सहेली को एक्सेप्ट कर लेती...प्यार ऐसा रिश्ता है जिसमे कोई शर्त नही होती ...
खैर जहाँ तक मर्द ओर औरत के ख़िलाफ़ परिवार का रवैया है हमारे दो दोस्त आज तक बेघर है......कभी उनकी दास्ताँ सुनायेगे आपको ...हाँ समाज में जरूर कुछ दोहराव है .....
sawal bara kathin hai, uppar ke lagbhag sabhi comments se sehmat
यह बात अगर दिल-ओ-दिमाग़ से मान ली जाती है के माँ बन्ने का सारा दुःख औरत अकेले उठाती है मर्द नही तो यह बात भी मान लेने में मुश्किल नही होना चाहिए के अकेली औरत का घर से भागना जितनी परेशानियां लाता है उतना मर्द का अपना घर छोड़ देना नही लाता. जिस समाज में हम रहते हैं उसके साथ चलना ज़िन्दगी की मजबूरी है. अगर इस मजबूरी से बगावत का इरादा हो तो फिर बाद की शर्मिंदगी के बारे में बिल्कुल ना सोचना चाहिए और न उसकी फ़िक्र करना चाहिए. वह जो किसी ने कहा है ना
तुम में हिम्मत है तो ज़माने से बगावत कर लो
वरना माँ बाप जहाँ कहते हैं वहां शादी कर लो (lolzzz...)
ये समस्या तो है... पर हालात तेजी से बदल रहे हैं... और शायद वो दिन दूर नहीं जब ऐसी समस्याएं नहीं रह जायेंगी.
रक्षँदा जी,
आपकी सहेली अभी तक अपने इस प्रेमी को भूली नहीँ हैँ ऐसा साफ हो रहा है आपकी बातोँ से !
- वे नौकरी करते हुए अपने पैरोँ पर हीम्मतसे खडी हैँ ये उनकी बहादुरी बता रही है -
आप उनसे कहिये कि जीवन जीयेँ हीम्मत से और नई खुशी तलाश करेँ -- मेरी एक सहेली ने एक नन्ही बच्ची को गोद लिया है
अपने प्रेमी और पति के जाने के बाद और आज वही उसकी " खुशी" है --
- लावण्या
aapki saheli kee daastan sunkar mujhe bhi apni ek saheli yaad aa gayi....wo bhi isis taah ek ladke ke saath gayi thi. lekin do saal baad hi dono alag ho gaye...fark itna tha ki uske maa baap ne use apna liya! aaj wo apne bete ke saath rahti hai aur kaheen chhota sa job kar rahi hai.
actually samaj ke niyam dohre hain stree aur purushon ke liye. samaaj ka saamna karne ke liye bahut himmat chaahiye.
मे चुप रहूगा, इस का जबाब जल्द ही मेरे किसी लेख मे मिलेगा आप कॊ
mai jyada padha-likha nahi hu aur na hi jindgi ka jyada tajurba hai, lekin mujhe lagta hai ki jab kabhi samaj ka gathan hua hoga tabhi se mardo ko aurato k mukable jyada adhir diye gaye honge, jaisa ki kuch logo ne apne comments me kaha hai ki dheere dheere ye parampara toot rahi hai,dono ko saman adhikar aur avsar mil rahe hai, lekin phir bhi abhi aurato ko badi ladai ladni haiaur isme unhe pragatisheel puruso ka pura sahyog milega.
uttam..
बहुत ही मौजूं सवाल किया... लेकिन ये सवाल तो सदियों से किया जाता रहा है... और शायद आगे भी किया जाता रहेगा... जवाब तलाशने में अभी शायद सदियाँ लग जाएँ.
kahani ka rukh dusra bhi ho sakta tha...ek maa aur uske bete ke bich mein aane ka hak kisi ko nai...baap ko bhi nai...parantu yahan bhi mahilaon ke adhikaar ka mamla samne aa jata hai...samaj ko badalna hoga..
Katu satya hai.., par kya kiya ja sakata hai.
bahut sahi...
शायद इसे ही कहते हैं हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और।
आप की मित्र इस सवाल का जवाब भले ही न पायें , अपनी खुशी जरूर तलाश लेंगी , हि्म्मत के साथ ।
PURI SABHYATA NARI SE HAR PRAKAR KI SAHAYTA TETI AAYI ABHI TAK FIR BHI NARI SHAKTI KE LIYE USKE DIL ME SACHCHA PYAR NAHIN HAI.....
AGAR HOTA TO EK BHI ABBORTION NAHIN HOTA. VICHARDHARA BADALNA HOGI..MAIN TO NAHIN MANTA KI KENDRA SARKAR BHI IS DISHA ME KOI THOS KADAM NAHIN UTHA RAHI HE.
LOVELY ONE
One song can spark a moment,
One flower can wake the dream.
One tree can start a forest,
One bird can herald spring
One smile begins a friendship,
One handclasp lifts a soul
One star can guide a ship at sea,
One word can frame the goal
One vote can change a nation,
One sunbeam lights a room
One candle wipes out darkness,
One laugh will conquer gloom
One step must start each journey.
One word must start each prayer.
One hope will raise our spirits,
One touch can show you care
One voice can speak with wisdom,
One heart can know what's true,
One life can make a difference,
You see, it's up to you!
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